जानिए कैसे करें जन्म कुंडली मे इष्ट की पहचान

जानिए कैसे करें जन्म कुंडली मे इष्ट की पहचान
डेस्क- कैसे करें जन्म कुंडली मे इष्ट देव की पहचान ?संसार का प्रत्येक जीव अपने अपने समय में अपने अपने गण को लेकर पैदा होता है। जो जिसका गण होता है उसी के अनुसार व्यक्ति के इष्ट को समझा जाता है|जन्म कुंडली में बारह राशिया है और लगन में जो राशि होती है उस राशि का मालिक ही व्यक्ति के गण का मालिक होता है उस मालिक के गण का प्रमुख देवता कौन सा है वह अपने अपने धर्म के अनुसार ही माना जाता है। शास्त्रों की मान्यतानुसार अपने इष्ट देव की आराधना करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया आपके आराघ्य इष्ट देव कौन से होंगे इसे आप अपनी जन्म तारीख, जन्मदिन, बोलते नाम की राशि या अपनी जन्म कुंडली की लग्न राशि के अनुसार जान सकते हैं।
भारतीय संस्कृति ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम है। इनकी अपनी अपनी महत्ता है कोई ज्ञान के आधार पर अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढता है तो तो कोई कर्म को अपना माध्यम बनाता है तो कोई भक्ति भाव को आधार बनाकर मुक्ति पाना चाहता है।
ज्ञान, कर्म और भक्ति में भक्ति को सहज और शीघ्र प्राप्ति वाला मार्ग बताया गया है।
कैसे करें ? इष्टदेव की पहचान
इष्ट देव कैसे चुने?
अपना इष्ट देव चुनने में निम्न बातों का ध्यान देना चाहिए।
आत्मकारक ग्रह के अनुसार ही इष्ट देव का निर्धारण व उनकी अराधना करनी चाहिए।
भक्ति और आध्यात्म से जुड़े अधिकांश लोगों के मन में हमेशा यह प्रश्न उठते रहता है |
मेरा ईष्टदेव कौन है और हमें किस देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
किसी भक्त के प्रिय शिव जी हैं तो किसी के विष्णु तो कोई राधा कृष्ण का भक्त है तो कोई हनुमानजी का। और कोई कोई तो सभी देवी देवताओ का एक बाद स्मरण करता है। परन्तु एक उक्ति है कि “एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय”। जैसा की आपको पता है कि अपने अभीष्ट देवता की साधना तथा पूजा अर्चना करने से हमें शीघ्र ही मन चाहे फल की प्राप्ति होती है।
इष्टदेव कैसे दिलाते हैं सफलता-
अब प्रश्न होता है कि देवी देवता हमें कैसे लाभ अथवा सफलता दिलाते हैं|
जब हम किसी भी देवी-देवता की पूजा करते है तो हम अपने अभीष्ट देवी देवता को मंत्र के माध्यम से अपने पास बुलाते है|
आह्वाहन करने पर देवी देवता उस स्थान विशेष तथा हमारे शरीर में आकर विराजमान होते है ।
वास्तव में सभी दैवीय शक्तियां अलग-अलग निश्चित चक्र में हमारे शरीर में पहले से ही विराजमान होती है |आप हम पूजा अर्चना के माध्यम से ब्रह्माण्ड सेउपस्थित दैवीय शक्ति को अपने शरीर में धारण कर शरीर में पहले से विद्यमान शक्तियों को सक्रिय कर देते है और इस प्रकार से शरीर में पहले से स्थित ऊर्जा जाग्रत होकर अधिक क्रियाशील हो जाती है। इसके बाद हमें सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
ज्योतिष के माध्यम से हम पूर्व जन्म की दैवीय शक्ति अथवा ईष्टदेव को जानकर तथा मंत्र साधना से मनोवांछित फल को प्राप्त करते है।
इष्टदेव निर्धारण के विविध आधार--
  • ईष्टदेव को जानने की विधियों में भी विद्वानों में एक मत नही है।
  • कुछ लोग नवम् भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर ईष्टदेव का निर्धारण करते है।
  • वही कुछ लोग पंचम भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर ईष्टदेव का निर्धारण करते है।
