अटल जी की अस्थि कलश यात्रा के बहाने

सियाराम पांडेय ‘शांत’
भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियां देश के 22 राज्यों की तकरीबन सौ पवित्र नदियों में विसर्जित की जानी है। इस पवित्र विचार की शुरुआत हरिद्वार से आरंभ भी हो गई है। रविवार सुबह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दत्तक बेटी नमिता ने उनकी अस्थियों को हरिद्वार में हर की पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड पर गंगा में प्रवाहित की। अंतिम संस्कार जीव का अधिकार है। अटल जी आजीवन समाज सेवाव्रती थी। देश सेवा के अतिरिक्त उनका अपना कोई व्यक्तिगत अभीष्ठ नहीं था। उनके लिए देश ही अपना परिवार था और देश के लिए अटल अपने थे। यह एक बहुत बड़ा नाता था। अटल जी की दत्तक पुत्री नमिता ने उनकी अस्थियों को हर की पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड पर गंगा में प्रवाहित की। अस्थि यात्रा कहां से आरंभ हो, इसे लेकर उत्तराखंड के दो मंत्रियों के बीच शुरुआती मतभेद भी रहे। कुछ लोग इस विचार के भी हैं कि अटल जी की अस्थियों के गंगा में प्रवाहित करने की बजाय नहर में विसर्जित किया गया। गंगा का जल जिस किसी भी जगह डाला जाए, है तो वह गंगा जल ही। ऐसी हिंदू मान्यता है। इस आधार पर इस विषय को अनावश्यक बहस-मुबाहिसे का विषय नहीं बनाना चाहिए। अस्थि कलश विसर्जन कार्यक्रम में अव्यवस्था के चलते अटल जी के परिजनों के साथ मुख्यमंत्री, सांसद एवं अन्य कई लोगों के जूते भी गायब हो गए। अधिकारियों और मुख्यमंत्री ने जूते ढूंढे भी लेकिन नहीं मिले। कांग्रेस आक्षेप कर रही है कि जो लोग अपना सामान सुरक्षित नहीं रख पा रहे हैं, वे अटल जी की महान विरासत को कैसे संभल पाएंगे?
अकेले उत्तर प्रदेश के 10 स्थानों पर प्रवाहित होने वाली पवित्र नदियों में वाजपेयी की अस्थियों को विसर्जित किया जाना है। इससे पहले भाजपा प्रदेश कार्यालय से कलश यात्रा निकाली जानी है। 23 अगस्त को दोपहर तीन बजे लखनऊ में एक सर्वदलीय सभा का आयोजन होना है। उसी दिन गोमती नदी में वाजपेयी की अस्थियों का विसर्जन भी होना है। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में 25 अगस्त को और पार्टी के सभी मंडलों में 27- 28 अगस्त को श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित होनी हैं। अटल जी की अस्थियों को उत्तराखंड में तीन स्थानों पर, बिहार में सात, गुजरात में चार, ओडिशा में सात, पश्चिम बंगाल में दो, दिल्ली में एक, असम में दो, पंजाब में तीन, तेलंगाना में दो, राजस्थान में दो, मध्य प्रदेश में चार, केरल में एक, आंध्र प्रदेश में चार, जम्मू कश्मीर में दो, सिक्किम में एक, कर्नाटक में सात, महाराष्ट्र में नौ, दमन में एक, तमिलनाडु में आठ, गोवा में दो, हिमाचल प्रदेश में दो स्थानों पर विसर्जन किया जाएगा।
हरिद्वार में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थि कलश यात्रा के दौरान भीषण गर्मी के कारण कई नेताओं और कार्यकर्ताओं की तबियत बिगड़ी। लक्सर के विधायक संजय गुप्ता को भी ज्यादा गर्मी और भीड़ में धक्का-मुक्की होने के कारण चक्कर आ गए। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक के प्रतिनिधि नरेश शर्मा की भी तबियत भी दो बार बिगड़ी। हरिद्वार में आयोजित पूर्व प्रधानमंत्री के अस्थि कलश विसर्जन कार्यक्रम में अव्यवस्था इतनी हावी रही कि अटल जी के परिजनों के साथ मुख्यमंत्री, सांसद एवं अन्य कई लोगों के जूते गायब हो गए। जूते ढूंढ़ने के लिए अधिकारियों के साथ कई नेता भी जुटे रहे, लेकिन मिल नहीं सके। जूता चुराने वालों को यह तो सोचना ही होगा कि इस तरह के कृत्य कर वे अपने नेता को आखिर किस तरह की श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
