जानिए पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शुभ योग जिसमे आप शुभ कार्य कर सकते है

जानिए पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शुभ योग जिसमे आप शुभ कार्य कर सकते है

डेस्क-हिन्दू धर्म हर कार्य का अपना विशेष महत्व होता है इसलिए किसी भी कार्य को करने के लिए विशेष मुहूर्त की गणना की जाती है जिसे शुभ मुहूर्त कहा जाता है। जहां एक तरफ अधिकतर शुभ मुहूर्त व्यक्ति की कुंडली और उसके अनुसार ग्रहों की चाल के मुताबिक तय किये जाते है वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे योग भी है जिन्हें केवल ग्रहों और नक्षत्रों की चाल के मुताबिक निकाला जाता है। और इन शुभ योगों का प्रयोग किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ के लिए किया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योतिष विद्या में नौ ग्रहों, 12 राशियों और 27 नक्षत्रों का समावेश है जिसमें सभी की अपनी महत्ता है। सभी ग्रहों का अपने आप में महत्व है लेकिन कुछ ग्रह नकारात्मक होते है जैसे राहु, केतु, मंगल और शनि। जब भी ये ग्रह कुंडली में गलत भाव या स्थिति में बैठते हैं तो व्यक्ति को भारी नुकसान भुगतना पड़ता है। राहु ग्रह अपनी दशा में ऐसी स्थितियां पैदा करता है जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता और जिसके आकस्मिक परिणाम होते है जो शुभ या अशुभ, हो सकते है।

शुभ मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है

ज्योतिष शास्त्र में पंचांग से तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के आधार पर मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है। मुहूर्त किसी कार्य के लिए शुभ व अशुभ समय की अवधि को कहा जाता है। मुहूर्त शास्त्र के अनुसार तिथि, वार, नक्षत्र, योग आदि के संयोग से शुभ या अशुभ योगों का निर्माण होता है। जिन मुहूर्तों में शुभ कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ मुहूर्त कहते हैं। इसके विपरीत अशुभ योगों में किए गए कार्य असफल होते हैं और उनका फल भी अशुभ होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शुभ व अशुभ योगों का निर्माण तिथियों, वारों व नक्षत्रों के संयोग से होता है और इसके लिए ग्रह दशा भी जिम्मेदार होती है। जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है और शुभ योग और अशुभ योग बताये जाते है।

मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है

ज्योतिष शास्त्र में पंचांग से तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के आधार पर मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है। जिन मुहूर्तों में शुभ कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ मुहूर्त कहते हैं। इनमें सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, रवि पुष्य योग, पुष्कर योग, अमृत सिद्धि योग, राज योग, द्विपुष्कर एवं त्रिपुष्कर यह कुछ शुभ योगों के नाम हैं। जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है तो उसकी वर्ष कुंडली बताती है कि आने वाले साल का समय उसके लिये कैसा रहेगा? कई बार जातक की कुंडली में ग्रह कुछ अशुभ योग बनाते हैं जिनके योग से जातक पर जन्म से ही विपदाओं का पहाड़ टूटने लगता है। लेकिन कुछ ऐसे शुभ योग भी होते हैं कि जातक को तकलीफ नाम की चीज का रत्ती भर भी भान नहीं होता।

मुंडन करवाना, नामकरण करवाना, विवाह आदि करना शुभ माना जाता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शुभ मुहूर्त में स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्रादि खरीदना, पहनना, वाहन खरीदना, यात्रा का आरंभ करना, गृह प्रवेश करना, कोई रत्न धारण करना, किसी प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदन भरना, मुंडन करवाना, नामकरण करवाना, विवाह आदि करना शुभ माना जाता है। सामान्यतौर पर कोई भी शुभ मुहूर्त ज्ञात करने के लिए आपको ज्योतिष के पास जाने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन हिन्दू पंचांग में कुछ ऐसे योग है जिनका प्रयोग किसी भी तरह के शुभ कार्य में किया जा सकता है। इन योगों में किसी भी शुभ कार्य को आरंभ किया जा सकता है।भले ही विज्ञान ग्रहों को सिर्फ सौर परिवार का हिस्सा मानता हो, लेकिन ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से ये सिर्फ सौर परिवार का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि समस्त चराचर जगत की गतिविधियां इनसे प्रभावित होती हैं। तमाम अच्छे-बूरे प्रभावों के लिये ग्रह की दशा जिम्मेदार होती है। मनुष्य के जन्म के समय ग्रहों की दशा से ही जातक के स्वभाव का पता लगाया जाता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इन शुभ योगों में सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि, गुरु पुष्यामृत और रवियोग आदि सम्मिलित है। यात्रा का आरंभ करने, नए घर में प्रवेश करने, नए घर का कंस्ट्रक्शन शुरू करवाने या अन्य किसी भी कार्य के लिए यदि कोई शुभ या सही मुहूर्त न मिले तो सर्वार्थ सिद्धि योग में वह कार्य किया जा सकता है। यहाँ हम आपको उन्ही योगों व् शुभ मुहूर्त के बारे में बता रहे है।

