कामाख्या मंदिर के रोंगटे खड़े करने वाले रहस्य बताये

कामाख्या मंदिर के रोंगटे खड़े करने वाले रहस्य बताये

डेस्क-तिलिस्म की धरती जादू- टोने की जननी मायावी चेहरे जहां समय चक्र के साथ पानी का रंग लाल हो जाता है… पहाड़ का रंग नीला। विनाशकारी वेग से डराने वाली लोहित नदी का प्रचंड स्वरूप भी ब्रह्मपुत्र में समाहित होकर शांत पड़ जाता है… नदियों के बीच इकलौते नद, ब्रह्मपुत्र का विस्तार यहां पहुंचकर अबूझ अनंत जैसा दिखता है। जनश्रुतियां तो कहती हैं कि यहां की सिद्धियों में इंसान को जानवर में बदल देने की शक्ति है कुछ के लिए ये भय है और बहुतों के लिए यहां की तांत्रिक सिद्धियों के प्रभावी होने की आश्वस्ति। इसलिए तो देवी की देदीप्यमान अनुभूति के साथ श्रद्धालुओं की सैकड़ों पीढ़ियां गुजर गई। आस्था के कई कालखंड अतीत का हिस्सा बन गए। मगर विराट आस्था की नगरी कामरूप कामाख्या, तांत्रिक विद्या की सर्वोच्च सत्ता के रूप में आज भी प्रतिष्ठित है।

राजा दक्ष की बेटी सती ने पिता की मर्जी के खिलाफ़ शिव जी से शादी की थी। राजा दक्ष ने जब अपने यहां यज्ञ किया तो उसने शिव और सती को न्यौता नहीं दिया। इसके बावजूद सती अपने मायके गई जहां पिता दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक शब्द कहे। उनका उपहास उड़ाया। जिससे आहत सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर जान दे दी। अग्निकुंड में कूदने से पहले सती के नेत्र लाल हो गए उनकी भौंहें तन ग मुखमंडल प्रलय के सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त हो उठा असीम पीड़ा से तिलमिलाते हुए सती ने कहा |

महादेव का अपमान किया
इन शब्दों को कैसे सुन पा रही हूं मुझे धिक्कार है। मेरे पिता दक्ष ने मेरे महादेव का अपमान किया देवताओं तुम्हें धिक्कार है तुम भी कैलाशपति के लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के प्रतीक हैं जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को भस्म कर सकते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। पृथ्वी सुनो आकाश सुनो देवताओं तुम भी सुनो| मैं अब एक क्षण जीवित नहीं रहना चाहती… मैं अग्नि प्रवेश लेती हूं। सती की अग्नि समाधि से शिव ने प्रचंड रूप धारण कर लिया| देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर कैलाशपति उन्मत की भांति सभी दिशाओं को थर्राने लगे प्राणी से लेकर देवता तक त्राहिमाम मांगने लगे भयानक संकट देखकर भगवान विष्णु, अपने चक्र से सती के अंगों को काटकर गिराने लगे जब सती के सारे अंग कटकर गिर गए तब भगवान शंकर संयत हुए।

क्रोधित महादेव ने कामदेव को भस्म कर दिया
सती की अग्नि कुंड में समा जाने के बाद, भगवान शंकर समाधि में चले गए इसी बीच तारकासुर के उत्पात से सृष्टि कांप उठी उसका वध करने के लिए देवताओं ने भगवान शंकर की समाधि तोड़ने का यत्न किया..। देवताओं ने कामदेव को समाधि भंग करने के लिए भेजा लेकिन समाधि टूटने से क्रोधित महादेव ने कामदेव को भस्म कर दिया। जहां तक नज़रें जाती है, हर तरफ ब्रह्मपुत्र ही ब्रह्मपुत्र है ब्रह्मपुत्र की धाराओं से घिरा ये स्थान अत्यंत मनोरम है कामाख्या आने वालों का ये वैसे भी पसंदीदा जगह है लेकिन कौमारी तीर्थ पर आए श्रद्धालुओं के लिए भी ये जगह ख़ास है यहां बने शिव मंदिर का इतना महत्व है कि उमानंद के दर्शन के बिना कामाख्या के दर्शन का फल नहीं मिलता है।

भोले शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोला था
ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मपुत्र नदी के बीच बने इसी द्वीप पर समाधि में लीन भोले शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोला था समाधि भंग होने से क्रोधित भगवान शंकर ने कामदेव को यहीं भस्म कर दिया था… इसलिए इस स्थान को भस्माचल भी कहा जाता है कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना पर कैलाशपति ने कामदेव को पुनर्जीवन तो दे दिया लेकिन रूप और कांति नहीं आई। हे महादेव हे कैलाशपति! आपने मेरे स्वामी कामदेव को जीवन तो दे दिया लेकिन उनकी कांति कामदेव का उनका रूप नहीं रहा हे महादेव कृपा करो तुम दयालु हो मेरे स्वामी का तेज प्रदान करो।

Share this story