तूतीकोरन या चर्च और लिट्टे की तूती का रण

तूतीकोरन या चर्च और लिट्टे की तूती का रण

तमिलनाडू- तमिलनाडू के तूतीकोरन में वेदांता समूह की स्टरलाइट के तांबा संयंत्र को लेकर हुई हिंसा के दौरान पुलिस कार्रवाई में 13 निरपराध लोगों की मौत हो गई। इस संयंत्र से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ कुछ स्थानीय लोग पिछले तीन महीनों से आंदोलनरते थे। घटना के तुरंत बाद इसे राज्य प्रायोजित हिंसा, पर्यावरण बनाम प्रदूषण, पूंजीवाद से लेकर जयवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से जोड़ा गया परंतु वहां से छन कर आरही खबरों से पूरा प्रकरण दूसरा ही रूप लेता दिख रहा है।

जिस तरह गैर सरकारी संगठन व पर्यावरण वादी संस्थाएं अमेरिका के इशारे पर भारत में रूस द्वारा लगाए जा रहे कुडनकुलम परमाणु संयंत्र का विरोध कर रही थीं, यह मामला भी उसी श्रेणी का दिखने लगा है। कुडनकुलम के विरोध के पीछे भारत के विकास विरोधी शक्तियां होने का पटाक्षेप तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने किया था। तूतीकोरन स्टरलाइट तांबा संयंत्र विरोधी रण का कारण भी चर्च, आतंकी संगठन लिट्टे और नक्सली संगठनों की द्वारा बजाई तूती दिखने लगी है। उक्त संयंत्र देश के तांबा उद्योग की रीढ़ है जिस पर देश के छोटे-बड़े उद्योग, रोजगार और निर्यात निर्भर करता है। तमाम झंझावातों झेलते हुए भारत विश्व की आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है तो इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि संयंत्र का यह विरोध भी उन ताकतों द्वारा प्रायोजित हो सकता है जिन्हें देश की तरक्की फूटी आंख नहीं सुहाती।

ट्रांसफॉर्मर बनाने वाले लोगों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा

आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा बताया गया है कि तूतीकोरिन कॉपर प्लांट की बंदी का असर लगभग 800 छोटी और मध्यम की इलेक्ट्रिकल इकाइयों पर पड़ेगा। देश के कुल कॉपर उत्पादन का 40 प्रतिशत इस प्लांट से निकलता है। इससे केबल, तार और ट्रांसफॉर्मर बनाने वाले लोगों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। भारत का तांबा उद्योग प्रति वर्ष लगभग 10 लाख टन परिष्कृत तांबे का उत्पादन करता है। इनके उत्पादन का 40 प्रतिशत मुख्य रूप से चीन को निर्यात किया जाता है। तूतीकोरिन संयंत्र के बंद होने से 50,000 प्रत्यक्ष और इससे पांच गुणा अधिक अप्रत्यक्ष नौकरियों पर असर पड़ेगा। तूतीकोरिन के जिस स्टरलाइट कॉपर यूनिट का विरोध किया जा रहा है इसमें हर साल 4,00,000 टन कॉपर कैथोड बनता है।

अफवाहों और अधूरी जानकारी पर विश्वास नहीं करना चाहिए

कंपनी इसे बढ़ा कर 8,00,000 करना चाहती है। फिलहाल ये प्लांट 27 मार्च से बंद है। मेंटेनेंस काम की वजह से पहले इसे 15 दिनों के लिए बंद किया गया था। इस प्लांट के खिलाफ लोगों की नाराजगी इससे होने वाले प्रदूषण की वजह से है। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अप्रैल में यूनिट संचालन का लाइसेंस देने से मना कर दिया। बोर्ड के फैसले के खिलाफ कंपनी ने इसे आगे चुनौती दी। पूरे मामले पर स्टरलाइट कॉपर के सीईओ पी. रामनाथ का कहना है कि प्लांट में राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान और सुप्रीम कोर्ट के सभी निर्देशों का पालन किया जाता है। कंपनी का साफ कहना है कि लोग आकर प्लांट में देख सकते हैं। अफवाहों और अधूरी जानकारी पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

