जाने क्या होता हैं अग्निवास, अग्निवास का महत्त्व और प्रभाव एवं हवन/यज्ञ सम्बंधित अन्य आवशयक जानकारी

जाने क्या होता हैं अग्निवास, अग्निवास का महत्त्व और प्रभाव एवं हवन/यज्ञ सम्बंधित अन्य आवशयक जानकारी

डेस्क-हमारे धार्मिक ग्रंथों में किसी भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय विधान है और हवन करने हेतु भी कुछ नियम बताये गए हैं जिसका अनुसरण करना अति आवश्यक है ,अन्यथा अनुष्ठान का दुष्परिणाम भी आपको झेलना पड़ सकता है । इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है हवन के दिन‘अग्नि के वास ‘ का पता करना ताकि हवन का शुभ फल आपको प्राप्त हो सके । पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार हवन का शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि प्रकृति को भी लाभ पहुंचाता है। यज्ञ को अग्निहोत्र कहते हैं। अग्नि ही यज्ञ का प्रधान देवता हे। हवन-सामग्री को अग्नि के मुख में ही डालते हैं। अग्नि को ईश्वर-रूप मानकर उसकी पूजा करना ही अग्निहोत्र है। अग्नि रूपी परमात्मा की निकटता का अनुभव करने से उसके गुणों को भी अपने में धारण करना चाहिए एवं उसकी विशेषताओं को स्मरण करते हुए अपनी आपको अग्निवत् होने की दिशा में अग्रसर बनाना चाहिए। नीचे अग्नि देव से प्राप्त होने वाली शिक्षा तथा प्रेरणा का कुछ दिग्दर्शन कर रहे हैं |

पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कोई भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय विधान है और हवन करने हेतु भी कुछ नियम बताये गए हैं जिसका अनुसरण करना अति आवश्यक है , अन्यथा अनुष्ठान का दुष्परिणाम भी आपको झेलना पड़ सकता है । इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है हवन के दिन ‘अग्नि के वास ‘ का पता करना ताकि हवन का शुभ फल आपको प्राप्त हो सके ।

हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है

पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार विज्ञान भी हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्वलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले प्राकृतिक लाभ की पुष्टि करता है। हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुण्ड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुँचाने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं).हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आस पास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।

पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार हमारे शास्त्रों में अग्नि के वास के बारे में लिखा गया है कि अग्नि का वास तीन जगह पर होता है जैसे आकाश में ,,पाताल में ,और धरती (पृथ्वी ) पर हमे हवन तभी करना या करवाना चाहिए जब अग्नि का वास पृथ्वी (धरती ) पर हो उस दिन किया या करवाया गया हवन कल्याणकारी यानि शुभ फलदायक होता है उस दिन किया गया हवन घर परिवार के लिए बहुत ही शुब फलदायक होता है सुख समृद्धि दायक होता है ..अगर अग्नि का वास पाताल में हो तो उस दिन हवन करने या करवाने से धन का नुक्सान होता है उस दिन हवन करने या करवाने से घर -परिवार में धन के नुक्सान होने लग जाते है मशीने या इलेक्ट्रॉनिक चीजें ख़राब होने लग जाती है कई बार लोगो को कहते सुना होगा कि जब से पाठ -हवन करवाया है घर परिवार में किसी न किसी तरह का नुक्सान ही होता जा रहा है

आयु और सेहत शरीर का नुक्सान होने का डर होता है

यदि अग्नि का वास आकाश में हो तो उस दिन हवन करने या करवाने से घर -परिवार में किसी न किसी की आयु / सेहत शरीर का नुक्सान होने का डर होता है उस घर -परिवार वालों में से कोई न कोई बीमार होकर हॉस्पिटल के चक्कर लगाता रहता होगा यानि घर में शारीरक / मानसिक कष्ट -परेशानियां आती हुए नज़र आएँगी उस घर के ज्यादातर लोग कष्ट परेशानियों में नज़र आते होंगे इत्यादि ||

यज्ञ को अग्निहोत्र कहते हैं। अग्नि ही यज्ञ का प्रधान देवता हे। हवन-सामग्री को अग्नि के मुख में ही डालते हैं। अग्नि को ईश्वर-रूप मानकर उसकी पूजा करना ही अग्निहोत्र है। अग्नि रूपी परमात्मा की निकटता का अनुभव करने से उसके गुणों को भी अपने में धारण करना चाहिए एवं उसकी विशेषताओं को स्मरण करते हुए अपनी आपको अग्निवत् होने की दिशा में अग्रसर बनाना चाहिए। नीचे अग्नि देव से प्राप्त होने वाली शिक्षा तथा प्रेरणा का कुछ दिग्दर्शन कर रहे हैं

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