1964 में ही हो जाता घुसपैठियों का इंतजाम अगर कांग्रेस ने पीछे न खींचे होते कदम

1964 में ही हो जाता घुसपैठियों का इंतजाम अगर कांग्रेस ने पीछे न खींचे होते कदम

अवैध घुसपैठियों पर 'अली और कुलीवादी' दौर में कांग्रेस

(राकेश सैन) -स्वतंत्रता प्राप्ति के कई दशकों तक देश के पूर्वोत्तर हिस्सों में कांग्रेस का ही शासन रहा और इस दौरान पार्टी में एक कहावत मशहूर थी कि जब तक 'अली और कुली' का आशीर्वाद है उनकी सरकारें यूं ही चलती रहेंगी।

अली और कुली का अर्थ पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगलादेश) से आरहे वे अवैध घुसपैठिए थे जिनका राजनीतिक हितों के लिए खूब भरण पोषण किया गया। वर्तमान में असम में जारी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर विपक्ष द्वारा मचाया जा रहा होहल्ला उसी मानसिकता का परिचायक और घुसपैठियों को संरक्षण देने वाला दिखाई दे रहा है।

देश में अली और कुली के सिद्धांत को किस कदर प्रोत्साहन दिया गया इसका उदाहरण कांग्रेस के स्वर्णकाल नेहरू युग में ही मिल गया। चाहे उस समय पूर्वी पाकिस्तान से आए घुसपैठियों को खूब पाला पोसा जा रहा था परंतु राष्ट्रीय हितों की चिंता करने वाले भी कम नहीं थे। साठ के दशक में असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीपी. चलिहा ने इसको लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू को चेताया और उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इनफिल्टरेशन फ्रॉम पाकिस्तान एक्ट-1964, कानून लाने की घोषणा की। इस पर असम सरकार में ही कांग्रेस पार्टी के 20 मुस्लिम विधायकों ने सरकार से बाहर जाने की धमकी दे डाली और कानून को वापस लेने का दबाव बनाया। नेहरू जी ने भी चलिहा को संयम बरतने और कोई विवाद पैदा न करने की नसीहत दे डाली।

इस दबाव में आकर चलिहा ने प्रस्तावित विधेयक को ठंडे वस्ते में डाल दिया। इस विधेयक में इतने कड़े प्रावधान थे कि अगर लागू हो जाता तो उस समय ही भारत-पाक सीमा पर तारबंदी हो जाती और घुसपैठियों पर सख्ती से रोक लगती। स्वभाविक है कि करोड़ों की संख्या में जो बंगलादेशी आज भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं यह समस्या आज हमारे सामने नहीं होनी थी। न ही भारत को पाकिस्तान के साथ 1971 का युद्ध लडऩा पड़ता लेकिन नेहरू जी की कश्मीर की भूल वाली नीति यहां पूर्वोत्तर में भी दोहराई गई। रोचक बात है कि इस एतिहासिक महागलती की आज चर्चा तक नहीं है।

दुखद बात है कि कांग्रेस पार्टी ने नेहरू की गलती की परंपरा में सुधार करने की बजाय इसको जारी रखा। जब 10 अप्रैल, 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने राज्य में 30 लाख अवैध बांग्लादेशी मुस्लिम के मौजूद होने की बात कही तो अब्दुल मुहिब मजुमदार नाम के कांग्रेसी नेता के नेतृत्व में 'मुस्लिम फोरम' ने मुख्यमंत्री सैकिया को पांच मिनट के भीतर सरकार गिरा देने की धमकी दी। इस धमकी से कांग्रेस पार्टी फिर भयभीत हो गई और मामले को रफादफा कर दिया गया। 'असम समझौता' राजीव गांधी सरकार के लिए ऐतिहासिक मौका था। इसके बावजूद बांग्लादेश से गैर कानूनी घुसपैठ रोकने के मसले पर कोई समाधान नहीं निकाल जा सका। इंदिरा गांधी संसद के माध्यम से आईएमडीटी एक्ट के तहत विदेशी पहचान के संदिग्ध व्यक्ति को ट्रिब्यूनल के सामने पेश करने का प्रावधान लेकर आई थीं, लेकिन वह भी व्यावहारिक नहीं बन पाया। आश्चर्यजनक रूप से 1971 को निर्धारक वर्ष मानकर 1951 से 1971 के बीच बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) से अवैध घुसपैठ कर आए लोगों को भारत का नागरिक मान लिया गया।

