इसके बिना है अधूरे हैं आपके सारे अच्छे काम

इसके बिना है अधूरे हैं आपके सारे अच्छे काम

डेस्क -बड़े लोगों को मनमानी करने की छूट नहीं मिलती, बल्कि बड़ा होने से उनकी जिम्मेदारियां और बढ़ जाती हैं। जब हम अपने जीवन में कोई बहुत अच्छा या महत्वपूर्ण कार्य करते हैं तो उसकी प्रशंसा होना या उसका पुरस्कार मिलना स्वाभाविक है।

प्रशंसा भी होनी चाहिए और पुरस्कार भी मिलना चाहिए। इससे व्यक्ति प्रतिष्ठित होता है और प्रतिष्ठा से व्यक्ति को और अधिक अच्छा करने की प्रेरण मिलती है। कुछ लोग सोचते हैं कि समाज में एक बार प्रतिष्ठा मिल जाने पर उन्हें मनमानी करने का लाइसेंस मिल गया है। आजकल राजनीति और आध्यात्मिक जगत में जिसे देखो वही मनमानी कर रहा है। कोई भ्रष्टाचार में तो कोई व्यभिचार में लिप्त है। जनप्रतिनिधि जनता का भरोसा तोड़ रहे हैं तो तथाकथित महाराज भक्तों का। वास्तव में कुछ अच्छा या महत्वपूर्ण कार्य करने वाले को उसके पुरस्कारस्वरूप मनमानी करने की छूट नहीं मिलती।

महत्वपूर्ण या जिम्मेदारी का काम मिलने का यह मतलब नहीं कि नियम तोड़ने की छूट मिल गई है। हमारी अच्छाई या हमारा महत्व तभी तक बरकरार रहता है, जब तक हम एक अच्छे नागरिक की तरह नियमों का पालन करते हैं और हमारा आचरण पवित्र बना रहता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो हम पतन की ओर उन्मुख होने लगते हैं। साथ ही हमारी अच्छाइयां निष्प्रभावी होने लगती हैं और उनका सकारात्मक प्रभाव भी समाज पर नहीं पड़ता। हमारे आचरण में गिरावट या नैतिक पतन के साथ न केवल हमारी अच्छाइयों का अंत हो जाता है, बल्कि हम समाज व कानून की दृष्टि में दोषी भी हो जाते हैं और उसका एकमात्र उपचार है दण्ड।

दशक पुरानी बात है। पूना में तिलक जी के प्रपौत्र डॉ. दीपक तिलक से मिलने का मौका मिला। जब उनसे पूछा गया कि तिलक जी की परंपरा से जुड़ने पर आपको कैसा लगता है, तो वह चुप रहे। लेकिन जब उनसे कहा गया कि अच्छा ही लगता होगा तो उन्होंने संक्षिप्त उत्तर दिया- हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। जब भी हम किसी महान परंपरा या उद्देश्य से जुड़ते हैं तो हमसे लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं और उसी अनुपात में हमारी जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। हमारे ऊपर स्वयं के आचरण के माध्यम से समाज में ईमानदारी, तटस्थता, सहिष्णुता, नियमपालन आदि उदात्त जीवन मूल्यों को स्थापित करने का दायित्व आ जाता है।

हम कितने भी अच्छे कार्य करने वाले क्यों न हों दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार भी अच्छा होना चाहिए। जब हम समाज के लिए भी उपयोगी काम करते हैं तो इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं कि हम दूसरों से बेरुखी से पेश आएं अथवा जो मर्जी उन्हें कह दें। हम दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत तो हो सकते हैं, पर विशेष रूप से सम्मान पाने का पात्र नहीं। सच पूछिए तो वास्तविक बड़प्पन हमारे अंदर तब आता है जब हम अपनी गलतियों को स्वीकार कर उन्हें दूर करना सीख जाते हैं।

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