जानिए चंद्र दोष क्या होता ? और ग्रहण दोष का कैसे करें निवारण ?

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की ग्रहदोष शांति पूजा का महत्व यह पूजा किसी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है|

डेस्क-ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की आपने जन्मकुंडली में योग और दोष दोनों के बारे में जरूर सुना होगा।

ज्योतिष्य योग और ज्योतिष्य दोष ये दोनों अलग अलग प्रकार की ग्रहों की स्थितिया है जो आपस में उनके कुंडली में मिलने से उनके संयोग बनती है,

जिसे हम ज्योतिष्य भाषा में ग्रहों की युति कह कर सम्बोधित करते है। जो कई प्रकार के शुभ और अशुभ योगो का निर्माण करती है। उन शुभ योगो में कुछ राजयोग होते है। हर व्यक्ति अपनी कुंडली में राजयोग को खोजना चाहता है जोकि ग्रहो के संयोग से बनने वाली एक सुखद अवस्था है। ईश्वर की कृपया से जिनकी कुंडली में यह सुन्दर राजयोग होते है वह अपनी ज़िंदगी अच्छी प्रकार से व्यतीत कर पाने में समर्थ होते है। लेकिन इसके विपरीत कुछ जातक ऐसे भी होते है जिनकी कुंडली में ग्रह कुछ दुषयोगो का निर्माण करते है। जिनका जातक को यथा सम्भव उपाय करवा लेना चाहिये। आज हम यहाँ ग्रहों के माध्यमो से बनने वाले कुछ दुषयोगो के बारे में बात करेंगे।

  • ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की ग्रहदोष शांति पूजा का महत्व यह पूजा किसी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जीवन की सभी समस्याओं से व्यक्ति को बाहर लाता है।
  • सुख और समृद्धि के सभी प्रकार के किसी भी बाधाओं और रास्ते में बाधाओं के बिना हासिल किया जा रहा है।
  • ग्रहदोष शांति पूजा के लाभ इस पूजा के विभिन्न लाभ कर रहे हैं, क्योंकि यह व्यक्ति मानसिक गड़बड़ी, स्वास्थ्य समस्याओं, साथी के साथ इस समस्या से छुटकारा पाने में मदद करता है, बच्चे की अवधारणा।
  • पेशेवर जीवन में सफलता बहुत हद तक और धन के लिए सुधार हो जाता है और भौतिकवादी खुशी जीवन भर रखा है।

चंद्र ग्रहण दोष क्‍या होता है

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया कीजब राहु या केतू की युति चंद्र के साथ हो जाती है तो चंद्र ग्रहण दोष हो जाता है। दूसरे शब्‍दों में, चंद्र के साथ राहु और केतू का नकारात्‍मक गठन, चंद्र ग्रहण दोष कहलाता है। ग्रहण दोष का प्रभाव, विभिन्‍न राशियों पर विभिन्‍न प्रकार से पड़ता है जिसके लिए जन्‍मकुंडली, ग्रहों की स्थिति भी मायने रखती है|

चंद्र ग्रहण दोष के विभिन्‍न कारण

  • चंद्र ग्रहण दोष के कई कारण होते हैं और हर व्‍यक्ति के जीवन पर उसका प्रभाव भी अलग तरीके से पड़ता है।
  • चंद्र ग्रहण दोष का सबसे अधिक प्रभाव, उत्‍तरा भादपत्र नक्षत्र में पड़ता है।
  • जो जातक, मीन राशि का होता है और उसकी कुंडली में चंद्र की युति राहु या केतू के साथ स्थित हो जाएं, ग्रहण दोष के कारण स्‍वत: बन जाते हैं।
  • ऐसे व्‍यक्तियों पर इसके प्रभाव अधिक गंभीर होते हैं।

चंद्र ग्रहण दोष के अन्‍य कारण

  • राहु, राशि के किसी भी हिस्‍से में चंद्र के साथ पाया जाता है
  • जबकि केतू समान राशि में चंद्र के साथ पाया जाता है
  • राहु, चंद्र महादशा के दौरान ग्रहण लगाते हैं
  • चंद्र ग्रहण के दिन बच्‍चे को स्‍नान अवश्‍य कराएं।
  • चंद्र ग्रहण दोष का पता किस प्रकार लगाया जा सकता है

