क्या ऐसे होगी शक्ति की आराधना ..???

क्या ऐसे होगी शक्ति की आराधना ..???
धर्म डेस्क - देश भर में शक्ति आराधना का पर्व चल रहा है, वैदिक ऋषियों ने प्रकृति को मातृ-शक्ति की संज्ञा दी और प्रकृति और पुरुष के रूप में सृजन शक्ति को पूजनीय बनाया। पुरुष स्वरूप शिव है और प्रकृति स्वरूप शक्ति। हिंदू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व है। ये वे नौ दिन हैं, जो न केवल लोगों के लिए मां दुर्गा की कृपा से सभी मनोकामनाओं को पूरा करने में सक्षम हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। शिव और शक्ति का सम्मिलन ही जीवन का सृजन करता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्र मां दुर्गा की आराधना का पर्व है। जो साधक पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ इन नौ दिनों में मां की आराधना करता है, उसकी सारी इच्छाएं पूरी होती हैं। शक्ति-उपासना हमें उस ब्रह्मांडीय दैवी सत्ता से जोड़ती है, जो इस पूरे विश्व की तमाम गतिविधियों और अस्तित्व का कारण है। इसमें कोई शक नहीं कि प्राचीन काल से ही शक्ति की आराधना के लिए नवरात्रों को बहुत उपयोगी माना जाता रहा है।
नवरात्र अर्थात नारी शक्ति की आराधना उत्कर्ष पर होती हैं किन्तु एक ऐसे देश में जहां शाम ढलने के बाद बाहर निकलने में महिलाओं को डर लगता है.
भारत विडंबनाओं और विरोधाभासों का देश है, इसकी सबसे अच्छी मिसाल नवरात्र में देखने को मिलती है जब लोग हाथ जोड़कर माता की प्रतिमा को प्रणाम करते हैं और हाथ खुलते ही पूजा पंडाल की भीड़ का फ़ायदा उठाने में व्यस्त हो जाते हैं.
प्रिय मित्रों/पाठकों, भारत का कमाल हमेशा से यही रहा है कि संदर्भ, आदर्श, दर्शन, विचार, संस्कार सब भुला दो लेकिन प्रतीकों को कभी मत भुलाओ. जिस देश की अधिसंख्य जनता नारीशक्ति की इतनी भक्तिभाव से अर्चना करती है उसी देश में कन्या संतान को पैदा होने से पहले ही दोबारा भगवान के पास बैरंग वापस भेज दिया जाता है, ‘हमें नहीं चाहिए यह लड़की, कोई गोपाल भेजो, कन्हैया भेजो, ठुमक चलने वाले रामचंद्र भेजो, लक्ष्मी जी को अपने पास ही रखो’.
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार अदभुत देश हमारा "भारत" है जहां ‘जय माता की’ और ‘तेरी मां की’...एक जैसे उत्साह के साथ उच्चारे जाते हैं. माता का यूनिवर्सल सम्मान भी है, यूनिवर्सल अपमान भी. नौ दिन तक जगराते होंगे, पूजा होगी, हवन होंगे, मदिरापान-मांस भक्षण तज दिया जाएगा और देवी प्रतिमा की भक्ति होगी, मगर साक्षात नारी के सामने आते ही प्रौढ़ देवीभक्त की आंखें भी वहीं टिक जाएंगी जहां पैदा होते ही टिकी थीं.
भारत में पूजा करने का अर्थ यही होता है कि रोज़मर्रा के जीवन से उस देवी-देवता का कोई वास्ता नहीं है, हमारे यहां सरस्वती पूजा में वही नौजवान सबसे उत्साह से चंदा उगाहते रहे हैं जिनका विद्यार्जन से कोई रिश्ता नहीं होता.
