समलेंगिकता और ज्योतिष के योग

समलेंगिकता और ज्योतिष के योग

डेस्क -आजकल समलैंगिकता को लेकर चारों तरफ जोर-शोर से चर्चा हो रही है |कुछ देशों में इसे सामाजिक और कानूनी मान्यता है तो कुछ में इसकी मान्यता को लेकर लड़ाई चल रही है.ऐसे में ज्योतिष शास्त्र में भी इसके विशेष योगों की तलाश जरुरी है | भारतीय ज्योतिष में जो योग व्यभिचार की श्रेणी में है और अलग से किसी भी तरह से पीड़ित है तो लोग समलैंगिकता की ओर आकर्षित होते हैं | पुरुष समलिंगी को अंग्रेजी में गे (Gay) कहते हैं और महिला समलिंगी को लैस्बियन (Lesbian) कहा जाता है। समलैंगिकता का अस्तित्व प्राचीनकाल से ही सभी देशों में पाया गया है। लेकिन यह कभी उस रूप में नजर नहीं आया जैसा कि आधुनिक युग में देखने में आता है। आधुनिक युग में कुछ देशों ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दे दी है तो कुछ देश इसके सख्त खिलाफ है | समलैंगिकता एक रोग है। यह प्रकृति के खिलाफ है। दुनियाभर में समलैंगिकता का ग्रॉफ बढ़ता जा रहा है। जहाँ हॉलीवुड-बॉलीवुड की फिल्में इन्हें बढ़ावा दे रही है वहीं सरकारें भी इन्हें कानूनी मान्यता देने में लगी है।

प्रकृति ने औरत-आदमी को एक-दूसरे का पूरक बनाया है। सनातन धर्म में इसे प्रकृति-पौरुष का मेल कहा गया है। इसी तरह दूसरे धर्मो में इन्हे आदम-हव्वा या एडम-ईव के नाम से संबोधित किया जाता है। दोनों स्वतंत्र पहचान के मालिक तो हैं ही लेकिन ये दोनों कुछ इस तरह से साथ जुड़े हुए हैं कि इन्हें संपूर्णता एक-दूसरे के साथ ही मिलती है। औरत आदमी का संबंध सामाजिक व पारिवारिक पहलू से भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि ये परिवार को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है। किसी भी व्यक्ति की यौन पसंद अर्थात एक दूसरे के प्रति काम इच्छा स्वाभाविक है परंतु जब कभी औरत की काम इच्छा दूसरी औरत के प्रति हो और आदमी की काम इच्छा दूसरे आदमी के प्रति हो तो यह स्थिति असमंजसकारी हो जाती है। ऐसे में अगर रिश्ते बन जाएं तो इसे समलैंगिकता कहा जाता है।
ज्योतिष के नजरिए से देखें तो समलैंगिकता की विसंगती की जड़ें भी व्यक्ति के प्रारब्ध और कर्म से निकलती हैं। ऐसा माना जाता है कि जिनके पूर्वज या वे खुद पूर्व जन्म में यौन उछृंखल्लता में लिप्त रहे या अपनी सामंती ताकतों का लाभ लेते हुए दास-दासियों और नौकरों से अप्राकृतिक यौनाचार करते रहे या बहुपत्नी रखने वाले हुए तो अगली पीढि़यों में संभवत ऐसे रुझान दिखते हैं। इस तरह इन लोगों के नाते-रिश्तेदार भावनात्मक रूप से, मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से पीड़ित होते हुए यह कर्ज उतारते हैं।
समलैंगिक जातक तो खुद इससे आनंदित होते हैं जबकि उनके नाते-रिश्तेदार ही इससे दुख भोगते हैं। हिन्दुस्तान चंडीगढ़ में छपे बेरी के लेख के मुताबिक कुछ ग्रहों की स्थिति भी कुंडली में इस दोष की द्योतक होती है। इसे कुंडली में शुक्र का नकारात्मक प्रभाव, सप्तम, अष्टम, द्वादश और पंचम भाव के स्वामी तथा सूर्य के अलावा बुध, शनि और केतु की स्थिति भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है। पंचम भाव की इसमें बड़ी भूमिका इसलिए मानी जाती है, क्योंकि आदत, प्रकृति और रिश्तों का प्रतीक यही भाव है। इसके अलावा अष्टम और द्वादश भाव यह बताता है कि जातक की यौन आदतें कैसी होंगी। वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों को प्रवृति के हिसाब से तीन लिंगों में बांटकर देखा जाता है। इनमें सूर्य, बृहस्पति और मंगल को पुरुष, चंद्रमा, शुक्र और राहू को स्त्री ग्रह का दर्जा दिया जाता है। इसी तरह बुध, शनि और केतु को तीसरे सेक्स यानी नपुंसक ग्रह कहा जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि बुध को बाल गृह कहा जाता है और बच्चे सेक्स के योग्य नहीं होते, इस तरह शनि बुजुर्ग ग्रह होने के नाते उन्हें सेक्स और प्रजनन के विपरीत माना जाता। केतु को संन्यासी ग्रह का दर्जा है। वह सेक्स करने में सक्षम तो है मगर माना जाता है कि उसकी इसमें कोई रुचि नहीं। इन ग्रहों के बलवान और विपरीत प्रभाव कुंडली में इस तरह देखे गए हैं।
ज्योतिष के अनुसार तीसरे सेक्स लोगों की कुंडली में बुध ग्रह की बड़ी भूमिका देखी जाती हैं। साथ ही उन पर शनि और केतु का भी प्रभाव होता है। इसलिए यह देखा जाता है कि जो लोग विभिन्न कलाओं और विग्यान में निपुण होते हैं और अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते हैं, उनमें ऐसी प्रवृति पायी जाती है, इसके अलावा अकेले शनि से प्रभावित लोग दरिद्र अवस्था में रहते हैं और उनकी नपुंसकता के चलते समाज में दुत्कारे जाते हैं। अगर केतु अधिक प्रभावशाली होता है तो जातक को मानसिक रूप से सामान्य यौन जीवन से अलग कर देता है। अत्याधिक बुरे प्रभाव में जातक को पागल माना जाता है नहीं तो वह साधु या साध्वी बनकर जीवन गुजारता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह कन्या राशि का हो तथा शनि और मंगल सातवें घर में हों तो जातक में समलैंगिकता का रुझान देखने को मिल जाता है। इसके अलवा २७ नक्षत्रों में मृगशिरा, मूल और शतभिषा नक्षत्र को तीसरे सेक्स का प्रतीक माना जाता है।

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