भारत के दस महान गुरु, इनसे शिक्षा लेने आते थे देव और दानव
डेस्क-मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥ आइए, जानते हैं भारत के उन दस महान गुरुओं के बारे में जिनके बारे में मान्यता है कि स्वयं देवता और दैत्य इन गुरुओं के पास समय-समय पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते रहे हैं।
1. महर्षि वेदव्यास अषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। यही कारण है कि इस दिन को महर्षि वेदव्यास को समर्पित करते हुए व्यास जयंती या गुरु पूर्णिमा के रूप में भी सनातनधर्मी पूरी आस्था के साथ मनाते हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं भगवान विष्णु के ही अवतार थे। महर्षि का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन व्यास था। इनके पिता महर्षि पराशर तथा माता सत्यवती थी।
लोक आस्था है कि महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों, 18 पुराणों और दुनिया के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत की रचना की थी। महर्षि के शिष्यों में ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु, रोमहर्षण आदि शामिल थे।
2. महर्षि वाल्मीकि महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा गया है। भारत के सबसे प्राचीन काव्य कहे जाने वाले रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने ही की थी। मान्यता है कि वाल्मीकि पूर्व जन्म में रत्नाकर नाम के खूंखार डाकू थे जिन्हें देवर्षि नारद ने सत्कर्मों की सीख दी। डाकू रत्नाकर से साधक बने और अगले जन्म में वरुण देव के पुत्र रूप में जन्में वाल्मीकि ने कठोर तप किया तथा महर्षि के पद पर सुशोभित हुए।
महर्षि वाल्मीकि विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कारक माने जाते हैं। इनके शिष्यों में अयोध्या के राजा श्रीराम और सीता के पुत्र लव तथा कुश का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। इनकी शिक्षा और दीक्षा का ही नतीजा रहा कि श्रीराम के दोनों कुमारों ने अस्त्र-शस्त्र संचालन की ऐसी विद्या प्राप्त कर ली थी जिससे उन्होंने एक युद्ध में ना सिर्फ महाबलि हनुमान को बंधक बना लिया था बल्कि अयोध्या की सारी सेना भी इन दो कुमारों के सामने बौनी साबित हुई थी।