कभी न पालें ऐसी आदत वरना झेलना पड़ेगा जिंदगी भर

कभी न पालें ऐसी आदत वरना झेलना पड़ेगा जिंदगी भर

डेस्क - भले ही एकतरफा हो लेकिन प्रेमी सज्जनपुरुष और अहंकारियों के बीच का बैर सदियों पुराना है। इतिहास गवाह है कि अहंकारियों ने प्रेमी जन के जीवन-मार्ग में अनेक बाधाएं खड़ी कीं पर प्रेमी जन अपनी यात्रा में अडिग रह मानवता को सदा प्रेम और सौहार्द का संदेश देकर गए।

प्रेमी जन के लिए कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। वे तो सभी से प्रेम करते हैं। जैसे फूल से सुगंध और दीपक से प्रकाश फैलता है| वैसे ही प्रेमी जन के चारों ओर सहज-सरल प्रेम की तरंगें प्रवाहित होती हैं। प्रेम उनके भीतर से स्वतः उत्पन्न होता है और उनके व्यक्तित्व के प्राकृतिक अंग के रूप में दृष्टिगत होता है।

प्रेमपूर्ण हृदय में गलती करनेवालों के लिए भी स्वाभाविक क्षमा होती है

  • प्रेमी में करुणा का भाव प्रबल होता है तो अहंकारी में घृणा का।
  • अहंकारी पद-प्रतिष्ठा और सम्मान का लोलुप होता है और अपने रास्ते में आनेवाली हर बाधा को मिटा देना चाहता है।
  • इस कभी न खत्म होनीवाली कामनाओं की कहानी में वह पूरी जिंदगी गुजार देता है।
  • प्रेमी हार-जीत और सम्मान-अपमान के मायाजाल से मुक्त रह जीवन में जो कुछ मिले उसी में प्रसन्नचित्त रह प्रयत्नशील रहता है। प्रेमी का आभूषण है क्षमा।
  • प्रेमी किसी से प्रतिशोध का भाव नहीं रखता|
  • उसके प्रेमपूर्ण हृदय में गलती करनेवालों के लिए भी स्वाभाविक क्षमा होती है।
  • वहीं अहंकारी का शस्त्र है षडयंत्र। किसी को नीचा दिखाने हरा देने में उसे बड़ा रस मिलता है।

इन बातो से रहे दूर

  • अहंकारी छीनने के लिए आतुर रहता है और सदा बनावटी बुलंदियों को छूने के चक्रव्यूह में फंसा रहता है।
  • प्रेमी जन के लिए बांटना स्वाभाविक क्रिया है।
  • वह फलों से लदे हुए वृक्ष की भांति झुकने को ही अपना धर्म मानता है।
  • अहंकारी ऊंच-नीच, भेद-भाव की बेड़ियों में जकड़ा रहता है तो प्रेमी वसुधैव कुटुंबकम के भाव में भीगा हुआ स्वयं को स्वच्छंद रखता है।
  • अहंकारी की प्रार्थना में भी लोभ होता है।
  • वह ईश्वर से भी कामनाएं पूरी होने की चाह रखता है।
  • उसके लिए ईश्वर लालच की पूर्ति का साधन मात्र है। वहीं प्रेमी की प्रार्थना में अपने इष्ट के प्रति धन्यवाद व अहोभाव होता है।
  • लाभ-हानि, यश-अपयश जो भी उसे जीवन यात्रा में मिले|
  • उसे वह ईश्वर का प्रसाद मान समान भाव से स्वीकार करता है।

अहंकारी अपने को सृष्टि से अलग मानकर जीवन में अतृप्त और मृत्यु से भयभीत रहता है। पर प्रेमी स्वयं को प्रकृति का अंग मानकर उसके साथ एक हो जाता है- जैसे बूंद का सागर में मिलना। वह मृत्यु को जीवन के सत्य के रूप में स्वीकार कर उसे नवजीवन का प्रवेश-द्वार मानता है। इसी से उसका जीवन-पुष्प खिलकर खूशबू फैलाता है। अंधेरा कितना ही सघन क्यों न हो छोटे से दीये की रोशनी भी उसे मिटा देने के लिए काफी है। यही प्रेम का दीया हम अपने भीतर जला लें तो यह धरती अपने से स्वर्ग बन उठेगी।


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