हमारी चेतावनी को अनदेखा न करें

हमारी चेतावनी को अनदेखा न करें

डेस्क-भले ही लोग सफल नहीं हो पा रहे हैं पर सोच और कर यही रहे हैं कि वे किसी प्रकार अपनी वर्तमान सम्पत्ति को जितना अधिक बढ़ा सकें दिखा सकें उसकी उधेड़ बुन में जुटे रहें। यह मार्ग निरर्थक है। आज की सबसे बड़ी बुद्धिमानी यह है कि किसी प्रकार गुजारे की बात सोची जाए। परिवार के भरण-पोषण भर के साधन जुटाये जायें और जो जमा पूँजी पास है उसे लोकोपयोगी कार्य में लगा दिया जाए।

जिनके पास नहीं है वे इस तरह की निरर्थक मूर्खता में अपनी शक्ति नष्ट न करें। जिनके पास गुजारे भर के लिए पैतृक साधन मौजूद हैं, जो उसी पूँजी के बल पर अपने वर्तमान परिवार को जीवित रख सकते हैं वे वैसी व्यवस्था बना कर निश्चित हो जायें और अपना मस्तिष्क तथा समय उस कार्य में लगायें, जिसमें संलग्न होना परमात्मा को सबसे अधिक प्रिय लग सकता है।

  • जो जितना समय बचा सकता है वह उसका अधिकाधिक भाग नव-निर्माण जैसे इस समय के सर्वोपरि पुण्य परमार्थ में लगाने के लिये तैयार हो जाए।
  • समय ही मनुष्य की व्यक्तिगत पूँजी है, श्रम ही उसका सच्चा धर्म है।
  • इसी धन को परमार्थ में लगाने से मनुष्य के अन्तःकरण में उत्कृष्टता के संस्कार परिपक्व होते हैं।
  • धन वस्तुतः समाज एवं राष्ट्र की सम्पत्ति है। उसे व्यक्तिगत समझना एक पाप एवं अपराध है।
  • जमा पूँजी में से जितना अधिक दान किया जाए वह तो प्रायश्चित मात्र है।

सौ रुपये की चोरी करके कोई पाँच रुपये दान कर दें तो वह तो एक हल्का सा प्रायश्चित ही हुआ। मनुष्य को अपरिग्रही होना चाहिए। इधर कमाता और उधर अच्छे कर्मों में खर्च करता रहे यही भलमनसाहत का तरीका है। जिसने जमा कर लिया उसने बच्चों को दुर्गुणी बनाने का पथ प्रशस्त किया और अपने को लोभ-मोह के माया बंधनों में बाँधा। इस भूल का जो जितना प्रायश्चित कर ले, जमा पूँजी को सत्कार्य में लगा दे उतना उत्तम है। प्रायश्चित से पाप का कुछ तो भार हल्का होता ही है। पुण्य परमार्थ तो निजी पूँजी से होता है। वह निजी पूँजी है- समय और श्रम। जिसका व्यक्तिगत श्रम और समय परमार्थ कार्यों में लगा समझना चाहिए कि उसने उतना ही अपना अन्तरात्मा निर्मल एवं सशक्त बनाने का लाभ ले लिया।

  • परमार्थ प्रयोजनों के लिये समय का अभाव केवल एक ही कारण से रहता है कि मनुष्य तुच्छ स्वार्थों को सर्वोत्तम समझता है |
  • उन्हीं की पूर्ति को प्रमुखता देता है। जो कार्य बेकार लगेगा उसी के लिये समय न बचेगा।
  • परमार्थ को बेकार की बात माना जायेगा तो उसके लिये समय कहाँ से बचेगा |
  • भगवान की युग की पुकार को उपेक्षणीय माना जायेगा तो उसके लिए श्रम या धन खर्च करने की सुविधा कहाँ रह जायेगी |
  • अपनी आत्मा को मिथ्या प्रवंचनाओं से नहीं ठगना चाहिए। समय,श्रम या धन न बचने का बहाना नहीं बनाना चाहिए।
  • प्रबुद्ध, विवेकशील एवं जागृत आत्माओं से परमेश्वर कुछ बड़ी आशा करता है।
  • उसी के अनुरूप हमें अपनी गतिविधियों को मोड़ना चाहिए।

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