23 अगस्त को दोपहर तीन बजे लखनऊ में एक सर्वदलीय सभा का आयोजन किया जाएगा। उसी दिन गोमती नदी में वाजपेयी की अस्थियों का विसर्जन भी किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के 10 स्थानों पर प्रवाहित होने वाली पवित्र नदियों में वाजपेयी की अस्थियों को विसर्जित किया जाना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तर प्रदेश में अटल की अस्थि कलश यात्रा कहां से निकले, इसे लेकर विवाद न हो। त्रिवेंद्र रावत सरकार ने अगर सूझबूझ से काम लिया होता तो वह हरिद्वार के भाजपा जिला मुख्यालय से अस्थि कलश यात्रा निकाल सकती थी लेकिन उसने इस बात का परिचय तो दे ही दिया कि सरकार झगड़ती पहले है। लोकप्रियता पहले पाना चाहती है, उसके लिए अटल जी की अस्थियां मायने नहीं रखती। सस्ती लोकप्रियता के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। गनीमत है कि लखनऊ में पहले ही तय हो गया है कि भाजपा प्रदेश कार्यालय से ही कलश यात्रा निकाली जाएगी। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में 25 अगस्त को और पार्टी के सभी मंडलों में 27- 28 अगस्त को श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित होनी है। अटल जी की अस्थियों को उत्तराखंड में तीन स्थानों पर, बिहार में सात, गुजरात में चार, ओडिशा में सात, पश्चिम बंगाल में दो, दिल्ली में एक, असम में दो, पंजाब में तीन, तेलंगाना में दो, राजस्थान में दो, मध्य प्रदेश में चार, केरल में एक, आंध्र प्रदेश में चार, जम्मू कश्मीर में दो, सिक्किम में एक, कर्नाटक में सात, महाराष्ट्र में नौ, दमन में एक, तमिलनाडु में आठ, गोवा में दो, हिमाचल प्रदेश में दो स्थानों पर विसर्जन किया जाएगा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद रमेश पोखरियाल निशंक के जूतों के गायब होने पर भी उत्तराखंड में सरकार विरोधी जमकर चुटकी ले रहे हैं। उनका मानना है कि जो लोग अपना ख्याल नहीं रख सकते, वे उत्तराखंड का ख्याल क्या रखेंगे?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी देश के महान नेता थे। उनकी आंखों में एक सपना था और वह था इस देश को आगे ले जाना । इस देश की समस्याओं का समाधान करना। देश की रोटी कपड़ा और मकान की जरूरतों को तो उन्हें पूर्ण करना ही था लेकिन वे देश के नैतिक उत्थान के भी पक्षधर थे। अटल बिहारी बाजपेयी से जब भी बात हुई। मैंने ही नहीं, जिस किसी ने भी उनसे बातचीत की, उनकी अंतर्पीड़ा के दर्शन उसे जरूर हुए। अटल जी की एक पीड़ा मैंने सदैव महसूस की कि उनका दल बहुमत से दूर है। वह इसे छिपाते भी नहीं थे और इस पर स्पष्ट बोलते थे। भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी के सफर के सवालों पर कुछ न हो पाना उन्हें हमेशा विचलित करता था। वे चाहते थे कि भाजपा को 272 से अधिक सीटें मिलें जिससे भाजपा खुलकर देश विकास कर सके। उन्हें कभी भी 272 सीटें नहीं मिली। जो अटल जी, विपक्ष पर यह कहकर तंज कसा करते थे कि सत्ता के बर्तन खड़खड़ा रहे हैं। अपने नेतृत्व में बनी गठबंधन की सरकार में उन्होंने भी सत्ता के बर्तन खड़खड़ाते देखा। वे जो चाहते थे, वह तो नहीं कर पाये क्योंकि सांझ में बूझ नहीं होता। सांझ की सुई भी सेंगरे पर चलती है। यह पीड़ा अपने दिल में ही समेटे वे इस संसार सागर से विदा भी हो गए। लोकसभा में अल्पमत के बावजूद उन्होंने कुछ अच्छे काम भी किए। पोखरण में परमाणु परीक्षण का काम काफी अहम था। इसके लिए उन्हें अमेरिका की नाराजगी ही नहीं, आर्थिक प्रतिबंध भी झेलने पड़े थे। अल्पमत की सरकार में भी उन्होंने पूरे देश को सड़क और संपर्क मार्ग से जोड़ने का काम किया। इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान की ओर मैत्री वार्ता के हाथ भी बढ़ाए। लाहौर बस बस से गए भी। यह और बात है कि पाकिस्तान ने उनकी पींठ में कारिगल घुसपैठ कर पीठ में छुरा भोंकने का भी काम किया। भाजपा को आगे बढ़ाने वाले जो मुद्दे थे। दो से 184 सांसदों के सफर में भाजपा के मंथन का केंद्रीय मुद्दा राम मंदिर निर्माण रहा। धर्मांतरण रहा। 