इस तरह से ईश्वर को देखने के साथ-साथ कर सकते हैं बाते
सांसारिक व्यक्तियों और संतों की अलग-अलग राय हो सकती है
डेस्क-जब विवेकानंद ने युवा नरेंद्र के रूप में स्वामी परमहंस से पूछा कि क्या आपने ईश्वर को देखा है तो उन्होंने उत्तर में बताया, ‘हां, ईश्वर को देखा भी है, उससे बात भी की है और तुम्हें भी दिखा सकता हूं।’ इस प्रसंग का उल्लेख करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अक्सर लोग इस तरह के सवाल करते रहते हैं
लेकिन जब सवाल स्वामी परमहंस सरीखे संतों से न करके सामान्य व्यक्ति से कर बैठेंगे तो जाहिर है, जवाब भी सामान्य या उलटे-पुलटे ही आएंगे और जिज्ञासा वहीं की वहीं खड़ी रह जाएगी। यहां सबसे पहले तो समझने की बात यह है कि क्या ईश्वर साक्षात्कार सांसारिकता का विषय है, अर्थात क्या सांसारिकता में लिप्त व्यक्ति के लिए ईश्वर को देख पाना संभव है |
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- इस प्रश्न पर सांसारिक व्यक्तियों और संतों की अलग-अलग राय हो सकती है।
- व्यक्ति संत प्रवृत्ति की तरफ झुका होगा तो जवाब संतत्व लिए होगा और यदि सांसारिकता की तरफ झुका होगा तो जवाब उसी तरह से होगा।
- अलग-अलग राय होते हुए भी इतना तो जरूर है कि बात ईश्वर को शारीरिक आंखों से देखने की हो रही है।
- मतलब साफ है कि यदि ईश्वर साक्षात्कार सांसारिकता का विषय है तो यह साक्षात्कार शारीरिक आंखों द्वारा भी किया जाना संभव है
- यदि ऐसा संभव नहीं है तो फिर प्रश्न वही उठता है |