सूर्य रत्न माणिक्य बदल सकता हैं आपका भाग्य

सूर्य रत्न माणिक्य बदल सकता हैं आपका भाग्य

डेस्क-वैदिक ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न, सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है! इस रत्न पर सूर्य का स्वामित्व है! यह लाल या हलके गुलाबी रंग का होता है! यह एक मुल्वान रत्न होता है, यदि जातक की कुंडली में सूर्य शुभ प्रभाव में होता है तो माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए, इसके धारण करने से धारण करता को अच्छे स्वास्थ्य के साथ साथ पद-प्रतिष्ठा, अधिकारीयों से लाभ प्राप्त होता है! शत्रु से सुरक्षा, ऋण मुक्ति, एवं आत्म स्वतंत्रता प्रदान होती है! ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि माणिक्य एक भहुमुल्य रत्न है और यह उच्च कोटि का मान-सम्मान एवम पद की प्राप्ति करवाता है! सत्ता और राजनीती से जुड़े लोगो को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि यह रत्न सत्ता धारियों को एक उचे पद तक पहुचाने में बहुत सहायता कर सकता है

माणिक को अंग्रेजी में रूबी कहते हैं। इसे सभी रत्‍नों में सबसे श्रेष्‍ठ माना जाता है। लाल रंग का माणिक सबसे बेहतरीन और मूल्‍यवान होता है। विभिन्‍न जगहों में पाए जाने के कारण जलवायु परिवर्तन का असर इसके रंगों में भी दिखता है। लाल से गुलाबी तक यह कई अलग-अलग जगहों में अलग-अलग रंगों में निकलता है।माणिक्य को माणक भी कहा जाता है. यह एक अति मूल्यवान रत्न है. संस्कृ्त भाषा में इसे लोहित, पद्यराग, शोणरत्न , रविरत्न, शोणोपल, वसुरत्न, कुरुविंद आदि नामों से जाना जाता है. हिन्दी - पंजाबी में चुन्नी, उर्दू- फारसी में याकत व अंग्रेज़ी में ये रुबी के नाम से प्रचलित है. यह लाल रक्तकमल जैसे सिंदूरी, हल्के नीले आदि रंगों में पाया जाता है . असली व निर्दोष माणिक्य हल्की नीले आभा वाला होता है, जिससे लाल रंग की किरणें निकलती हैं . इन्हीं सब विशेषताओं के चलते इसे सूर्यरत्न भी कहा जाता है

बाँध अपनी ओर आकर्षित करती है

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वर्तमान हालत में हर व्यक्ति रत्नों के चमत्कारी प्रभावों का लाभ उठा कर अपने जीवन को समृ्द्धिशाली व खुशहाल बनाना चाहता है. रत्न भाग्योन्नति में शीघ्रातिशीघ्र अपना असर दिखाते हैं. रत्न समृ्द्धि व ऎश्वर्य के भी प्रतीक होते हैं. अत: इनकी चमक हर व्यक्ति को अपने मोहपाश में बाँध अपनी ओर आकर्षित करती है. ज्योतिष शास्त्र के साथ -साथ चिकित्सीय जगत में भी रत्नों के प्रभावशाली लाभों को मान्यता प्राप्त है. ऐसे में प्रमुख नवरत्नों की यदि बात करें तो हर रत्न की अपनी अलग विशेषता है. नवरत्न जैसे माणिक्य, हीरा, पन्ना , मोती, मूंगा, गोमेद, पुखराज, नीमल, लहसुनिया सभी रत्नों में भिन्न-भिन्न गुण विद्यमान हैं व हर रत्न की अपनी अलग उपयोगिता है . परंतु यदि हम इनमें से माणिक्य की बात करें तो यह एक बेहद खूबसूरत व बहुमूल्य रत्न होने के साथ साथ अनेकों प्रभावशाली गुणों से भी युक्त है . माणिक्य रत्न जड़ित आभूषण हर उम्र के लोगों के व्यक्तित्व में चार- चाँद तो लगाते ही हैं , साथ ही साथ भीड़ से अलग एक बेहतरीन व राजसी लुक भी प्रदान करते हैं

