याददाश्त के साथ मंगल के चेहरे पर लौटी मुस्कान

  • छह महीने से यूपी में भटक रहे पंजाब के बुज़ुर्ग को नेचुरल जर्नलिज्म ने पहुंचाया घर
  • दुआ फाऊंडेशन की मदद से 1100 किमी दूर बाघा बॉर्डर पर परिवार से मिलाया
  • दिसंबर 2017 को पटना साहिब में गुरुगोविंद सिंह के मेले से गुम हुए थे सरदार मंगल सिंह

फैजाबाद -तन पर मैला कुचैला कपड़ा, हाथ में जाड़े के स्वेटर, पानी की एक बोतल, सिर पर नारंगी दस्तार। नाम है सरदार मंगल सिंह। इनको खुद के नाम के अलावा कुछ भी याद नहीं। छह महीने से फैज़ाबाद जिले के बड़ागांव रेलवे स्टेशन और आसपास की ख़ाक छान रहे इस सख़्श पर बहुत सी निगाहें गईं पर किसी ने कुछ जानने की जहमत नहीं उठाई।

ईद की पूर्व संध्या पर अचानक नेचुरल जर्नलिज्म के फाउंडर और पत्रकार श्रीकांत मिश्र की नज़र इन पर पड़ी। जिज्ञासा बस उन्होंने पूछा कहां जाना है? जवाब मिला अपने घर। न कोई पता, न ठिकाना। न ही पहचान या आधार। फिर रातों रात छानबीन के सिलसिला शुरू हुआ और पंजाब, अमृतसर होते हुए ख़बर अपने मुकाम तक जा पहुंची। अजनाला तहसील और कंडहेर थाने के गांव तेड़ा कलां में मंगल के जीवित और सकुशल मिलने की सूचना पहुंचते ही मायूसी काफ़ूर हो गई और परिवार में जश्न का माहौल हो गया।

दरअसल, पाकिस्तान की सरहद से लगे गांव तेड़ा कलां के मूल निवासी और पेशे से दिहाड़ी मजदूर सरदार मंगल सिंह दिसंबर 2017 में पटना साहिब में आयोजित गुरु गोविंद सिंह जी के मेले में गए थे। जत्थे के साथ गए मंगल कमजोर याददाश्त के चलते भटक गए। साथ गए परिजनों ने काफ़ी ढूंढा, पर खोजने में असफल रहे। मंगल पटना से किसी तरह मुग़लसराय जंक्शन पहुंचे। यहां 22 दिसंबर को टीटीई ने कुल 900 रुपये लेकर अमृतसर जाने वाली ट्रेन का डिफरेंस टिकट काट दिया।

परिवार में दो बच्चों की असामायिक मौत से मानसिक संतुलन खो बैठे मंगल फिर रास्ता भटक गए। किसी तरह रामनगरी अयोध्या पहुंचे, वहां से फैज़ाबाद जंक्शन और लोकल ट्रेन पकड़कर बड़ागांव रेलवे स्टेशन। भटकने का सिलसिला जारी रहा, कभी सोहावल, देवराकोट तो कभी रुदौली और बड़ागांव। रात अक्सर बड़ागांव स्टेशन पर ही गुजरती। पास में स्थित जगप्रसाद टी स्टॉल पर चाय पी लेते। कभी कभार रात का खाना यहीं मिल जाता और प्लेटफार्म की यात्री सीट पर सोना।

14 जून को रात आठ बजे मंगल की मुलाकात नेचुरल जर्नलिस्ट श्रीकांत मिश्र से इसी होटल पर हुई। नाम के अलावा कोई जानकारी न दे पाने वाले मंगल एक अबूझ पहेली से कम नहीं थे। ईद पर पाकिस्तान, बाघा बॉर्डर और पंजाब की चर्चा चली, अचानक मंगल उधर ही घर होने का जिक्र किया। साढ़े चार घण्टे की कड़ी मशक्कत के बाद चंडीगढ़ राजधानी, अमृतसर जिला मुख्यालय और पुलिस-प्रशासन से छानबीन के बाद अजनाला तहसील में कंडहेर थाने के एसएचओ हरपाल सिंह से बात हुई। उन्होंने मंगल से पंजाबी भाषा में बात की। फिर तेड़ा कलां के सरपंच सरदार अनूप सिंह से उन्होंने कन्फर्म किया। मंगल के घर उनके जीवित और सही सलामत होने की सूचना पहुंची। फिर वीडियो कॉल के माध्यम से उनके भाई सरदार सुखदेव सिंह और दिलदार सिंह ने बात की। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2017 से ही लापता हैं। हम लोग तो उम्मीद खो चुके थे।

अब चुनौती थी मंगल को सकुशल घर पहुंचाने की। पत्रकार श्रीकांत ने अपने साथी और साइन सिटी में स्पार्टन ग्रुप के प्रेसीडेंट ज्ञानप्रकाश उपाध्याय को पूरी कहानी बताई। लखनऊ में ज्ञान प्रकाश ने दुआ फाऊंडेशन की टीम से संपर्क साधकर रात में ही सड़क मार्ग से अमृतसर निकलने पर हामी भर दी। सबसे पहले मंगल को नहलाकर साफ सुथरे कपड़े पहनाये गए। बड़ागांव से बाघा बॉर्डर का सफर रात दो बजे शुरू होता है। रात साढ़े तीन बजे राजधानी लखनऊ में मंगल को लेकर श्रीकांत मिश्र, ज्ञान प्रकाश उपाध्याय, ओंकार उपाध्याय, अरुण कुमार और पवन सिंह के साथ अमृतसर स्थित गांव के लिए चल पड़े।

आगरा एक्सप्रेस वे से दिल्ली फ़िर करनाल, अम्बाला और फगवाड़ा होते हुए लुधियाना, जालंधर और शाम छह बजे अमृतसर। अमृतसर पहुंचते ही मंगल को कुछ कुछ याद आने लगा। अपना पिंड, स्वर्ण मंदिर और गुरु ग्रंथ साहिब जी का दरबार।


गांव में टीम का हुआ स्वागत-सत्कार

गांव में मंगल के वापस आने की खुशियां मनाई जा रही थीं। तेड़ा पिंड के आसपास गांव के लोग भी मंगल और उन्हें लाने वाली टीम के स्वागत में फूल माला लिए खड़े थे। गांव पहुंचते ही, जो बोले सो निहाल.....से पूरा इलाका गूंज उठा। ढोल नगाड़े बजने लगे और युवाओं ने पटाख़े फोड़कर जश्न मनाना शुरू कर दिया। कंडहेर के थाना प्रभारी हरपाल सिंह भी मै फोर्स गांव वालों के जश्न में शरीक हुए। औरतें, बूढ़े और बच्चे सब टकटकी लगाए मंगल को देख रहे थे और मंगल की लौटी याददाश्त, दुहाई देने वाली आंखें उनके मददगार से हाथ जोड़े शुक्रिया अदा करवा रहीं थी।


खुशी के मारे रोटी नहीं खाई

बकौल सुखदेव सिंह, यकीन नहीं हो रहा है कि मेरा भाई वापस जिंदा लौट आया है। उसकी याददाश्त भी लौट आई। इसका मैं कैसे शुक्रिया अदा करूं। परवरदिगार का लख-लख शुक्र है मंगल आज दूसरी ज़िन्दगी लेकर लौटा है। आप लोग मेरे परिवार के लिये फरिश्ते से कम नहीं हैं। फोन पर मंगल के मिलने की सूचना से मैंने खुशी के मारे रोटी नहीं खाई।

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