ग्रहण काल के दौरान मंदिरों के द्वार बंद कर दिया जाता है जानें क्यों
ग्रहण के दौरान सूर्य और चन्द्रमा से कई ऐसी नकारात्मक ऊर्जाएं निकलती हैं जो केवल मनुष्य को ही नहीं बल्कि हमारे देवी देवताओं को भी प्रभावित करती है|
डेस्क-जब भी सूर्य या चंद्र ग्रहण लगता है सबसे पहले मंदिरों और अन्य सभी देव स्थानों के पट बंद कर दिए जाते हैं क्योंकि ऐसे में भगवान के दर्शन नही किया जाता है|
दो प्रकार के होते हैं एक सूर्य और दूसरा चंद्र ग्रहण
सूर्य ग्रहण
- जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तब सूर्य की चमकीली सतह दिखाई नहीं पड़ती।
- चन्द्रमा की वजह से जब सूर्य ढक जाता है तब उसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
- जब सूर्य का सिर्फ एक भाग नहीं दिखता तब उसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहते हैं।
- जब सूर्य पूरी तरह से चन्द्रमा के पीछे होता है तब उसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं यह ग्रहण अमावस्या के दिन ही होता है।
चंद्र ग्रहण
- सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी के आ जाने के कारण सूर्य की पूरी रोशनी चंद्रमा पर नहीं पड़ती है तब इसे चंद्रग्रहण कहते हैं।
- सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा का एक सरल रेखा में होना चंद्रग्रहण की स्थिति बनाता है।
- चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा की रात में ही होता है।
- एक साल में कम से कम तीन बार पृथ्वी की उपछाया से चाँद गुज़रता है और तब चंद्र ग्रहण लगता है।
- चंद्रग्रहण भी आंशिक और पूर्ण दोनों होता है।
पौराणिक कथा
हमारे शास्त्रों में ग्रहण को लेकर जो कथा मिलती है उसके अनुसार चंद्र और सूर्य ग्रहण का ताल्लुक राहु और केतु से है। जब समुद्र मंथन से निकला हुआ अमृत दैत्यों ने देवताओं से छीन लिया था तब विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण करके वह अमृत उनसे वापस ले लिया किन्तु दैत्य राहु छल से देवताओं की पंक्ति में आकर बैठ गया और उसने अमृत पान कर लिया। तब सूर्य देव और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया था जिसके बाद विष्णु जी ने क्रोधवश राहु का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया था लेकिन उसकी मृत्यु नहीं हो पायी क्योंकि वह अमृत पान कर चुके थे। तब ब्रह्मा जी ने राहु के सिर को राहु नाम और धड़ को केतु नाम दिया और उसके दोनों हिस्सों में से राहु को चंद्रमा की छाया और केतु को पृथ्वी की छाया में स्थान दिया तभी से राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा के दुश्मन कहलाते हैं और ग्रहण के समय राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा के पास ही होते हैं, ये केवल उस समय ही दिखाई पड़ते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण के उपरान्त राहु और केतु की पूजा बहुत ही लाभदायक होती है।
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ग्रहण काल में मंदिरों के पट कर दिए जाते है बंद
- कहा जाता है कि जब तक ग्रहण रहता है तब भगवान के दर्शन नहीं करने चाहिये और ग्रहण की छाया तक उन पर नहीं पड़नी चाहिए क्योंकि यह छाया हमारे देवी देवताओं को अपवित्र कर देती है।
- हिंदू धर्म के अनुसार ग्रहणकाल में सूतक लग जाता है और इस दौरान भगवान के दर्शन करना पाप माना जाता है।
- यह सूतक ग्रहण के साथ ही समाप्त हो जाता है।
- कहा जाता है कि इन मूर्तियों में सूक्ष्म ऊर्जा के रूप में भगवान के तत्व होते हैं।
- जब भी किसी मंदिर में भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है तब मंत्रो का उच्चारण किया जाता है ताकि यह सूक्ष्म ऊर्जा मूर्तियों में भी समा सके इसलिए मंदिर में प्रवेश करते ही हम शांति का अनुभव करने लगते हैं।
ग्रहण के दौरान निकलती नकारात्मक ऊर्जाएं
- ग्रहण के दौरान सूर्य और चन्द्रमा से कई ऐसी नकारात्मक ऊर्जाएं निकलती हैं जो केवल मनुष्य को ही नहीं बल्कि हमारे देवी देवताओं को भी प्रभावित करती है और सकारात्मक ऊर्जाओं को पवित्र स्थानों पर पहुंचने से भी रोकती है।
- इतना ही नहीं इसके कारण भगवान की प्रतिमा की प्रभावशीलता कम होने की भी सम्भावना होती है इसलिए ऐसी ऊर्जा से भगवान की मूर्तियों को बचाने के लिए ग्रहणकाल के दौरान मंदिरों के द्वार को बंद कर दिया जाता है।
- कई स्थानों पर मूर्तियों को तुलसी के पत्तों से भी ढक दिया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि तुलसी ग्रहणकाल में भी अपवित्र नहीं होती और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है|
- इसलिए ग्रहण के दौरान हम अपने घर में बचे हुए खाने की समाग्री और अनाज में तुलसी का पत्ता डाल देते हैं ताकि ये अशुद्ध न हो।
- ग्रहण समाप्त होने के बाद सबसे पहले हम घर हो या मंदिर उसकी अच्छे से साफ़ सफाई करते हैं और गंगाजल छिड़क कर शुद्धि करते हैं।