सूर्य एक ऊर्जावान ग्रह है

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि सूर्य एक ऊर्जावान ग्रह है अतः धारक को सूर्य ऊर्जा मुफ्त में ही प्राप्त होती रहती है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी होता है अतः माणिक धारण करने से व्यक्ति आत्मनिर्भर भी बनता है। वर्चस्व की क्षमता भी बढ़ती है, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियां भी बढ़ती हैं, अस्थिरता नष्ट होकर स्थिरता प्राप्त होती है, आत्मोन्नति एवं संतान सुख भी बढ़ता है।> यह ध्यान रखना आवश्यक है कि माणिक लग्न, दशा तथा ग्रह-गोचर का अध्ययन करके ही धारण करें। इस रत्न के साथ कभी भी हीरा, गोमेद एवं नीलम नहीं पहनना चाहिए। अच्छा माणिक आभायुक्त चमकदार होता है, हाथ में पकड़ने पर भारी लगेगा और हल्की-हल्की गर्मी महसूस होगी। माणिक रक्तवर्धक, वायुनाशक और पेट रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है। यह मानसिक रोग एवं नेत्र रोग में भी फायदा करता है। माणिक धारण करने से नपुंसकता नष्ट होती है।

माणिक्य रक्त संबंधी विकारों के लिए बेहद लाभदायक होता है

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार माणिक्य रक्त संबंधी विकारों के लिए बेहद लाभदायक होता है. साथ ही यह क्षय रोग, उदर शूल , फोड़ा, धातु, विषनाश, आँखों की बिमारी एवं कोष्ठबद्धता में अत्यंत कारगर सिद्ध होता है|माणिक्य रत्न अपने चिकित्सिय गुणों के कारण भी प्रसिद्ध हैं। यह माना जाता हैं कि माणिक्य रत्न को विशेषा परिस्थितियों में रक्त प्रवाह के संतुलन के लिए धारण किया जाता हैं। सेहत की कमी से जूझ रहें व्यक्तियों के लिए यह रत्न उपयोगी साबित होता हैं। पित्त रोगों के निवारण में रुबि रत्न लाभ देता हैं। वायुनाशक, उदररोग, तपेदिक आदि रोगों से रोगमुक्त होने के लिए माणिक्य रत्न पहनाजा सकता हैं। यह रत्न अपने धारक को इन सभी रोगों से निजात देने में सहयोगी रहता हैं। इसके अतिरित यह रत्न ह्रदय से जुड़े रोग, रक्तचाप, दिल की असंतुलित धड़कनों पर नियंत्रण, व्यर्थ की बेचैनी, आंखों के रोग, कैंसर और अपेण्डीसाइटिस आदि रोगों में कमी करने के लिए भी धारण किया जाता हैं। यह भी माना जाता हैं कि शारीरिक दुर्बलता, आत्मविश्वास, हड्डी से संबंधित परेशानियां, मधुमेह, ज्वर, फेफड़े की बीमारियां और मधुमेह के रोग के निवारण के लिए भी रुबी रत्न पहनना चाहिए। इन रोगों के उपचार के लिए इसकी भस्म इस्तेमाल की जाती है . साथ ही इसकी गोलियाँ भी बाज़ार में उपलब्ध हैं परंतु इनके सेवन से पूर्व योग्य आयुर्वेदाचार्य से सलाह अवश्य लें|