1984 में भाजपा की मनाक्षीसुंदरम में आयोजित अधिवेशन का तो मुख्य विषय ही धर्मांतरण रहा। हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं के सशक्तीकरण का मुद्दा तो भाजपा के चर्चा केंद्र में था ही, गौ, गंगा और गायत्री, हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान के उत्थान का भी इसमें संकल्प शामिल था। अगर अटल बिहारी बाजपेयी के दौर में भाजपा को 272 सीटें मिली होतीं तो शायद इन विषयों पर गंभीरता से काम हो पाता और वह दिखता भी। उसी तरह जैसे अटल जी की बनाई गई प्रधानमंत्री सड़क चतुर्भुज योजना नजर आती है। अटल जी के जीवित रहते ही भाजपा ने लोकसभा चुनाव में न केवल बहुमत का आंकड़ा पार किया बल्कि उससे कहीं अधिक सीटें हासिल कीं लेकिन उपलब्धियों के धरातल पर उसके हाथ क्या लगा। हिंदी- हिंदू दोनों उपेक्षित हैं। करोड़ों-अरबों खर्च होने के बाद भी गंगा सुरक्षित नहीं है। वह पूरी तरह स्वच्छ नहीं हो पाई है। नाले अभी भी सीधे तौर पर गंगा में गिर रहे हैं। गौवंश की तस्करी भी नहीं रुकी है। अटल जी ने संघ परिवार को सुझाव दिया था कि मौजूदा परिस्थिति में संघ के सामने दो ही मार्ग हैं या तो वह खुद को समाप्त कर ले और दूसरा यह कि अपने सिद्धांतों में नमनीयता बरतते हुए वह सत्ता का साथ दे। राजनीति चूंकि अब व्यापार बन चुका है, इसलिए उसमें नमनीयता तो होनी ही चाहिए।
अटल जी ने बहुमत न रहते हुए भी खुद पर विपक्ष को हावी नहीं होने दिया और मोदी सरकार लोकसभा में बहुमत के बाद भी विपक्ष के सवालों का जवाब नहीं दे पा रही है। उसे बार-बार अपने निर्णय बदलने पड़ रहे हैं। साढ़े चार साल तक मोदी सरकार को अटल जी की याद नहीं आई लेकिन उनके निधन के बाद जिस तरह देश भर में उनकी अस्थि कलश यात्रा निकाली जा रही है। श्रद्धांजलि सभाएं की जा रही है। खुद को अटल जी का असल वारिस होने के दावा भाजपा के शीर्ष नेता कर रहे हैं, उनकी भावना का सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन उनसे यह भी तो पूछा जाना चाहिए कि अटल जी की महान विरासत को आगे बढ़ाने का काम आखिर कौन करेगा ? अटल जी के नाम पर योजनाएं, पुस्तकालय और चिकित्सा विश्वविद्यालय खोलने की बात की जा रही है। राजमार्ग उनके नाम पर बनाने और बने राजमार्गों का नामकरण अटल के नाम पर करने जैसी अनेक योजनाएं हैं जो बताती है कि भाजपा इस बार का चुनाव अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर ही लड़ना चाहेगी। जेल में कैदियों को अटल जी की कविताएं सुनाने की बात उत्तर प्रदेश के जेलमंत्री पहले ही कह चुके हैं। रेल मंत्रालय से लेकर अन्य विभागों में में इस बार पर मंथन हो रहा है कि अटल बिहारी बाजपेयी के नाम को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है। भाजपा ने अटल जी के जन्म दिवस 25 दिसंबर तक कार्यक्रमों की श्रृंखला तैयार कर रखी है। इसका सीधा निहितार्थ तो यह है कि इस बार का चुनाव देश के सर्व मान्य नेता अटल जी के नाम पर ही लड़ा जाएगा। इस बात को विपक्ष भी बेहतर समझता है लेकिन वह इसकी प्रभावी काट अभी तलाश नहीं पाया है।

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