जानिए नर्मदेश्वर क्या हैं उसके महत्व और पूजन विधि को

जानिए नर्मदेश्वर क्या हैं उसके महत्व और पूजन विधि को

नर्मदेश्‍वर शिवलिंग की पूजा से सुख-समृद्धि के साथ-साथ बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी सुरक्षा मिलती है।
डेस्क-हमारे हिन्दू शास्त्रों में प्राकृतिक शिवलिंग पूजा का बहुत महत्व है। खासकर स्वयंभू (स्वयंसिद्ध) शिवलिंग पूजा से गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है। ऐसे ही प्राकृतिक और स्वयंभू शिवलिंगों में प्रसिद्ध है- बाणलिंग या नर्मदेश्वर ।
पवित्र नर्मदा नदी के किनारे पाया जाने वाला एक विशेष गुणों वाला पाषाण ही बाणलिंग कहलाता है। बाणलिंग शिव का ही एक रूप माना जाता है। इसकी खास खूबी यही है कि यह प्राकृतिक रूप से ही बनता है। इसलिए यह स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना जाता है और इनके केवल दर्शन भर ही भाग्य संवारने वाला बताया गया है। हालांकि, बाणलिंग गंगा नदी में भी पाए जाते हैं, किंतु नर्मदा नदी में पाए जाने वाले बाणलिंगों के पीछे पौराणिक महत्व है। नर्मदा नदी व उसके नजदीक पाए जाने से बाणलिंग को नर्मदेश्वर लिंग भी पुकारा जाता है। हिन्दू धर्म के विभिन्न शास्त्रों तथा धर्मग्रंथों के अनुसार माँ नर्मदा को यह वरदान प्राप्त था की नर्मदा का हर बड़ा या छोटा पाषण (पत्थर) बिना प्राण प्रतिष्ठा किये ही शिवलिंग के रूप में सर्वत्र पूजित होगा. अतः नर्मदा के हर पत्थर को नर्मदेश्वर महादेव के रूप में घर में लाकर सीधे ही पूजा अभिषेक किया जा सकता है।
नर्मदेश्‍वर शिवलिंग की पूजा से सुख-समृद्धि के साथ-साथ बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी सुरक्षा मिलती है। नदी में बहते हुए शिलाखण्ड शिवलिंग का रूप धारण कर लेते हैं जो कि भगवान शिव का चमत्कार है, यह शिवलिंग ओंकारेश्वर व घाबडी कुंडमें भी प्राप्त होते हैं, इन शिवलिंगों का स्वरूप बहुत ही सुंदर व चमकीला होता है यह शिवलिंग अधिक प्रभाव शाली होने के कारण मूल्यवान भी होते हैं.
नर्मदेश्‍वर शिवलिंग केवल भारत (मध्यप्रदेश ओर गुजरात) में नर्मदा नदी के तट पर ही मिलता है। नर्मदा देश की ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर उलटी दिशा में बहती है। यह विशालकाय पर्वतों को चीरते हुए बहती है। नर्मदा के तेज बहाव में बड़े-बड़े पत्थर ध्वस्त हो जाते हैं। देश की अन्य नदियों में मिलने वाले पत्थर पिंड के रूप में नहीं मिलते हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि केवल नर्मदा नदी पर ही शिव कृपा है।

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