सबसे ज्‍यादा म्‍यांमार में पाया जाता है।

माणिक खनिज के रूप में सबसे ज्‍यादा म्‍यांमार में पाया जाता है। यहां सबसे उच्‍च कोटि का माणिक पाया जाता है। पहले म्‍यांमार के ऊपरी भाग में इसकी ज्‍यादा खदानें थी लेकिन फिर 1990 के बाद मध्‍य म्‍यांमार में माणिक की ज्‍यादा खाने मिलने लगीं। यहां का माणिक इतना लाल होता है कि उसके रंग को ‘कबूतर के खून’ की संख्‍या दी जाती है। बर्मा से प्राप्त माणिक्य का रंग और जगह से प्राप्त माणिक्य से कम गहरा होता है ।।श्री लंका से प्राप्त माणिक्य के रंगों में कुछ पीलापन होता है । सबसे उत्तम जाति के माणिक्य उत्तरी बर्मा के मोगोल नामक स्थान से प्राप्त होते है ।

जिसका रंग गुलाबी होता है

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि म्‍यांमार के अलावा भी यह रत्‍न नेपाल, कंबोडिया, भारत, अफगानिस्‍तान, ऑस्‍ट्रेलिया, नमीबिया, कोलंबिया, जापान, स्‍कॉटलैंड, ब्राजील और पाकिस्‍तान में भी पाया जाता है। इसके अलावा श्रीलंका में भी माणिक की खाने पाई जाती हैं लेकिन यहां का माणिक सबसे निम्‍न होता है, जिसका रंग गुलाबी होता है। कई माणिक हल्के लाल, सिंदूरी लालिमा लिए होते है. आम मान्यता है असली माणिक को हथेली पर रखने से उष्णता का अनुभव होता है. चांदी के पात्र में मोतियों के बीच यदि असली माणिक रख दिया जाये तो, मोतोयों का रंग कुछ लालिमा लिए हुए दिखता है. असली और शुद्धमाणिक कान्तियुक्त, चिकना, कनेर के पुष्प सदृश लाल और भारी पण लिए होता है. जिस माणिक में कुछ दाग, धारियां, कुछ चिन्ह हो, काँटी हीन हो, ऐसा माणिक दोषपूर्ण माना गया है

सूर्य धन प्राप्‍ति में बाधा उत्‍पन्‍न करता है

यदि किसी जातक की कुंडली में दूसरे भाव में सूर्य धन प्राप्‍ति में बाधा उत्‍पन्‍न करता है या जातक की नौकरी और कारोबार में व्‍यवधान उत्‍पन्‍न होता है, तो इस स्थिति में माणिक्‍य धारण करना लाभदायक माना जाता ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जिन जातकों की कुंडली में तीसरे भाव में सूर्य होता है तो यह उसके छोटे भाई के लिए खतरा उत्‍पन्‍न करता है. ऐसे लोगों के छोटे भाई अक्‍सर नहीं होते हैं या फिर मृत्‍यु हो जाती है. सूर्य की इस स्थिति में भी माणिक्‍य धारण करना उचित रहता है.सूर्य लग्‍न में हो तो सूर्य का तेज कई प्रकार से बाधाएं देता है। इनमें संतान से संबंधि‍त समस्‍या प्रमुख है। तथा स्‍त्री के लिए भी यह कष्‍टदायक होता है। ऐसे लोगों को माणिक कदापि नहीं धारण करना चाहिए।दूसरे भाव में सूर्य धन प्राप्‍ति में बाधा उत्‍पन्‍न करता है। जातक की नौकरी और कारोबार में व्‍यवधान उत्‍पन्‍न होता है। इस स्थिति में माणिक्‍य धारण करना लाभदायक माना जाता है। माणिक्‍य सूर्य के प्रभाव को शुद्ध करता है और जातक धन आदि की अच्‍छी प्राप्‍ति कर पाता है।