  • कुछ विद्वान लग्न लग्नेश तथा लग्न राशि के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है।
  • त्रिकोण भाव में सर्वाधिक बलि ग्रह के अनुसार भी इष्टदेव का चयन किया जाता है।
  • कुंडली में आत्मकारक ग्रह के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करना चाहिए।
इष्टदेव का निर्धारण पंचम भाव के आधार पर-
ईष्टदेव या देवी का निर्धारण हमारे जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है। ज्योतिष में जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित धर्म, कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा,भक्ति और इष्टदेव का बोध होता है। यही कारण है अधिकांश विद्वान इस भाव के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है।नवम् भाव सेउपासना के स्तर का ज्ञान होता है ।
पंचम भाव में आधार पर इष्ट देव का चयन---
सूर्य- विष्णु तथा राम
चन्द्र- शिव, पार्वती, कृष्ण
मंगल- हनुमान, कार्तिकेय, स्कन्द,
बुध- दुर्गा, गणेश,
वृहस्पति- ब्रह्मा, विष्णु, वामन
शुक्र- लक्ष्मी, मां गौरी
शनि- भैरव, यम, हनुमान, कुर्म,
राहु- सरस्वती, शेषनाग, भैरव
केतु- गणेश, मत्स्य
पंचम भाव में स्थित राशि के आधार इष्टदेव का निर्धारण---
मेष: सूर्य, विष्णुजी
वृष: गणेशजी।
मिथुन: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कर्क: हनुमानजी।
सिह: शिवजी।
कन्या: भैरव, हनुमानजी, काली।
तुला: भैरव, हनुमानजी, काली।
वृश्चिक: शिवजी।
धनु: हनुमानजी।
मकर: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कुंभ: गणेशजी।
मीन: दुर्गा, सीता या कोई देवी।
राशि के आधार पर :
पंचम स्थान में स्थित राशि के आधार पर आपके इष्ट देव इस प्रकार है
मेष: सूर्य या विष्णुजी की आराधना करें।
वृष: गणेशजी।
मिथुन: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कर्क: हनुमानजी।
सिंह: शिवजी।
कन्या: भैरव, हनुमानजी, काली।
तुला: भैरव, हनुमानजी, काली।
वृश्चिक: शिवजी
धनु: हनुमानजी।
मकर: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कुंभ: गणेश जी
मीन: दुर्गा, राधा, सीता या कोई देवी।
जन्म माह : जिन्हें केवल जन्म का माह ज्ञात है, उनके लिए इष्ट देव इस प्रकार होंगे-
  • जन्म जनवरी या नवंबर माह में हुआ हो वे शिव या गणेश की पूजा करें।
  • फरवरी में जन्मे शिव की उपासना करें।
  • मार्च व दिसंबर में जन्मे व्यक्ति विष्णु की साधना करें।
  • अप्रेल, सितंबर, अक्टूबर में जन्मे व्यक्ति गणेशजी की पूजा करें।
  • मई व जून माह में जन्मे व्यक्ति मां भगवती की पूजा करें।
  • जुलाई माह में जन्मे व्यक्ति विष्णु व गणेश का घ्यान करें।
जन्म वार से : जिनको वार का पता हो, परंतु समय का पता न हो, तो वार के अनुसार इष्ट देव इस प्रकार होंगे-
रविवार- विष्णु
सोमवार- शिवजी।
मंगलवार- हनुमानजी
बुधवार- गणेशजी
गुरूवार- शिवजी
शुक्रवार- देवी
शनिवार- भैरवजी।
लग्नानुसार जाने अपने इष्ट देव
मेष लग्न
सूर्य देवता, गायत्री देवी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
वृषभ लग्न
बुध देवता, गणेश जी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
मिथुन लग्न
शुक्र देवता , माँ दुर्गा आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
कर्क लग्न
मंगल देवता , हनुमान जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
सिंह लग्न
देव गुरु बृहस्पति, विष्णु जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
कन्या लग्न