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की चंद्र ग्रहण दोष का पता लगाने के सबसे पहले जन्‍मकुंडली का होना आवश्‍यक होता है, इस जन्‍मकुंडली में राहु और केतू की दशा को पंडित के द्वारा पता लगाया जा सकता है। या फिर, नवमासा या द्वादसमास चार्ट को देखकर भी दोष को जाना जा सकता है। बेहतर होगा कि किसी ज्ञानी पंडित से सलाह लें। ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्‍म के कर्मों के कारण वर्तमान जन्‍म में चंद्र ग्रहण दोष लगता है।

चंद्र ग्रहण दोष के प्रभाव

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की व्‍यक्ति परेशान रहता है, दूसरों पर दोष लगाता रहता है, उसके मां के सुख में भारी कमी आ जाती है। उसमें सम्‍मान में कमी अाती है। हर प्रकार से उस व्‍यक्ति पर भारी समस्‍याएं आ जाती है जिनके पीछे सिर्फ वही दोषी होता है। साथ ही स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बंधी दिक्‍कतें भी आती हैं। सूर्य और चंद्र ग्रहदोष एक व्यक्ति के जीवन में अपने स्वयं के बुरे प्रभावों की है। सूर्य के कारण दोष व्यक्तिगत सफलता, शोहरत और नाम है जो समग्र विकास में पड़ाव परिणाम प्राप्त करने में बाधाओं का सामना। एक औरत बार-बार गर्भपात, बच्चे और दोषपूर्ण पुत्रयोग की अवधारणा में समस्या की तरह बच्चे से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ता। स्वास्थ्य समस्याओं को भी सूर्य दोष के कारण प्रमुख हैं। चंद्र दोष अपने स्वयं के बुरे प्रभावों के रूप में यह व्यक्ति अनावश्यक तनाव का एक बहुत कुछ देता है।

जानिए सप्त ऋषिओं एवं सप्तऋषि तारा मंडल के बारे में

इस दोष के कारण वहाँ विश्वास, भावनात्मक अपरिपक्वता, लापरवाही, याददाश्त में कमी, असंवेदनशीलता में एक नुकसान है। स्वास्थ्य छाती, फेफड़े, सांस लेने और मानसिक अवसाद से संबंधित समस्याओं को बहुत हद तक अनुकूल हैं। आत्म विनाशकारी प्रकृति भी हो जाता है एक व्यक्ति के मन में उठता है और आत्महत्या करने की कोशिश करता है।यदि आप हमेशा कश्मकश में रहते हैं, इधर-उधर की सोचते रहते हैं, निर्णय लेने में कमजोर हैं, भावुक एवं संवेदनशील हैं, अन्तर्मुखी हैं, शेखी बघारने वाले व्यक्ति हैं, नींद पूरी नही आती है, सीधे आप सो नहीं सकते हैं अर्थात हमेशा करवट बदलकर सोएंगे अथवा उल्टे सोते हैं, भयभीत रहते हैं तो निश्चित रुप से आपकी कुंडती में चन्द्रमा कमजोर होगा |समय पर इस कमजोर चंद्रमा अर्थात प्रतिकूल प्रभाव को कम करने का उपाय करना चाहिए अन्यथा जीवन भर आप आत्म विश्वास की कमी से ग्रस्त रहेंगे|

जानिए क्या हैं इस Ganesh Chaturthi 2018 पर विशेष योग

चंद्र दोष निवारण

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की चंद्र दोष के उपाय जो शास्त्रों में उल्लेखित हैं उनमें सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चांदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा देना तथा दूसरे को अपने पास रखना है. कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है. यदि चंद्र बारहवां हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएं और ना ही दूध पिलाएं. सोमवार को सफेद वास्तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र, 1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है.

