रुद्राक्ष की सम्पूर्ण जानकारी और विवरण

रुद्राक्ष की सम्पूर्ण जानकारी और विवरण

डेस्क -रुद्राक्ष की सम्पूर्ण जानकारी और विवरण |रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई वह मोती स्वरूप बूँदें हैं जिसे ग्रहण करके समस्त प्रकृति में आलौकिक शक्ति प्रवाहित हुई तथा मानव के हृदय में पहुँचकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकी।रूद्राक्ष के दर्शन मात्र से पुण्य , स्पर्श से करोड़ गुना पुण्य और धारण करने से उससे भी सौ कोटि गुना पुण्य व्यकित को मिलता है । लक्षकोटि और सहस्त्र लक्षकोटि गुना फल जप से प्राप्त होता है । जिसमें कम का विचार नहीं किया जाता है ।मनुष्यों में रूद्राक्षधारी सदा वन्दनीय होता है । वह नीच और न करने योग्य कर्मों को करता हो या सब पापों से युक्त हो, तो भी रूद्राक्ष के धारण कर लेने से सब पापों से छुटकारा पा लेता है ।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की जो मनुष्य रूद्राक्ष को धारण करता है, उसे देखकर शिवजी तथा अन्य देवता अत्यंत प्रसन्न होते हैं । यदि कोर्इ मनुष्य अज्ञानी, दुराचारी अथवा कुकर्मी हो और रूद्राक्ष को प्रेमपूर्वक धारण करता हो तो वह समस्त पापों से छूटकर परमपद प्राप्त करता है । जो मनुष्य रूद्राक्ष की माला पहनकर हाथ पर मंत्र को जपता है, उसे दस गुना अधिक फल मिलता है । जो मनुष्य को रूद्राक्ष को अपने शरीर पर धारण करता है , उसे न तो अकाल मृत्यु का भय रहता है और न ही कोर्इ कष्ट परशान करता है ।
चिकित्सक भी रोगियों को रूद्राक्ष धारण करने
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की रूद्राक्ष के दानों में एक प्रकार की अदभुत चुंबकीय और विधुत शकित निहित रहती है - इस बात को केवल आध्यातिमक जगत या भौतिक विज्ञानियों ने ही नहीे , बलिक आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी स्वीकार किया है । धारक निश्चय ही रूद्राक्ष की शकित से प्रभावित रहता है । अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियां , दु:स्वप्न तथा भूत - प्रेतादि के उपंद्रव के शमन में रूद्राक्ष का चमत्कारी प्रभाव देखकर पाश्चात्य चिकित्सक भी रोगियों को रूद्राक्ष धारण करने तथा औषधि - रूप में प्रयोग करने की सलाह देने लगे है ।
जो फल यज्ञ, तप , दान तथा वेदाभ्यास का है , वही फल रूद्राक्ष के धारण करने से तत्काल प्राप्त होता है । जो चारों वेद एवं पुराणों का फल है, तीर्थ और सर्वप्रकार की विधाओं का फल शीघ्र ही रूद्राक्ष के धारण करने से मिलता है । प्रयाण के समय यदि कोर्इ कण्ठ और भुजा में रूद्राक्ष धारण कर मृत्यु हो जाए तो इक्कीस कुल तरकर रूद्रलोक में निवास करते हैं ।
ग्रहों के दुष्प्रभाव को नष्ट करने में रूद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की धर्म, तन्त्र, योग एवं चिकित्सा की नजर में रूद्राक्ष काफी प्रासगिंक और प्रशसंनीय है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में रूद्राक्ष को महाऔषधि के रूप में वर्णित किया गया है। रूद्राक्ष की जड़ से लेकर फल तक सभी का अलग-अलग तरीके से प्रयोग करके विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर किया जा सकता है। रूद्राक्ष की भारतीय ज्योतिष में भी काफी उपयोगिता है। ग्रहों के दुष्प्रभाव को नष्ट करने में रूद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है, जो अपने आप में एक अचूक उपाय है। गम्भीर रोगों में यदि जन्मपत्री के अनुसार रूद्राक्ष का उपयोग किया जाये तो आश्चर्यचकित परिणाम देखने को मिलते है। रूद्राक्ष की शक्ति व सामथ्र्य उसके धारीदार मुखों पर निर्भर होती है। एक मुखी से लेकर एक्कीस मुखी तक जो रूद्राक्ष देखें गये है, उनकी अलौकिक शक्ति और क्षमता अलग-अलग रूप में प्रदर्शित होती है। इसकी क्षमता और शक्ति उत्पत्ति स्थान से भी प्रभावित होती हैं।
रुद्राक्ष का मानवीय जीवन में महत्व -
रूद्राक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है तथा हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में रूद्राक्ष का उच्च स्थान है। रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, सकन्द्पुराण, लिंगपुराण, श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है। शिव पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके 'नमः शिवाय' मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। स्कन्द पुराण और लिंग पुराण के अनुसार रूद्राक्ष आत्म शक्ति एवं कार्य क्षमता में वृद्धि करने वाला एंव कार्य व व्यवसाय में प्रगति करवाता हैं। जिस प्रकार सें भगवान शिव कल्याणकारी है, उसी प्रकार से रूद्राक्ष भी अनेक प्रकार की संमस्याओं का निष्पादन करने में सक्षम हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग से कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।
शिव पार्वती की प्रार्थना और प्रसंता के लिए रुद्राक्ष जरुर धारण करना चाहिए
रूद्राक्ष धारण करने से जहां आपको ग्रहों से लाभ प्राप्त होगा वहीं आप शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे। तंत्र शास्त्रों के अनुसार रूद्राक्ष धारण करने पर भूत-प्रेतजनित बाधाओं (ऊपरी हवाओं, भूत पिशाच), अदृश्य आत्माओं तथा अभिचार प्रयोग जनित बाधाओं का समाधान होने लगता है। वह व्यक्ति बिना किसी भय के कहीं भी भ्रमण कर सकता हैं। रुद्राक्ष सिद्धिदायक, पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। रुद्राक्ष का स्पर्श, दर्शन, उस पर जप करने से, उस की माला को धारण करने से समस्त पापो का और विघ्नों का नाश होता है ऐसा महादेव का वरदान है, परन्तु धारण की उचित विधि और भावना शुद्ध होनी चाहिए। भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णों के लोगों को विशेष कर शिव भगतो को शिव पार्वती की प्रार्थना और प्रसंता के लिए रुद्राक्ष जरुर धारण करना चाहिए।

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