शनि देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
तुला लग्न
शनि देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
वृश्चिक लग्न
देव गुरु बृहस्पति, विष्णु जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
धनु लग्न
मंगल देवता, हनुमान जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
मकर लग्न
शुक्र देवता , माँ दुर्गा आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
कुम्भ लग्न
बुध देवता, गणेश जी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
मीन लग्न
चंद्र देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी|
इस तरह अपने सही इष्ट को पहचान कर उसकी नित्य आराधना करने वाले को आरोग्य, सौभाग्य, सम्मान, इष्टवल, एवं योग्यता की प्राप्ती होती है|
पारिवारिक व् व्यक्तिगत पूजा-अनुष्ठान के सन्दर्भ में सिद्धि-साधना भिन्न पथ है |किन्तु सामान्य पूजा अनुष्ठान में सर्वत्र सामान्य लोग अपने कल्याण -सुख -संमृद्धि के लिए देवी-देवता की पूजा करते है ,किन्तु फिर भी उन्हें कभी -कभी अपेक्षित लाभ नहीं मिलता ,कल्याण नहीं होता कभी-कभी तो कष्ट -परेशानिया बढ़ भी जाती है ,इसमें थोड़ी सी नासमझी के कारण लोग भारी अनिष्ट और भाग्य विकार को आमंत्रित करते है भला कल्याणकारक देवी-देवता अनिष्ट कैसे कर सकते है ,तो यहाँ गलती गलती यह हो रही है की सभी देवी-देवता कल्याणकारी है ,परन्तु वे तब कल्याणकारी है| जब आपको उनकी आवश्यकता है |
अपने ईष्टदेव को पहचानने के लिए आपको आपकी जन्म-कुंडली की आवश्यकता होगी। जन्म कुंडली को ध्यान से देखें उसमें जिस स्थान पर ग्रहों के अंश दिए गए होते हैं वहां किस ग्रह को सबसे अधिक अंश प्राप्त हैं। जिस ग्रह को सबसे अपने ईष्टदेव को पहचानने के लिए आपको आपकी जन्म-कुंडली की आवश्यकता होगी। जन्म कुंडली को ध्यान से देखें उसमें जिस स्थान पर ग्रहों के अंश दिए गए होते हैं वहां किस ग्रह को सबसे अधिक अंश प्राप्त हैं। जिस ग्रह को सबसे अधिक अंश प्राप्त होंगे वो ग्रह आपकी कुंडली का आत्मकारक ग्रह कहलाता है।
ये ग्रह ही आपके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यही ग्रह बताता है कि हमारे ईष्टदेव कौन- कौन से हेै--
1. सूर्य- सूर्य आपके आत्म्कारक ग्रह हैं तो भगवान विष्णु और उनके अवतार भगवान राम आपके ईष्ट देवता होंगे।
2.चंद्रमा- भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान कृष्ण ईष्ट देव होंगे।
3.मंगल- मंगल आत्म्कारक ग्रह होने पर हनुमान, भगवान कार्तिकेय और नरसिंह भगवान आपके ईष्टदेवता होंगे।
4. बुध- भगवान गणेश और माता दुर्गा आपके ईष्ट देव होंगे।
5. बृहस्पति- भगवान विष्णु और उनके वामन अवतार आपके ईष्ट देवता होंगे अगर बृहस्पति आपके आत्म्कारक ग्रह हैं।
6. शुक्र- माता लक्ष्मी और परशुराम अवतार आपके ईष्ट देवता होंगे।
7.शनि- भैरव, यमराज, कुर्मावतार और हनुमान जी आपके ईष्ट देवता होंगे।
8.राहु- माता सरस्वती और शेषनाग आपके ईष्ट देवता होंगे।
9. केतु- भगवान गणेश और मत्स्य अवतार आपके ईष्ट देवता होंगे।
ईश्वर एक हैं और उन्होंने हमारी सुविधा के लिए इतने सारे अवतार लिए हैं चाहे उनकी जिस रूप में पूजा करो, वो पूजा लगती उसी ईश्वर को लगती है। इसलिए ये बात हमेशा ध्यान रहनी चाहिए कि किसी के धर्म और रास्ते को गलत नहीं बताना चाहिए | अंश प्राप्त होंगे वो ग्रह आपकी कुंडली का आत्मकारक ग्रह कहलाता है। ये ग्रह ही आपके जीवन में महत्वपूर्ण है|

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