मां दुर्गा के स्वरूप ---
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी
तृतीयं चन्द्रघंटेति कुष्मांडेति चतुर्थकम
पंचमम स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीतिर्ता:
यानी, मां दुर्गा के 9 स्वरूप हैं- पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघंटा, चौथा कुष्मांडा, पांचवां स्कन्दमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्री, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धिदात्री।
देवी की ये 9 प्रतिमाएं हैं। नवरात्र के प्रत्येक दिन देवी के एक-एक स्वरूप की आराधना की जाती है। पहले दिल कलश-स्थापना के बाद भक्तिपूर्वक ध्वजारोहण होता है। नवरात्र में उत्तम फल पाने के लिए प्रतिदिन स्नानादि नित्यकर्म करके देवी की पूजा षोडषोपचार से करें।
माता की पूजा-अर्चना---
माता की कृपा पाने के लिए नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ, जागरण आदि मंगल कार्य भी करने चाहिए। इन 9 दिनों के दौरान पृथ्वी शयन, ब्रह्माचर्य पालन आदि का भी ध्यान रखना चाहिए। देवी व्रतों मे कुमारी पूजन को बेहद आवश्यक बताया गया है, तो नवदुर्गा की उपासनाओं का महत्व सर्वोपरि है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार मां दुर्गा की पूजा के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखनी चाहिए। मसलन पूजा में दूर्वा (यह गणेश जी को सर्वाधिक प्रिय), तुलसी और आंवला (विष्णु भगवान को प्रिय) का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए। दुर्गा जी की पूजा में लाल रंग के पुष्प उपयोग में लाएं, तो बेहतर है। बेला, कनेल, केवड़ा, चमेली, पलाश, तगर, अशोक, केसर, कदंब के पुष्पों से भी पूजा की जा सकती है। और याद रखें कि दुर्गा जी को आक और मदार के फूल पसंद नहीं हैं।
वैसे, मां दुर्गा की पूजा के दौरान गीले नहीं, बल्कि सूखे वस्त्र पहनने चाहिए। इसके अलावा, गीले और खुले बाल रखकर पूजा करना भी अनुचित माना गया है।
प्रिय मित्रों/पाठकों, ज्योतिष में बुध ग्रह को देवी दुर्गा के साथ संबोधित किया जाता है। प्रत्येक स्त्री के अंदर नवदुर्गा की शालीनता, बुद्धि एवं ज्वाला का मिश्रण बड़े ही कलात्मक ढंग से निर्मित होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्र के दिनों में अपनी हर एक कला और गुण को नव जीवन देने के लिए यह आवश्यक है कि नारी अपनी सौम्यता का संतुलन बनाए रखे। अपनी इस दैविक शक्ति को और मजबूत बनाने के लिए अपने मन को शांत रखे। क्रोध और तनाव से बुद्ध ग्रह कमजोर हो जाता है और इस ग्रह के कमजोर होने का अर्थ है स्त्री के भीतर की दैविक शक्ति का निर्बल हो जाना।’
दुर्गा इस विशाल सृष्टि की जननी हैं और सभी जीवों का पालन-पोषण करती हैं. घर की देवी यही भूमिका अपने परिवार के लिए निभाती है. आज भी दुर्गा उतनी ही प्रासंगिक हैं. आज की नारी को भी निरंतर आसुरिक शक्तियों से जूझना पड़ रहा है. अपनी अदृश्य दस भुजाओं के साथ वह निरंतर उन राक्षसी प्रवृत्तिवालों से जूझ रही हैं | शिव के अलावा केवल दुर्गा ही एक ऐसी देवी हैं, जो त्रिनेत्र धारिणी हैं. उनका बायां नेत्र चंद्रमा का प्रतीक है, जो हमारे भीतर स्थित लालसा, मोह और कामना को व्यक्त करता है. उनका दायां नेत्र सूर्य का प्रतीक है, जो हमारे भीतर स्थित तेज, कर्म क्षमता और शक्ति का सूचक है. और इनके मध्य भाग में स्थित उनका तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है, जो ज्ञान, विवेक और बुद्धि का सूचक है |
पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुरों के राजा महिषासुर को यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी मानव, देव या असुर उसको पराजित नहीं कर सकता. यह वरदान देते समय सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने उससे पूछा कि क्या मानव, देव या असुर की इस सूची में स्त्री को भी शामिल कर लिया जाए, ताकि कोई स्त्री भी उसे पराजित नहीं कर पाए? यह सुन कर उसका अहंकार जाग उठा. उसे लगा कि किसी स्त्री को पराजित करना भला कौन-सा कठिन काम होगा. इसलिए उसने इस वर को ठुकरा दिया |
