हरियाणा : दिव्यांगों की राह में आ रही मुश्किलों की आवाज बनीं प्रो. सुषमा

हरियाणा : दिव्यांगों की राह में आ रही मुश्किलों की आवाज बनीं प्रो. सुषमा

कुरुक्षेत्र । सार्वजनिक स्थलों पर दिव्यांगों के सामने आने वाले अवरोधों को देख इन्हें दूर कराने के लिए प्रो. सुषमा शर्मा ने जो आवाज उठाई थी, उसका असर दिखने लगा है। तीर्थस्थलों से लेकर सार्वजनिक भवनों में कई जगह सीढ़ियों के साथ अब रैंप भी बनाए जा रहे हैं।

महाभारत की धरती पर बने ब्रह्मसरोवर, श्रीकृष्ण संग्रहालय और पैनोरमा के अलावा कई तीर्थस्थलों पर दिव्यांग के लिए रैंप की व्यवस्था की गई है। अब सुषमा शर्मा सार्वजनिक शौचालयों, अन्य जरूरी सेवाओं जैसे पीने के पानी की जगह, कैंटीन व अन्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए रास्ते में आने वाले अवरोध को दूर कराने के प्रयास में जुटी हैं। इनमें भी सबसे पहले खासकर ऐसी जगहों को केंद्रित किया जा रहा है जहां पर हर रोज हजारों लोगों की आवाजाही रहती है। इनमें कुरुक्षेत्र के कई तीर्थ स्थल शामिल हैं।

पहले स्थानों को किया चिन्हित

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त डॉ. सुषमा शर्मा बताती हैं कि उन्होंने दिव्यांगों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली संस्था 'स्वयं' के साथ मिलकर कुरुक्षेत्र के सभी ऐसे तीर्थस्थलों का भ्रमण किया, जहां व्हीलचेयर लेकर नहीं जाया जा सकता था। उन स्थानों को चिन्हित कर आवाज उठाई व प्रशासन को लिखा। इसके बाद उन स्थानों पर रैंप बनाने का कार्य शुरू हुआ।

महसूस की पति की पीड़ा

डॉ. सुषमा शर्मा के पति भी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं और दिव्यांग (दृष्टिहीन) हैं। सार्वजनिक स्थलों पर दिव्यांगों के सामने आने वाली समस्याओं को उन्होंने समझा और उन बाधाओं को दूर करने के सुझाव भी दिए। उनकी कोशिश है कि सभी तीर्थस्थल सभी की पहुंच में होने चाहिए, इन सभी जगहों पर इस तरह की व्यवस्था जरूरी है कि कोई भी दिव्यांग अपनी व्हीलचेयर व सुविधाओं का लाभ उठाते हुए वहां तक पहुंच सके।

सभी की पहुंच में सड़कें

डॉ. सुषमा शर्मा ने कहा कि सड़कों का निर्माण करते समय भी इस बात का ध्यान रखना होगा की यह सभी की पहुंच में हो। इसमें और सुधार करते हुए पैदल चलने वाली जगहों पर खास तरह की टाइल्स लगाई जा सकती हैं, जिनसे किसी भी नेत्र दिव्यांग को अपना रास्ता पहचानने में आसानी हो। इसके अलावा कुछ ऐसी दीवारें, रेसलिंग और लिफ्ट में ब्रेल लिपि का उपयोग हो ताकि कोई भी नेत्र दिव्यांग अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच जाए।

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