जानिए वर्ष में आने वाले विभिन्न शुभ मुहूर्त व् शुभ योग को

1. सर्वार्थसिद्धि योग
जैसा की इसके नाम से जी स्पष्ट होता है की यह योग हर कार्य के लिए शुभ व् सिद्ध माने जाते है। ये बात तो आप सभी भली भांति जानते है की शुभ मुहूर्त के बिना कोई भी कार्य करना अच्छा नही होता, लेकिन कई बार मजबूरन मुहूर्त से पहले जरुरी कार्य करने पड़ सकते है। इस स्थिति में अप सर्वार्थसिद्धि योग में उस कार्य को कर सकते है। इन मुहूर्त में शुक्र अस्त, पंचक, भद्रा आदि पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ये सभी मुहूर्त अपने आप में ही श्रेष्ठ होते है। इस योग में कार्य करने से नीच ग्रहों का प्रभाव नहीं रहता और कुयोग भी समाप्त हो जाता है।यह शुभ योग वार और नक्षत्र के मेल से बनने वाला योग है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की गुरुवार और शुक्रवार के दिन अगर यह योग बनता है तो एक तिथि विशेष को यह योग बनता है। कुछ विशेष तिथियों में यह योग निर्मित होने पर यह योग नष्ट भी हो जाता है। सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, अथवा श्रवण नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है जबकि द्वितीया और एकादशी तिथि होने पर यह शुभ योग अशुभ मुहूर्त में बदल जाता है। गुरुवार और शुक्रवार के दिन अगर यह योग बनता है तो तिथि कोई भी यह योग नष्ट नहीं होता है अन्यथा कुछ विशेष तिथियों में यह योग निर्मित होने पर यह योग नष्ट भी हो जाता है। सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, अथवा श्रवण नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है जबकि द्वितीया और एकादशी तिथि होने पर यह शुभ योग अशुभ मुहूर्त में बदल जाता है।

2. अमृत सिद्धि योग
वार के साथ नक्षत्र मिलाकर एक विशेष संयोग बनता है जिसे अमृतसिद्धि योग कहा जाता है। शास्त्राकारों ने अमृत सिद्धि योग को अत्यंत शुभ और फलदायी बताया है। माना जाता है इस समय में कोई भी कार्य स्थाई रूप से आरंभ किया जाए तो वह पूर्ण रूप से फलदायी होता है। लेकिन ध्यान रहे की गुरु पुष्य के संयोग से अमृतसिद्धि योग विवाह में, शनि-रोहिणी योग का अमृत सिद्धि “प्रयाण” में तथा मंगल अश्विनी योग का अमृतसिद्धि ग्रह प्रवेश में वर्जित होता है। यह योग वार और नक्षत्र के तालमेल से बनता है। इस योग के बीच अगर तिथियों का अशुभ मेल हो जाता है तो अमृत योग नष्ट होकर विष योग में परिवर्तित हो जाता है। सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र होने पर जहां शुभ योग से शुभ मुहूर्त बनता है लेकिन इस दिन षष्ठी तिथि भी हो तो विष योग बनता है। अमृत सिद्धि योग अपने नामानुसार बहुत ही शुभ योग है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस योग के बीच अगर तिथियों का अशुभ मेल हो जाता है तो अमृत योग नष्ट होकर विष योग में परिवर्तित हो जाता है। सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र होने पर जहां शुभ योग से शुभ मुहूर्त बनता है लेकिन इस दिन षष्ठी तिथि भी हो तो विष योग बनता है।