जाप मंत्र
ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:

चंद्र नमस्कार के लिए मंत्र
दधि शंख तुषारामं क्षीरोदार्णव सम्भवम्. नमामि शशिनं भक्तया शम्भोर्मकुट भूषणम्..

शिव का महामृत्युंजय मंत्र-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्उ र्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्ष्रिय मामृतात्.
इसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहा गया है| यह मंत्र दैत्य गुरु शुक्राचार्य द्वारा दधीचि ऋषि को प्रदान किया गया था| चन्द्र दोष निवारण के लिये शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करवाएं| यदि आपके आसपास कोई शिव मंदिर हो तो वहां जाकर विशेष पूजा -अर्चना करनी चाहिए. उस रात्रि को संभव हो तो शिव मंदिर में जाकर जागरण करें|

Reliance JioPhone 95 में दे रहा है 6 महीने के लिए Unlimited Calling और Data


अमावस्या योग या दोष -

  • ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की जब सूर्य और चन्द्रमा दोनों कुण्डली के एक ही घर में विराजित हो जावे तब इस दोष का निर्माण होता है।
  • जैसे की आप सब जानते है की अमावस्या को चन्द्रमा किसी को दिखाई नही देता उसका प्रभाव क्षीण हो जाता है।
  • ठीक उसी प्रकार किसी जातक की कुंडली में यह दोष बन रहा हो तो उसका चन्द्रमा प्रभावशाली नही रहता।
  • और चन्द्रमा को ज्योतिष में कुण्डली का प्राण माना जाता है और जब चन्द्रमा ही प्रभाव हीन हो जाए तो यह किसी भी जातक के लिए कष्टकारी हो जाता है क्योंकि यही हमारे मन और मस्तिक्ष का करक ग्रह है।
  • इसलिए अमावस्या दोष को महर्षि पराशर जी ने बहुत बुरे योगो में से एक माना है, जिसकी व्याख्या उन्होंने अपने ग्रन्थ बृहत पराशर होराशास्त्र में बड़े विस्तार से की है तथा उसके उपाय बताये है।
  • जोकि में आगे अपने ब्लॉग पर कुछ समय बाद प्रकाशित करूँगा।
  • ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि सूर्य और चन्द्र दो भिन्न तत्व के ग्रह है सूर्य अग्नि तत्व और चन्द्र जल तत्त्व, इस प्रकार जब दोनों मिल जाते है तो वाष्प बन जाती है कुछ भी शेष नही रह जाता।

    ग्रहण योग या दोष -

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की जब सूर्य या चन्द्रमा की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है। चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण दोष की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है। चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है।

उपाय - जरूरी नही की हम हज़ारो रुपए लगा कर, भारी भरकम उपाय कर के ही ग्रहों का या भगवन का पूजन कर उपाय करे जैसे की आजकल ज्योतिष बताते है। बरन हम छोटे छोटे उपाय करके भी भगवन तथा ग्रहों को प्रसन्न कर सकते है। बस उस किये गए उपाय में सच्ची श्रधा भाव तथा उस परम पिता परमेश्वर में विश्वास होना अनिवार्य है। सूर्य देवता के लिए और चन्द्र देवता के लिए भी हम यह उपाय कर उन अपनी कुण्डली में उन्हें बलवान बना सकते है।

सूर्य से बने ग्रहण दोष में या कुण्डली में सूर्य देव के कमजोर होने पर हमे सूर्य देवता को प्रीतिदिन अर्घ्य देना चाहिए उसमे थोड़ा गुड, कुमकुम तथा कनेर के पुष्प या कोई भी लाल रंग पुष्प डाले तथा सूर्य भगवान को यह मंत्र "ॐ घृणि सूर्याय नमः " या "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः" जप ते हुए अर्घ्य दे। इसके अलावा अति प्राचीन और सर्वमान्य आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ सूर्य देवता की पूजा करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण तथा सर्वोपरि माना गया है तथा यह अपने प्रभाव जातक को शीघ्र ही अनुभव में करवा देता है।