शक्ति के बिना शिव मात्र शव रह जाता है। वैदिक ऋषियों द्वारा इस मात्र शक्ति को सर्वोपरि मानते हुए ही कहा है-
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
अर्थात हे माँ, धरती पर विचरण करनेवाले तुम्हारे सरल पुत्र तो बहुत से होंगे, किन्तु मैं उनसे भिन्न प्रकृति का तुम्हारा पुत्र हूँ । हे शिवे ! फिर भी तुम मुझे त्याग दो, यह उचित न होगा, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो यह तो संभव है, किन्तु माता कभी कुमाता नहीं हो सकती
न मंत्रं नो यंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणं
हे माते ! मन्त्र, यन्त्र, स्तुति, आवाहन, ध्यान, और
स्तुतिकथा आदि के माध्यम से उपासना कैसे की जाती
है, मैं नहीं जानता । मुद्रा तथा विलाप आदि के प्रयोग
से तुम्हारा पूजन कैसे करूँ, यह भी मैं नहीं जानता ।
हे माता, मैं तो बस इतना ही जानता हूँ कि तुम्हारा
अनुसरण समस्त क्लेशों का हरण करता है ।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार भारतीय संस्कृति में माता को पूजनीय माना गया है, वैसे भी देखा जाए तो संसार का प्रथम रिश्ता ही माँ से प्रारभ होता है। बच्चा जन्म लेने के पश्चात सर्वप्रथम माँ ही बोलता है। शिशु सर्वप्रथम अपनी माँ और उसके स्पर्श को ही पहचानता है।
प्रिय मित्रों/पाठकों, दुर्गा का शाब्दिक अर्थ है दुर्ग या किला. एक ऐसी सुरक्षित जगह, जिसे जीतना या काबू में करना बेहद मुश्किल हो. इसे हमारी रक्षा के लिए घर की स्त्री निर्मित करती है. वह उस गृह दुर्ग की देवी है. दुर्गा इस विशाल सृष्टि की जननी हैं और सभी जीवों का पालन-पोषण करती हैं. घर की देवी यही भूमिका अपने परिवार के लिए निभाती है. वर्तमान समय मे/आज भी दुर्गा उतनी ही प्रासंगिक हैं. आज की नारी को भी निरंतर आसुरिक शक्तियों से जूझना पड़ रहा है. अपनी अदृश्य दस भुजाओं के साथ वह निरंतर उन राक्षसी प्रवृत्तिवालों से जूझ रही है|
कभी मनुष्य के रूप में, कभी भैंसे पर सवार राक्षस के रूप में. जैसे आज कोई अपराधी कभी परिवार का सदस्य बन कर आता है, कभी दोस्त बन कर और कभी लुटेरा बन कर. अपराध बाहर होते हैं, पर शोषण घर और परिवार के भीतर भी होता है. पर, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कथा में अंतत: देवी ही महिषासुर के विनाश का कारण बनती हैं |
इस कहानी में हम दुर्गा को ज्ञान, बुद्धि और विवेक के रूप में देखते हैं, जो सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक बंधनों से परे हैं. वे सामूहिक शक्ति का प्रतीक हैं. महिषासुर अज्ञान, अहंकार और हमारी लालसाओं का प्रतिनिधित्व करता है. उसके मायावी होने और निरंतर रूप बदलने का आशय है हमारा अनियमित व्यवहार और हमारी विनाशकारी भावनाएं. महिषासुर उसी तरह से बार- बार आकार बदल कर प्रकट होता है, जैसे हमारी बुद्धि लगातार भोग की एक लालसा से दूसरी लालसा की ओर आकर्षित होती है और उनके पीछे भागती है. असुर का अत्यधिक क्रोध हमारी वही वृत्ति है, जो बिना कुछ सोचे-समझे अपनी लालसाओं की राह में आनेवाली हर चीज को ध्वस्त करना चाहती है. यह आज के समाज में व्याप्त कलुष को भी प्रदर्शित करता है |
माँ वैष्णों देवी के संदर्भ में कथा प्रचलित है कि नन्हीं वैष्णवी ने जब भैरों की अनुचित मांग को ठुकराया तो उस समय वह अबोध कन्या थीं। वह भागते हुए त्रिकुटा पर्वत पर गर्भजून में छुप गई और वहां रहकर तपस्या की। असीम तप से जब वह सर्वशक्तिमान हुईं तब उन्होंने भैरों का मुकाबला किया।
यह कथा असल में प्रतीक है। जीवन की राह में आने वाली मुश्किलों का यदि तत्काल सामना नहीं कर पा रहे तो थोड़ी प्रतीक्षा करें। नवरात्र शक्ति की उपासना का पर्व है। जिस आत्मिक ऊर्जा पर अनावश्यक तनाव और अवसाद की धूल चढ़ने लगती है, उसे हर छह माह में झाड़-पोंछकर फिर से ताजा कर लिया जाना चाहिए।