सूर्य का होना छोटे भाई के लिए खतरा उत्‍पन्‍न करता है

तीसरे भाव में सूर्य का होना छोटे भाई के लिए खतरा उत्‍पन्‍न करता है। ऐसे लोगों के छोटे भाई अक्‍सर नहीं होते हैं या फिर मृत्‍यु हो जाती है। सूर्य की इस स्थिति में भी माणिक्‍य धारण करना उचित रहता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि चौथे भाव में सूर्य नौकरी, ऐशो-आराम आदि में बाधाएं उत्‍पन्‍न करता है। ऐसी स्थिति में भी माणिक्‍य धारण किया जा सकता है। पांचवें भाव में सूर्य हो तो अत्‍यधिक लाभ व उन्‍नति के लिए माणिक्‍य पहनना चाहिए। यदि सूर्य भाग्‍येश और धनेश होकर छठे अथवा आठवें स्‍थान पर हो तो माणिक्‍य धारण करना लाभ देता है। यदि सूर्य सप्‍तम भाव में हो तो वह स्‍वास्‍थ्‍य संबंधि परेशानियां देता है। ऐसे लोग माणिक्‍य पहनकर स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार महसूस करते हैं।

बड़े भाई के लिए भी हानिकारक होता है

सूर्य अष्‍टमेश या षष्‍ठेश हो कर पाचवें अथवा नवे भाव में बैठा हो तो जातक को माणिक्‍य धारण करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि अगर जन्‍मकुंडली में सूर्य अपने ही भाव अर्थात अष्‍टम में हो तो ऐसे लोगों को अविलंब माणिक्‍य धारण करना चाहिए। ग्‍यारवें भाव में स्थि‍त सूर्य पूत्रों के विषय में चिंता देता है साथ ही बड़े भाई के लिए भी हानिकारक होता है। ऐसे व्‍यक्‍तियों को भी माणिक्‍य धारण कर लेना चाहिए।ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि सूर्य बारहवें भाव में हो तो वह आंखों के लिए समस्‍याएं उत्‍पन्‍न करता है। अत: नेत्रों को सुरक्षित रखने हेतु माणिक्‍य धारण करना बेहतर होता है।ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार माणिक कायरता को दूर करने में मदद करता है ऐसे व्यक्तियों के लिए जो स्वयं को सुनने में मुश्किल पाते हैं, उनके लिए माणिक एक शानदार रत्न है।माणिक पत्थर (Ruby stone) उन जोड़ों से पहना जाना चाहिए, जिन्हे अपने रिश्ते को बनाये रखना मुश्किल लग रहा हैं।

जीवन में रचनात्मकता और आत्मविश्वास उत्पन्न करता है

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसारमाणिक रत्न पहने हुए व्यक्ति को उनके जीवन में नाम, प्रसिद्धि, लोकप्रियता प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। माणिक रत्न निजी जीवन में रचनात्मकता और आत्मविश्वास उत्पन्न करता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यह रत्न उन व्यक्तियों की मदद करता है जो इंजीनियरिंग, मेडिकल, भूविज्ञानी, वकील, नेताओं, कपड़ा व्यापारी, स्टॉक दलाल क्षेत्र में काम करते हैं। माणिक्य के बारे में कहा जाता है कि यह पत्थर पहनने से सकारात्मक सोच को बढ़ावा मिलता है, जो संबंधों में खुशी, प्रेम और सद्भाव को बढ़ाता है। व् जो व्यक्ति व्यवसायिक समस्याओं का सामना कर रहे है, उन्हें इस पत्थर को पहनना चाहिए क्योंकि यह इस पत्थर के बारे में कहा जाता है कि इस रत्न को पहनने से जीवन में भाग्य और धन आमंत्रित होता है।

