पूर्वजों की याद में पौधरोपण अब तक लग चुके 1757 पौधे

पूर्वजों की याद में पौधरोपण अब तक लग चुके 1757 पौधे

औरैया--पौधरोपण की मुहिम आपने बहुत सुना होगा लेकिन पूर्वजों की याद में पौधरोपण किये जाने की मुहिम ने ऐसा रंग लाया की अब लोग अपने लोगों को याद करते हुए प्रकृति को भी बना रहे हैं ।

औरैया के दिवियापुर की रहने वाली 14 वर्षीय छात्रा नेहा कुशवाहा ने शिक्षक मनीष कुमार के मार्गदर्शन में तीन साल पहले वर्ष 2015 में दिनांक 07 मार्च से अपनी पौधरोपण मुहिम की शुरुआत की थी । जिसके अंतर्गत अब तक 1757 पौधे रोपित किए गए। पौधे हम सभी के लिए शुद्ध वायु का उत्पादन करने में योगदान दे रहे हैं ।

नेहा ने शुरुआती दौर में मनीष कुमार के मार्गदर्शन में " पूर्वजों की याद में पौधरोपण" अभियान के तहत केवल अपने खेत के एक कोने पर किये गये शवदाह की रिक्त भूमि पर "पवित्र भूमि - पवित्र पेड़" नाम से गांव-गांव सर्वे करके लोगों को पौधरोपण करने के लिए जागरूक किया । नेहा कुशवाहा ने बताया अपने पिता जी के सहयोग से गांव-गांव जाकर लोगों को बताती थी कि जब किसी शव को लकड़ी से जलाया जाता है तो लगभग 4 कुन्तल लकड़ी जल जाती है जिससे करीब 734 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (CO²) का उत्सर्जन होता है जो ग्लोबल वार्मिंग ( वैश्विक तापन) के लिए अन्य ग्रीनहाउस गैसों की तुलना में 60प्रतिशत तक उत्तरदायी है ।

साथ ही प्रयुक्त भूमि की उर्वरता भी घट जाती है । जबकि एक पेड़ अपने जीवन काल में 1000 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करता है अतः सन्तुलन के लिए एक शव को जलाने के बाद उस मृत-आत्मा की याद में एक पौधा लगाना अति आवश्यक है । क्योंकि पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके पर्यावरण को संरक्षित करते हैं एवं मौसम और जलवायु को नियंत्रित करते हैं ।

मेरे द्वारा समझाये जाने पर ग्रामीण क्षेत्र के कुछ लोगों ने रुढ़िवादी विचारधारा को दरकिनार कर दाह-संस्कार की रिक्त पवित्र भूमि पर पौधरोपण की सहमति दी , कुछ ने अपने पूर्वजों की याद में अन्यत्र पौधरोपण की सहमति दी । जबकि कुछ ने मैरे कार्य को बकवास बताया और कहा कि जो मेरे अपने हमारे लिए सब कुछ छोड़ कर चले गए तो क्या हम उनके लिए अपने खेत के एक कोने में जगह छोड़कर यादगार स्थल नहीं बनवा सकते ।

नेहा ने बताया मेरे लिए गांव के लोगों को पौधरोपण के लिए जागरूक करना एवरेस्ट फतह के समान रहा ।

कुछ लोगों ने हमारे कार्य से जागरूक होकर अपनी निजी भूमि पर भी अधिक से अधिक संख्या में पौधरोपण किया और उन्हें भी हमने निशुल्क पौधे उपलब्ध कराये ।

सामाजिक मंचों के द्वारा लोगों को जागरूक किया साथ ही कथा, भागवत, जन्म या जन्मदिन , शादी- विवाह के अवसर पर भी हम उन्हें एक पौधा भेंट कर देते हैं । तो लोग सहर्ष स्वीकार कर लेते है। जबकि लोगो को भी पता रहता है कि पेड़ ही हमारी सांसें हैं । पेड़ हैं, तो हम हैं अन्यथा हमारा अस्तित्व खत्म हो जाएगा ।

विशाल त्रिपाठी

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