बुरा नहीं है रण छोड़ना -- ‘यूं तो रणछोड़ एक गाली सी लगती है, लेकिन कई बार रण छोड़ना जरूरी भी होता है। मैं जिस संगठन में काम कर रही थी वहां कुछ चीजें मुझे पसंद नहीं थीं। मैंने अपने मतभेद उनके सामने रखने की कोशिश की, लेकिन लगा वहां ऊपर से नीचे तक सभी एक ही मानसिकता के लोग हैं। आज के दौर में अक्खड़ होना जितना बुरा है, उतना ही अच्छा है स्पष्टवादी होना। देवासुर संग्राम में देवी मां अंतत: देवताओं का सहारा बनीं। शिव की शक्ति जगत विख्यात है।
जिनके लिए गैर सरकारी संगठन सेवा नहीं धन और यश पाने का माध्यम होते हैं। मैंने उनकी अपेक्षाओं पर खुद को अनफिट पाया और वहां से निकल आई। बेवजह अपने आपको साबित करने के चक्कर में कई बार हम दलदल में फंसते चले जाते हैं। जिससे श्रम, समय और ऊर्जा नष्ट होती है। इन सबको बचाए रखने के लिए जरूरी है कि गलत लगने वाली जगह तत्काल छोड़ दी जाए।’
पहले समर्थ बनें |संकोच और डर को त्यागकर इन संकटों का सामना करना है। इन दिनों टेक्नोलॉजी का बोलबाला है। सुविधा के लिए बनाई गई ये चीजें कई बार संकट का कारण भी बनती हैं, पर यह तभी होता है जब हम खुद के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें, पर कॉन्फीडेंस से। सिर्फ एक-दूसरे को देखकर इसके पीछे न भागें, बल्कि पहले इसके लिए जरूरी ज्ञान जुटाएं फिर आगे बढ़ें।’
आधुनिक परिवेश में यदि देखा जाए तो भारतीय रचनाकारों ने भी माँ की महिमा का बखान किया है। माँ की करुणा, ममता, संघर्ष, धैर्य, आस्था, प्यार, समर्पण, त्याग, परिवार के प्रति समर्पण, रिश्तों को निभाने के लिए किए गए प्रयत्न, परिवारिक संस्कारों का संरक्षण, आदि विभिन्न आयामों पर अपनी भावांजलि दी है।
प्रिय मित्रों/पाठकों, इस संसार मेन स्त्री स्वरूप की पूजा तभी हो सकती है जब वह शेर पर सवार हो, उसके हाथों में तलवार-कृपाण-धनुष-वाण हो या फिर उसे जीते-जी जलाकर सती कर दिया गया हो, दफ़्तर जाने वाली, घर चलाने वाली, बच्चे पालने वाली, मोपेड चलाने वाली औरतें तो बस सीटी सुनने या कुहनी खाने के योग्य हैं. भक्तिभाव से नवरात्र की पूजा में संलग्न कितने लाख लोग हैं जिन्होंने अपनी पत्नी को पीटा है, अपनी बेटी और बहन को जकड़ा है, अपनी मां को अपने बाप की जागीर माना है. वे लोग न जाने किस देवी की पूजा कर रहे हैं |
भक्तिभाव से नवरात्र की पूजा में संलग्न कितने लाख लोग हैं जिन्होंने अपनी पत्नी को पीटा है, बेटी और बहन को जकड़ा है, मां को अपने बाप की जागीर माना है. वे लोग न जाने किस देवी की पूजा कर रहे हैं |
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार भवानी प्रकृति हैं और शिव पुरूष हैं, यह हिंदू धर्म की आधारभूत अवधारणा है. दोनों बराबर के साझीदार हैं इस सृष्टि को रचने और चलाने में. मगर पुरुष का अहंकार पशुपतिनाथ को पशु बनाए रखता है इसका ध्यान कितने भक्तों को है |
जिस दिन पंडाल में बैठी प्रतिमा का नहीं, दफ़्तर में बैठी सांस लेती औरत का सच्चा सम्मान होगा, जिस दिन शेर पर बैठी दुर्गा को नहीं, साइकिल पर जा रही मोहल्ले की लड़की को भविष्य की गरिमामयी मां के रूप में देखा जाएगा, उस दिन भारत में नवरात्र के उत्सव में भक्ति के अलावा सार्थकता का भी रंग होगा |
प्रिय मित्रों/पाठकों, मां की महिमा अपरंपार है। सच्चे मन से मां से मांगी गई मुराद कभी खाली नहीं जाती। हमारे सेट पर जो मां का मंदिर है वो मंदिर बहुत खास है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कई बार कुछ चीजें वहां हमने महसूस की हैं। कहते भी हैं कि जहां विश्वास है वहीं मां का वास है। मेरी सोच है कि कभी किसी दुर्बल को मत सताइए। मां की कृपा आप पर हमेशा बनी रहेगी। कोशिश कीजिये कि आपके द्वारा किसी का अनजाने में भी दिल न दुखे/परेशानी/दुःख/तकलीफ ना हो...
पंडित दयानंद शास्त्री

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