99% हिन्दू नहीं जानते महाभारत के इस रहस्य को

99% हिन्दू नहीं जानते महाभारत के इस रहस्य को

गांधारी को पांडवों के साथ रहते-रहते 15 साल गुजर गए

डेस्क-आज हम आपको कुछ ऐसे रहस्य के बारे में बताने जा रहे है जिसे आप लोग अभी तक जानते नही होंगे महाभारत युद्ध में मारे गए समस्त शूरवीर जैसे की भीष्म, द्रोणाचार्य, दुर्योधन, अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र, कर्ण, शिखंडी आदि एक रात के लिए पुनर्जीवित हुए थे यह घटना महाभारत युद्ध ख़त्म होने के 15 साल बाद घटित हुई थी। साथ ही हम आपको बताएँगे की धृतराष्ट्, गांधारी, कुन्ती और विदुर की मौत कैसे हुई |

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  • राजा बनने के पश्चात हस्तिनापुर में युधिष्ठिर धर्म व न्यायपूर्वक शासन करने लगे।
  • युधिष्ठिर प्रतिदिन धृतराष्ट्र व गांधारी का आशीर्वाद लेने के बाद ही अन्य काम करते थे।
  • इस प्रकार अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी आदि भी सदैव धृतराष्ट्र व गांधारी की सेवा में लगे रहते थे
  • लेकिन भीम के मन में धृतराष्ट्र के प्रति हमेशा द्वेष भाव ही रहता।
  • भीम धृतराष्ट्र के सामने कभी ऐसी बातें भी कह देते जो कहने योग्य नहीं होती थी।

इस प्रकार धृतराष्ट्र, गांधारी को पांडवों के साथ रहते-रहते 15 साल गुजर गए। एक दिन भीम ने धृतराष्ट्र व गांधारी के सामने कुछ ऐसी बातें कह दी, जिसे सुनकर उनके मन में बहुत शोक हुआ। तब धृतराष्ट्र ने सोचा कि पांडवों के आश्रय में रहते अब बहुत समय हो चुका है। इसलिए अब वानप्रस्थ आश्रम वन में रहना ही उचित है। गांधारी ने भी धृतराष्ट्र के साथ वन जाने में सहमति दे दी। धृतराष्ट्र व गांधारी के साथ विदुर व संजय ने वन जाने का निर्णय लिया।

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  • वन जाने का विचार कर धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को बुलाया और उनके सामने पूरी बात कह दी।
  • पहले तो युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ लेकिन बाद में महर्षि वेदव्यास के कहने पर युधिष्ठिर मान गए।
  • जब युधिष्ठिर को पता चला कि धृतराष्ट्र व गांधारी के साथ विदुर व संजय भी वन जा रहे हैं तो उनके शोक की सीमा नहीं रही।
  • धृतराष्ट्र ने बताया कि वे कार्तिक मास की पूर्णिमा को वन के लिए यात्रा करेंगे।
  • वन जाने से पहले धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों व अन्य परिजनों के श्राद्ध के लिए युधिष्ठिर से धन मांगा।

भीम ने द्वेषतावश धृतराष्ट्र को धन देने के इनकार कर दिया, तब युधिष्ठिर ने उन्हें फटकार लगाई और धृतराष्ट्र को बहुत-सा धन देकर श्राद्ध कर्म संपूर्ण करवाया। तय समय पर धृतराष्ट्र, गांधारी, विदुर व संजय ने वन यात्रा प्रारंभ की। इन सभी को वन जाते देख पांडवों की माता कुंती ने भी वन में निवास करने का निश्चय किया। पांडवों ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन कुंती भी धृतराष्ट्र और गांधारी के साथ वन चलीं गईं।

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