वोट बैंक के चलते नहीं हो पाया घुसपैठियों का इंतजाम

वोट बैंक की राजनीति के कारण ही बांग्लादेशी घुसपैठ का आज तक समाधान नहीं हो पाया है। विभिन्न माध्यमों से दिखाए जा रहे आंकड़ों से स्पष्ट है कि कैसे भारतीय धर्मावलंबी निचले असम से पलायन करने को मजबूर हैं। यह स्थिति राज्य के अन्य हिस्सों में भी जारी है। यहां तक कि बांग्लादेश सीमा से सटा भारत का पूर्वी हिस्सा 46 प्रतिशत मुस्लिम बाहुल्य वाला हो चुका है। मीडिया व सरकार द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले जानसांख्यिक आंकड़े इस भयावहता के परिचायक हैं। बांग्लादेशियों की घुसपैठ से स्थानीय निवासियों में भारी बेचैनी देखने को मिलती रही है जिसके चलते नेल्ली जैसे भीषण दंगे हुए जिसमें हजारों लोगों की जानें गईं। असम के सांस्कृतिककर्मी व गायक भूपेन हजारिका ने भी एक गीत के माध्यम से इस मसले पर अपनी पीड़ा को व्यक्त किया था। उनके गाए हुए एक गीत का भाव है कि -असमी अपने और अपनी भूमि को बचायं, अन्यथा असम में ही वे बेगाने हो जाएंगे।

कहने को तो कांग्रेस की सरकारों ने घुसपैठियों के खिलाफ आईएमडीटी एक्ट बनाया परंतु इसमें ऐसे प्रावधान किए जिससे घुसपैठियों को रोकने की बजाय उन्हें बाहर निकालना ही मुश्किल हो जाए। जैसे कि किसी घुसपैठिए की सूचना देने पर आरोपी को भारतीय होने का प्रमाण देने की बजाय शिकायतकर्ता को उसे विदेशी होने के सबूत लाने को कहा गया। 27 जुलाई, 2005 को सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आईएमडीटी एक्ट को निरस्त कर दिया। इसके बदले केंद्र और राज्य सरकार को फॉरेन ट्रिब्यूनल आर्डर- 1964 के तहत ट्रिब्यूनल स्थापित करने और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को चिन्हित करने का आदेश दिया था। इस पर भी तत्कालीन सरकारें टालमटोल की नीति अपनाती रही। इसका उदाहरण है कि एक बार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश आरएफ नरीमन की पीठ ने असम सरकार की ओर से घुसपैठ पर आधे-अधूरे शपथपत्र देने पर सख्त एतराज जताया। यह शपथपत्र 1 अप्रैल, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया था, जिसमें न्यायालय के 17 दिसम्बर, 2014 के आदेश को लागू करने की बात कही गई थी। दरअसल, यह घिसा पीटा ढर्रा कांग्रेस सरकार की पुरानी रणनीति रही है। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है की बांग्लादेशी सीमा से सटे राज्यों की तकदीर अवैध तरीके से बांग्लादेश से भारत आए मुसलमान ही तय कर रहे हैं। स्थिति की गंभीरता इससे भी समझी जा सकती है कि असम के 40 विधानसभा सीट और पश्चिम बंगाल में कुल 294 में से 53 विधानसभा की सीटें बांग्लादेशी मुस्लिम बाहुल्य वाली हैं। जाहिर है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते ही इन घुसपैठियों की अप्रत्यक्ष रूप से वकालत की जा रही है।

असम में नागरिक राष्ट्रीय रजिस्टर पर बहस के दौरान राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने जब पूरे मामले को मानवता से जोडऩे व सरकार पर इस रजिस्टर में छूट गए लोगों को विदेशी साबित करने की बात कही तो आम भारतीयों के मनों में कांग्रेस की वही अली और कुलीवादी सोच स्मरण हो आई जिसका उद्देश्य येन केन प्राक्रेन रूप से घुसपैठियों को ही लाभ पहुंचाना है।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।

यह विचार और लेख लेखक के नितांत अपने हैं आपकी खबर इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है |

Share this story