तीन बहुएँ को कैसे सुधार दिया सास ने पढ़े पूरी कहानी

तीन बहुएँ को कैसे सुधार दिया सास ने पढ़े पूरी कहानी

कोई व्रत त्यौहार आता पहले से ही तीनों बहुओं को सावचेत कर देती

डेस्क-जानकी के बहु बेटे शहर में बस चुके थे लेकिन उसका गाँव छोड़ने का मन नहीं हुआ इसलिए अकेले ही रहती थी। वह रोजाना की तरह मंदिर जा कर आ रही थी। रास्ते मे उसका संतुलन बिगड़ा और गिर पड़ी। गाँव के लोगों ने उठाया, पानी पिलाया और समझाया 'अब इस अवस्था में अकेले रहना उचित नहीं। किसी भी बेटे के पास चली जाओ।' जानकी ने भी परिस्थिति को स्वीकार कर बेटे बहुओं को ले जाने के लिए कहने हेतु फोन करने का मन बना लिया।

  • जानकी की तीन बहुएँ थी। एक बड़ी अति आज्ञाकारी मंझली मध्यम आज्ञाकारी और छोटी कड़वी।
  • जानकी अति धार्मिक थी। कोई व्रत त्यौहार आता पहले से ही तीनों बहुओं को सावचेत कर देती।
  • 'अति' खुशी खुशी व्रत करती। माध्यम भी मान जाती थी लेकिन कड़वी विरोध पर उतर जाती।
  • "आप हर त्योहार पर व्रत रखवा कर उसके आनंद को कष्ट में परिवर्तित कर देती हैं।
  • तेरी तो जुबान लड़ाने की आदत है। कुछ व्रत तप कर ले। आगे तक साथ जाएँगे।"

दोनों की किसी न किसी बात पर बहस हो जाती। गुस्से में एक दिन जानकी ने कह दिया था। "तू क्या समझती है! बुढापे में मुझे तेरी जरूरत पड़ने वाली है। तो अच्छी तरह समझ ले। सड़ जाऊँगी लेकिन तेरे पास नहीं आऊँगी।" सबसे पहले उसने अति को फोन किया "गिर गई हूँ। आजकल कई बार ऐसा हो गया है। सोचती हूँ तुम्हारे पास ही आजाउँ।"

"नवरात्र में अभी नहीं माँ जी। नंगे पाँव रह रही हूं आजकल। किसी का छुआ भी नहीं खाती।" मध्यम को भी फोन किया लेकिन उसने भी बहाना कर टाल दिया। जब अति और मध्यम ही टाल चुकी तो कड़वी को फोन करने का कोई फायदा नहीं था और अहम अभी टूटा था

  • लेकिन खत्म नहीं हुआ था। फोन पर हाथ रख आने वाले कठिन समय की कल्पना करने लगी थी।
  • तभी फोन की घण्टी बजी। आवाज़ से ही समझ गई थी कड़वी है।
  • "गिर गये ना? आपने तो बताया नहीं लेकिन मैंने भी जासूस छोड़ रखे हैं।
  • पोते को भेज रही हूँ लेने।" "क्या तुझे मेरे शब्द याद नहीं "जिंदगी भर नहीं भूलूँगी।
  • आपने कहा था सड़ जाऊँगी तो भी तेरे पास नहीँ आऊँगी।
  • तभी मैंने व्रत ले लिया था इस बुढ़िया अम्मा को सड़ने नहीं देना है। मेरा तप अब शुरू होगा।"

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