इसके आलवा रविवार को पंचमी, सोमवार को षष्ठी, मंगल को सप्तमी, बुधवार को अष्टमी, गुरुवार को नवमी, शुक्रवार को दशमी और शनिवार को एकादशी से ये अमृत सिद्धि योग “विषयोग” बन जाते है।

3. द्विपुष्कर योग
द्विपुष्कर योग को मुख्यरूप से बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदारी के लिए चुना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस योग में खरीदी गई वस्तु भविष्य में नाम अनुसार दिगुनी हो जाती है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यह यह सोना, वाहन, घर और अन्य बहुमूल्य वस्तुएं आदि खरीदने के लिए द्विपुष्कर योग को ही शुभ बताते है।

एक और बात इन योगों में कोई भी वस्तु बेचनी नहीं चाहिए। अन्यथा भविष्य में इससे दुगनी वस्तु बेचनी पड़ सकती है। इसके अलावा यदि इन योगों के रहते कोई वस्तु गुम हो जाए या खो जाए तो भविष्य में इससे दुगना नुकसान झेलना पड़ सकता है। इसलिए इस समय खास सावधानी बरतनी चाहिए। जिस दिन यह योग हो उस दिन कोई मुकदमा दायर नहीं करना चाहिए और न ही दवाएं खरीदनी चाहिए।

4. त्रिपुष्कर योग
त्रिपुष्कर योग हुबबू द्विपुष्कर योग की ही भांति फलदायी होता है। परंतु इन दोनों योगों में केवल एक ही अंतर होता है द्विपुष्कर योग में किसी भी चीज के लाभ या हानि का दुगना फल मिलता है जबकि त्रिपुष्कर योग में यह लाभ या हानि का तिगुना फल देता है। इसलिए त्रिपुष्कर योग में भी विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ताकि भविष्य में होने वाली बड़ी हानि से बचा जा सके।

5. गुरु पुष्यामृत योग
जिस तरह सभी जानवरों में शेर सबसे अधिक शक्तिशाली होता है, उसी प्रकार सभी नक्षत्रों का सम्राट पुष्य नक्षत्र होता है। जो व्यक्ति की कुंडली और राशि के सभी प्रकार के दोषों को दूर करता है। गोचर में चौथे, आठवें, बाहरवे स्थान पर चंद्रमा होने पर भी पुष्य नक्षत्र कार्यों को सिद्ध करता है।गुरुवार और पुष्य नक्षत्र के संयोग से निर्मित होने के कारण इस योग को गुरु पुष्य योग के नाम से सम्बोधित किया गया है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यह योग गृह प्रवेश, ग्रह शांति, शिक्षा सम्बन्धी मामलों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। यह योग अन्य शुभ कार्यों के लिए भी शुभ मुहूर्त के रूप में जाना जाता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की तारा अस्त होने पर यह योग हर कार्य को संभव करता है केवल विवाह को छोड़कर। जब गुरुवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़ता है तो उसे पुष्यामृत योग कहा जाता है। जिसमे ‘रवि पुष्य तंत्र-मंत्र की सिद्धि एवं जड़ी-बूटी ग्रहण करने में तथा “गुरु-पुष्य” व्यापारिक एवं आर्थिक लाभ के कामों में विशेष रूप से उपयोगी होता है। पुष्य (उत्पात योग) होने के कारण सभी कार्यों में वर्जित है।

6. रवि पुष्य योग
इस योग का निर्माण तब होता है जब रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है। यह योग शुभ मुहूर्त का निर्माण करता है जिसमें सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस योग को मुहूर्त में गुरु पुष्य योग के समान ही महत्व दिया गया है
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की रवियोग का भी इस्तेमाल किसी भी कार्य को करने के लिए किया जा सकता है। शास्त्रों में कहा गया है की जिस प्रकार हिमालय का हिम सूर्य के उगने पर गल जाता है और कई हाथियों के समूहों को अकेला सिंह भगा देता है उसी तरह रवियोग भी सभी अशुभ योगों को समाप्त कर देता है। इस योग का प्रयोग किसी भी कार्य को बिना विघ्न के पूर्ण करने के लिए किया जा सकता है ।


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