सोलह पौराणिक पात्र,इनका जन्म माता-पिता के वीर्य के सयोंग के बगैर ही हुआ है

डेस्क-दुनिया के सबसे अधिक पुराने धर्म, हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में तमाम ऐसी कथायें वर्णित हैं जिनमें ऐसा कहा गया है कि इन सभी का जन्म पिता के वीर्य के सयोंग के बगैर ही हुआ है आज हम यहाँ पर उन्ही कुछ पात्रों की चर्चा कर रहे हैं आइये जानते है

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राजा पृथु के जन्म की कथा
पृथु एक सूर्यवंशी राजा थे, जो वेन के पुत्र थे। स्वयंभुव मनु के वंशज राजा अंग का विवाह सुनिथा नामक स्त्री से हुआ था। वेन उनका पुत्र हुआ। वह पूरी धरती का एकमात्र राजा था। सिंहासन पर बैठते ही उसने यज्ञ-कर्मादि बंद कर दिये। तब ऋषियों ने मंत्रपूत कुशों से उसे मार डाला, लेकिन सुनिथा ने अपने पुत्र का शव संभाल कर रखा।

राजा के अभाव में पृथ्वी पर पाप कर्म बढऩे लगे। तब ब्राह्मणों ने मृत राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिसके फलस्वरूप स्त्री-पुरुष का जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम पृथु तथा स्त्री का नाम अर्चि हुआ। अर्चि पृथु की पत्नी हुई। पृथु पूरी धरती के एकमात्र राजा हुए। पृथु ने ही उबड़-खाबड़ धरती को जोतने योग्य बनाया। नदियों, पर्वतों, झरनों आदि का निर्माण किया। राजा पृथु के नाम से ही इस धरा का नाम पृथ्वी पड़ा।

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मनु व शतरूपा के जन्म की कहानी
धर्म ग्रंथों के अनुसार मनु व शतरूपा सृष्टि के प्रथम मानव माने जाते हैं। इन्हीं से मानव जाति का आरंभ हुआ। मनु का जन्म भगवान ब्रह्मा के मन से हुआ माना जाता है। मनु का उल्लेख ऋग्वेद काल से ही मानव सृष्टि के आदि प्रवर्तक और समस्त मानव जाति के आदि पिता के रूप में किया जाता रहा है। इन्हें ‘आदि पुरूष’ भी कहा गया है। वैदिक संहिताओं में भी मनु को ऐतिहासिक व्यक्ति माना गया है। ये सर्वप्रथम मानव थे जो मानव जाति के पिता तथा सभी क्षेत्रों में मानव जाति के पथ प्रदर्शक स्वीकृत हैं। मनु का विवाह ब्रह्मा के दाहिने भाग से उत्पन्न शतरूपा से हुआ था।

मनु एक धर्म शास्त्रकार भी थे। धर्मग्रंथों के बाद धर्माचरण की शिक्षा देने के लिये आदिपुरुष स्वयंभुव मनु ने स्मृति की रचना की जो मनुस्मृति के नाम से विख्यात है। उत्तानपाद जिसके घर में ध्रुव पैदा हुआ था, इन्हीं का पुत्र था। मनु स्वायंभुव का ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत पृथ्वी का प्रथम क्षत्रिय माना जाता है। इनके द्वारा प्रणीत ‘स्वायंभुव शास्त्र’ के अनुसार पिता की संपत्ति में पुत्र और पुत्री का समान अधिकार है। इनको धर्मशास्त्र का और प्राचेतस मनु अर्थशास्त्र का आचार्य माना जाता है। मनुस्मृति ने सनातन धर्म को आचार संहिता से जोड़ा था।

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ऋषि ऋष्यश्रृंग के जन्म की कथा
ऋषि ऋष्यश्रृंग महात्मा काश्यप (विभाण्डक) के पुत्र थे। महात्मा काश्यप बहुत ही प्रतापी ऋषि थे। उनका वीर्य अमोघ था और तपस्या के कारण अन्त:करण शुद्ध हो गया था। एक बार वे सरोवर में पर स्नान करने गए। वहां उर्वशी अप्सरा को देखकर जल में ही उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को जल के साथ एक हिरणी ने पी लिया, जिससे उसे गर्भ रह गया। वास्तव में वह हिरणी एक देवकन्या थी। किसी कारण से ब्रह्माजी उसे श्राप दिया था कि तू हिरण जाति में जन्म लेकर एक मुनि पुत्र को जन्म देगी, तब श्राप से मुक्त हो जाएगी।

इसी श्राप के कारण महामुनि ऋष्यश्रृंग उस मृगी के पुत्र हुए। वे बड़े तपोनिष्ठ थे। उनके सिर पर एक सींग था, इसीलिए उनका नाम ऋष्यश्रृंग प्रसिद्ध हुआ। वाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।

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राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के जन्म की कथा
रामायण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक प्रसिद्ध राजा हुए। उनकी दो रानियां थीं- केशिनी और सुमति। दीर्घकाल तक संतान जन्म न होने पर राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। तब महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को साठ हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा।

कालांतर में सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। राजा उसे फेंक देना चाहते थे किंतु तभी आकाशवाणी हुई कि इस तूंबी में साठ हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में साठ हजार पुत्र प्राप्त होंगे। इसे महादेव का विधान मानकर सगर ने उन्हें वैसे ही सुरक्षित रखा। समय आने पर उन मटकों से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया।

देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के साठ हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोली राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।

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