चन्द्रमा और राहु या केतु से बनने वाले चन्द्र ग्रहण दोष के लिए सबसे अच्छा उपाय शिव जी भगवन की पूजा उनका प्रीतिदिन जल से कच्चे दूध से अभिषेक करना अति लाभदायक सिध्द होता है क्योंकि चन्द्रमा शिव जी भगवान की जटाओं में विराजमान है तथा शिव जी भगवन की पूजा से अति प्रस्सन होता है। इसके अलावा चन्द्रमा देवता के यन्त्र को घर में पूजा की जगह विराजित करे और अपनी पूजा के समय (सुबह और शाम) यन्त्र का भी धूप दीप से पूजन करे चन्द्रमा के मंत्र "ॐ श्राम श्रीम् श्रोम सः चन्द्रमसे नमः " का जाप करे ।


कमजोर चन्द्रमा का अन्य ग्रहों पर प्रभाव

  • ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया कीयदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा कमजोर हो तो अन्य ग्रहों की सार्थकता कम हो जाती है|
  • पूर्ण चन्द्रमा शुभ ग्रह की श्रेणी में आता है व अपूर्ण चन्द्रमा अशुभ ग्रह की श्रेणी में आता है|

उपाय और लाभ

  • ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की चन्द्रमा के अधिदेवता भी शिव हैं और इसके प्रत्याधिदेवता जल है|
  • अत: महामृत्युंजय मंत्र जाप शिव पूजा एवं शिव कवच का पाठ चंद्रपीड़ा में श्रेयस्कर है ही,साथ ही प्रत्याधिदेवता जल होने के कारण गणेशोपासना (विशेष रुप से केतु के साथ चंद्र हो तो) भी शुभदायी है,क्योंकि गणेश जलतत्व के स्वामी हैं|
  • गौरी,दुर्गा,काली,ललिता और भैरव की उपासना भी हितकर है|
  • दुर्गा सप्तशती का पाठ तो नवग्रह पीड़ा में लाभप्रद रहता ही है, क्योंकि यह समस्त ग्रहों को अनुकूल करता है व सर्व सिद्धिदायक है|
  • इसके अलावा चंद्र मंत्र व चंद्रस्तोत्र का पाठ भी अतिशुभ है|
  • चंद्रमा की पीड़ा शांति के निमित्त नियमित (अथवा कम से कम सोमवार को) चंद्रमा के मंत्र का 1100 बार जाप करना अभिष्ट होता है|

जाप मंत्र इस प्रकार है-

ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:.

चंद्र नमस्कार के लिए निम्लिखित मंत्र का प्रयोग करें-

दधि शंख तुषारामं क्षीरोदार्णव सम्भवम्.
नमामि शशिनं भक्तया शम्भोर्मकुट भूषणम्..

चंद्रमा सोम के नाम से भी जाने जाते हैं तथा मन,औषधियों एवं वनस्पतियों के स्वामी कहे गए हैं.

शिव का महामृत्युंजय मंत्र तो चंद्र पीड़ा के साथ-साथ सभी ग्रह पीड़ाओं का निवारण कर मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य देता है. वह इस प्रकार है-

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्ष्रिय मामृतात्.

इसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहा गया है.यह मंत्र दैत्य गुरु शुक्राचार्य़ द्वारा दधीचि ऋषि को प्रदान किया गया था.चन्द्र दोष निवारण के लिये शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करवाएं.यदि आपके आसपास कोई शिव मंदिर हो तो वहां जाकर विशेष पूजा -अर्चना करनी चाहिए.उस रात्रि को संभव हो तो शिव मंदिर में जाकर जागरण करें |

जन्म कुंडली के सभी भाव में ग्रहण दोष और उनका निवारण

  • ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की लग्न कुंडली में किसी भी भाव में सूर्य के साथ केतु या चंद्रमा के साथ राहू की युति हो तो ग्रहण योग बनता है |
  • इसके अलावा सप्तम या द्वादश भाव में नीच के शुक्र [कन्या राशी में ] के साथ राहू की युति को भी कुछ विद्वान ग्रहण दोष की संज्ञा देते है |
  • ग्रहण योग का दुष्प्रभाव कुंडली के विभिन्न भावों में अलग – अलग देखने को मिलता है |

