ये मदरसा बना मिसाल एक ही छत के नीचे गूंजती हैं कुरान की आयतें और रामायण की चौपाइयां

ये मदरसा बना मिसाल एक ही छत के नीचे गूंजती हैं कुरान की आयतें और रामायण की चौपाइयां

बाराबंकी(रजी सिद्दीकी ) -ये मदरसा बना मिसाल एक ही छत के नीचे गूंजती हैं कुरान की आयतें और रामायण की चौपाइयां| देश में आए दिन सामने आ रही सांम्प्रद्रायिक सोहार्द बिगाड़ने की घटनाओं के बीच उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में अनोखी तस्वीर सामने आई है। यहां के एक मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को कुरान की आयतों के साथ-साथ रामायण की चौपाइयां भी पढ़ाई जाती हैं। समाज में सौहार्द का संदेश देने वाली इस पहल के बारे में जिसने भी सुना वह हैरान है। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ये कहावत बाराबंकी जिले में कोठी थाना क्षेत्र के बेलवा कस्बे में चल रहे एक मदरसे में सच कर दिखाई गई है। एक तरफ को तमाम सियासी हुक्मरान मजहब के नाम पर हिन्दू और मुस्लिम समुदायों को बांटकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं।

वहीं दूसरी तरफ 32 साल के युवा काजी फुरकान अख्तर ने एक ऐसी मुहिम छेड़ी है जो लोगों के लिए मिसाल बन रही है। अल-हुसैन पब्लिक स्कूल नाम के अपने मदरसे में फुरकान बच्चों को कुरान की आयतों के साथ-साथ रामायण की चौपाइयों की भी तालीम देते हैं। ऐसा करने के पीछे फुरकान का बहुत बड़ा मकसद है। फुरकान का मानना है कि उनकी इस पहल से बच्चों के अंदर सभी धर्मों के लिए सम्मान बढ़ेगा और वह इसे समझ सकेंगे।

मदरसे में धार्मिक ग्रंथों के साथ बच्चों को इंग्लिश पढ़ाने पर भी खासा जोर
काजी फुरकान अपने मदरसे में धार्मिक ग्रंथों के साथ बच्चों को इंग्लिश पढ़ाने पर भी खासा जोर देते हैं। फुरकान का कहना है कि उनका मकसद लोगों की सोच को बदलना है। लोग सोचते हैं कि मदरसे में केवल मुस्लिम बच्चे ही पढ़ेने आते हैं| जबकि ऐसा नहीं है। फुरकान का कहना है कि मदरसा तो एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब भी स्कूल है। तो फिर आप इसे किसी धर्म विशेष से कैसे जोड़ सकते हैं। इसीलिए हम अपने मदरसे में कुरान और रामायण दोनों पढ़ाते हैं। फुरकान के मुताबिक उनके मदरसे में बच्चों को मॉडर्न एजुकेशन दी जाती है, ठीक वैसे ही जैसे प्राइवेट स्कूूल के बच्चे तालीम हासिल करते हैं।
अच्छा स्कूल न होने के चलते उऩको अच्छी तालीम नहीं मिल पाई
11 साल बाहर रहने के बाद नौकरी छोड़कर गांव में मदरसा खोलने वाले फुरकान ने अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से की है। फुरकान का कहना है कि एक बार वे दिल्ली से छुट्टियां बिताने अपने गांव आए थे। इस दौरान उन्हें यहां कुछ बच्चे मिले जो पढ़ना चाहते थे| लेकिन आसपास कोई अच्छा स्कूल न होने के चलते उऩको अच्छी तालीम नहीं मिल पाई। बच्चों की इसी लाचारी को देखकर मैंने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला किया और यहां एक मदरसा खोलने का मन बनाया। आज हम सब की मेहनत रंग लाई और यह मदरसा मान्यता प्राप्त हो गया है।
हिंदू हो या मुस्लिम सभी मिलजुलकर रहते हैं
इस मदरसे में दोनों समुदायों के टीचरों को रखा गया है। मदरसे में पढ़ाने वाली शिक्षिका रीना वर्मा का कहना है कि यहां धर्म को लेकर कोई दीवार नहीं है। समाज में तमाम लोग धर्म को लेकर एक दूसरे के साथ गलत व्यवहार करते हैं लेकिन हमारे मदरसे में ऐसा कुछ नहीं है। यहां हिंदू हो या मुस्लिम सभी मिलजुलकर रहते हैं। वहीं मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों से बात करने पर उन्होंने बताया कि वे यहां सारे विषयों की पढ़ाई करते हैं। कई बच्चों ने बताया कि उनके पिता किसान है। इस मदरसे में आने के बाद अब उन्हें पढ़ाई को लेकर कोई समस्या नहीं होती।
फुरकान का कहना है कि दुनिया में पैसे तो सभी कमाते हैं लेकिन अगर कुछ समाज सेवा भी की जाए तो इससे बड़ा सवाब का कोई काम नहीं हो सकता। इसी नीयत के साथ मैंने बच्चों को तालीम देने की ठानी। मेरा मकसद अच्छा था इसलिए शुरू में जिन लोगों ने मेरा विरोध किया बाद में वे सभी मेरे साथ आ गए। उसी का नतीजा है कि आज हम हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के बच्चों की एक ही छत के नीचे पढ़ाई कराते हैं।

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