अविलंब माणिक्‍य धारण करना चाहिए

यह कम रक्तचाप, अनियमित दिल की धड़कन या ध्रुमपान, पक्षाघात और सामान्य दुर्बलता का इलाज करने के लिए प्रयोग किया जाता है।ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यह रत्न राजनीति और जो उच्च कार्यालय या उच्च पदों में सफलता प्राप्त करने के लिए पहना जाता है।यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य भाग्‍येश और धनेश होकर छठे अथवा आठवें स्‍थान पर हो तो माणिक्‍य धारण करना लाभ देता है.यदि किसी जातक की जन्‍मकुंडली में सूर्य अपने ही भाव अर्थात अष्‍टम में हो तो ऐसे लोगों को अविलंब माणिक्‍य धारण करना चाहिए. पांचवें भाव में सूर्य हो तो अत्‍यधिक लाभ व उन्‍नति के लिए माणिक्‍य पहनना चाहिए

माणिक्‍य रत्न का विकल्‍प
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि माणिक्‍य बहुत मूल्‍यवान रत्‍न है। अत: सभी इसे खरीदकर पहने ऐसा संभव नही है। अत: कुछ ऐसे रत्‍न हैं जो माणिक्‍य से कम मूल्‍यवान है किन्‍तु माणिक्‍य के जैसे ही हैं। इसमें सबसे पहला स्‍थान स्‍पाइनेल का आता है जिसे हिन्‍दी में लालड़ी कहते हैं। दूसरा गारनेट रत्‍न है तीसरा जिरकॉन और चौथा एजेट हैं। माणिक्‍य न मिलने की स्थिति में या आर्थिक कारणों से माणिक्‍य न धारण कर पाने की स्‍थ‍िति में इन्‍हें धारण किया जा सकता है।

माणिक्य धारण में क्या रखें सावधानी
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जिस तरह से ये रत्‍न लाभ पहुंचाते हैं उसी तरह से यदि अनजाने में भी गलत रत्‍न धारण कर लें तो बहुत तेजी से शरीर को नुकसान भी पहुंचाते हैं। इसलिए ध्‍यान रखना चाहिए कि माणिक्‍य और उसके किसी भी विकल्‍प के साथ हीरा, नीलम, लहसुनिया और गोमेद को नहीं पहनना चाहिए।ऐसे माणिक्य कदापि न खरीदें जिनमें चमक न हो, जिसका रंग दूध जैसा हो , जिस पर आड़ी - तिरछी रेखाएं हों, जिसमे दो रंग हों, जिसका रंग धुएं जैसा हो, जिसमे चीरा लगा हो, जो मट्मैला हो, जो सफेद या कालिमा युक्त हो, जिसमें गढ्ढा हो, ऐसे दोषयुक्त माणिक्य धारणकर्ता के लिए बेहद हानिकारक सिद्ध होते हैं. अत: इस प्रकार के माणिक्य कभी न खरीदें. शुद्धता की जाँच की बात करें तो यदि माणिक्य को गाय के दूध में डालने पर दूध गुलाबी दिखाई देने लगे तो उसे शुद्ध व असली समझें. इसके अलावा शुद्ध माणिक्य को किसी काँच के पात्र में रखने से ऐसा लगेगा , जैसे उस पात्र में रक्तिम किरणें फूट रही हैं.

हिंदी पंचांग में ज्येष्ठ माह में सूर्य बहुत शक्तिशाली रहता है और इसी कारण इस माह में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ती है. ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि माणिक्‍य सूर्य का रत्‍न है.किसी ज्‍योतिषाचार्य की सलाह से कुंडली में सूर्य की स्‍थ‍िति को देखकर ही इसको धारण करना चाहिए. माणिक्‍य सूर्य के प्रभाव को शुद्ध करता है और जातक धन आदि की अच्‍छी प्राप्‍ति कर पाता है |

क्‍यों लें ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री से सूर्य रत्न माणिक्य
इस अंगूठी को ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री एवं उनके सहयोगी अनुभवी कर्मकांडी पंडितों की टीम ने सूर्य के मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित किया है जिससे यह आपको जल्‍द ही शुभ फल दे। इस अंगूठी के साथ सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा जो इस रत्‍न के ओरिजनल होने का प्रमाण है

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