संयंत्र के खिलाफ मोर्चा खोले हुए

संयंत्र के खिलाफ जुटे लोगों पर नजर दौड़ाई जाए तो सारा माजरा खुदबखुद साफ हो जाता है। इसके खिलाफ शिकायत करने वाली फातिमा बाबू अध्यापक हैं जिन्होंने विद्यार्थियों के एक आंदोलन का नेतृत्व किया। उसी आंदोलन के जरिए वे संयंत्र के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। रोचक बात है कि फातिमा बाबू ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करवा कर अपने कई लोगों को इस संयंत्र में नौकरी दिलवाई है। ये लोग रात के समय तो संयंत्र में नौकरी करते रहे और दिन में इसका विरोध। फातिमा को चर्च और नक्सलवादियों की कड़ी के रूप में जाना जाता है। आंदोलन के दूसरे नेता हैं मोहन सी लाजरस, जो टीवी चैनलों में ईसाईयत का प्रचार करते हैं। इस नगर व आसपास के मछुआरों में इनका जबरदस्त प्रभाव है जिसके बल पर अपनी राजनीति करते हैं।

तिरुमुरुगन गांधी भी कुमाराट्टियापुरम गांव पहुंच गए

आंदोलनकारियों को धरनास्थल पर लाने व छोडऩे का काम चर्च के साधनों से होता रहा है। एक अप्रैल 2018 को अलग तमिल राष्ट्र की मांग करने वाले तिरुमुरुगन गांधी भी कुमाराट्टियापुरम गांव पहुंच गए। उस समय जिन झंडों और बैनरों का उपयोग कर स्टरलाइट संयंत्र के विरुद्ध नारेबाजी की गई उसमें आतंकी संगठन लिब्रेशन टाईगर्स आफ तामिल ईलम (लिट्टे) सरगना प्रभाकरण की तस्वीर लगी हुई थी। इनको समर्थन मिला कम्यूनिस्ट नेताओं और कांग्रेसी नेताओं का जो देश की अर्थव्यवस्था व युवाओं को रोजगार दिलवाने की चिंता में दुबले होने का स्वांग करते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की कोशिश में लगे रहते हैं।

1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा हुई थी

इस संयंत्र के खिलाफ यह कोई पहला षड्यंत्र नहीं बल्कि 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा की गई इसकी स्थापना के बाद से ही यह काम शुरु हो गया था। क्षेत्रवाद से पीडि़त दलों व लोगों ने इसे उत्तर भारत का संयंत्र बताया और प्रचार किया कि इसका लाभ उत्तर भारतीयों को होगा और प्रदूषण उन्हें झेलना पड़ेगा। सवाल है कि जब पूरा मामला न्यायिक विचाराधीन था तो इसको लेकर आंदोलन और वह भी हिंसक प्रदर्शन करने की किसकी मजबूरी थी? तमिलनाडू के मुख्यमंत्री ईके पलानीस्वामी स्पष्ट कर चुके हैं

कि पूरे आंदोलन में पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी तो आखिर वह कौन सी शक्ति थी जो स्थानीय लोगों को हिंसा के लिए उकसा रही थी? संयंत्र बंद होने से जहां हजारों नौकरियां समाप्त होंगी वहीं देश का तांबा उत्पादन प्रभावित होगा जिसका असर बाकी उद्योगों पर और अंतत: निर्यात पर पड़ेगा। इन सभी बातों से किसको लाभ होगा यह बताने की जरूरत नहीं है। देश जब आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है तो उक्त तरह की चुनौती और भी बड़े रूप में सामने आसकती है। देश की सरकार और समाज को इन षड्यंत्रों से जागरुक होना पड़ेगा।

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