हाँ मैं मजदूर हूँ ...

हाँ मैं मजदूर हूँ ...

हाँ मैं मजदूर हूँ ...
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मैं मजदूर हूँ ,,
हाॅ मैं मजदूर हूँ ,,
नहीं आता मुझे ...
झूठा दिखावा करना ।

बस मेहनत से ,,
वास्ता है मेरा ,,
नहीं आता मुझे ...
झूठे ख्वाब सजाना ,,
जिन्हें ताउम्र मैं ,,
यथार्थ में न बदल सकूं ।

नहीं हैं मेरी ख्वाहिशें ,,
इतनी बड़ी की ,,
मेरे पैरों तले ...
रौंदा जाए कोई ??

बस एक छोटा सा ,,
आशियाना है मेरा ...
जिसमें मैं शुकून की ,,
सांसे लेता हूँ ।

छोटा सा परिवार है मेरा ,,
जिनके साथ मैं ,,
बहुत खुश रहता हूँ ,,
दिन भर मेहनत करता हूँ ...
और रात में शुकून की ,,
नींद सोता हूँ ।

रचना - सरिता तिवारी
गोंडा ( यूपी )

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