प्रथम भाव- व्यक्ति गुस्सेल, स्वस्थ्य में कमी, रुखा स्वभाव व निज स्वार्थ सर्वोपरी मानने वाला होता है |
द्वितीय भाव- धन की चिंता करना, सरकारी छापे राजकार्य में धन की बर्बादी और मेहनत का परिणाम अल्प मिलता है |
तीसरा भाव- भाई-बंधुओ से कलह रहती है | यह योग जातक को शांतचित नही रहने देता |
चतुर्थ भाव- मानसिक परेशानी व अस्थिरता, निकटस्थ लोगो से वैचारिक मतभेद व हीनभावना से ग्रस्त व्यक्ति होता है |
पंचम भाव- बचपन कठोर व वृद्धावस्था संघर्षो से भरी हुई होती है | दरिद्रता, मित्रो का अभाव व गृह कलह रहता है |
छठा भाव- विविध रोग विशेष कर हृदय रोग, कदम कदम पर दुश्मनी पालने वाला, परस्त्रीगामी, संदेहास्पद व्यक्तित्व का जातक होता है|
सप्तम भाव- क्रोधी स्वभाव, कायाक्षीण, द्वि- भार्या योग,संकीर्ण मनोवृति व जीवनसाथी हमेशा स्वस्थ्य से संघर्षशील रहता है |
अष्टम भाव- अल्पायु योग का निर्माण, दुर्घटना का भय, बीमारी व दुष्ट मित्रो के माध्यम से धन का नाश होता है | यदि अन्य योग ठीक हो तो अल्पायु योग समाप्त हो सकता है
नवम भाव- शिक्षा व आजीविका के लिए निरंतर संघर्ष, व्यर्थ की यात्राएं, किसी का भी सहयोग नही, भाग्य वृद्धि 48 वर्ष के पश्चात होती है |
दशम भाव- माता-पिता के सुख में कमी, असंयमी, रोजगार के लिए संघर्षशील व्यक्ति रहता है |
ग्यारवाँ भाव- जिद्दी, गलत बात पर अड़ने वाला, आय के साधन अनिश्चित, ठगी, खुद भी धोखा खा सकता है |
बारहवां भाव- संघर्षशील व परेशानो का भरा जीवन, प्रेम विवाह [जाती से बहार] योग, व्यर्थ के व्ययों की भरमार, पिता के सुख में कमी व निरंतर उत्थान पतन का सामना करना पड़ता है |

ऐसे करें दोष निवारण उपाय

  • जयंतीमंगला काली भद्रकाली कृपालिनी |
  • दुर्गा क्षमा शिव धात्री, स्वाहा सवधा नमोस्तुते ||
  • ग्रहण योगजनित दोषों का निवारण जयंती का अवतार जीण की आराधना से होता है |
  • इसका ज्वलंतउदाहरण यह है के हमारे यहाँ पर ग्रहण काल में किसी भी देवी-देवता की पूजा नही होती है |
  • जबकि जीण की पूजा ग्रहण काल में भी मान्य है |
  • गृह जनित योग यहाँ पर निष्प्रभावी हो जाते है |
  • इस लिए जिन लोगो की कुंडली में ग्रहण-दोष है, वे निम्न प्रकार जीण की आराधना करे |
  • जीण के नाम से संकल्प लेकर शुक्लपक्ष की अष्टमी के 42 उपवास करे |
  • यदि ग्रहण दोष 1 , 3 , 6 , 8 , 11 , व 12 , भावों में है, तो शुक्लपक्ष की एकम से जीण की प्रतिमा के आगे तेल की अखंड जोत जलाकर अष्टमी तक नित्य पूजा अर्चना करे |
  • शेष भावों 2 , 4 , 5 , 7 , 9 व 10 , भावों में ग्रहण दोष है, तो अखंड जोत घी की जलाई जाती है व शेष क्रिया यथावत रखे |
  • इससे ग्रह दोष जनित बाधाओं का निवारण होता है |

नाभि के Blackness को दूर करने के जाने क्या है घरेलू उपाय

Share this story