सत्यम, शिवम और सुंदरम का रहस्य जानिए

सत्यम, शिवम और सुंदरम का रहस्य जानिए

पुराणों में इस संबंध में अलग अलग मत मिलते हैं

डेस्क-सत्यम, शिवम और सुंदरम के बारे में सभी ने सुना और पढ़ा होगा लेकिन अधिकतर लोग इसका अर्थ या इसका भावार्थ नहीं जानते होंगे। वे सत्य का अर्थ ईश्वर, शिवम का अर्थ भगवान शिव से और सुंदरम का अर्थ कला आदि सुंदरता से लगाते होंगे, लेकिन अब हम आपको बताएंगे कि आखिर में हिन्दू धर्म और दर्शन का इस बारे में मत क्या है।

केंद्रीय मंत्री आर एस प्रसाद ने कहा कांग्रेस पार्टी का करेंगे पर्दाफा

बदमाशों ने LLB छात्र को गोली मारी

  • हालांकि वेद, उपनिषद और पुराणों में इस संबंध में अलग अलग मत मिलते हैं
  • लेकिन सभी उसके एक मूल अर्थ पर एकमत हैं। धर्म और दर्शन की धारणा इस संबंध में क्या हो सकती है
  • यह भी बहुत गहन गंभीर मामला है। दर्शन में भी विचारधाएं भिन्न-भिन्न मिल जाएगी
  • लेकिन आखिर सत्य क्या है इस पर सभी के मत भिन्न हो सकते हैं।

सत्यम
योग में यम का दूसरा अंग है सत्य। हिन्दू धर्म में ब्रह्म को ही सत्य माना गया है। जो ब्रह्म (परमेश्वर) को छोड़कर सबकुछ जाने का प्रयास करता है वह व्यक्ति जीवन पर्यन्त भ्रम में ही अपना जीवन गुजार देता है। यह ब्रह्म निराकार, निर्विकार और निर्गुण है। उसे जानने का विकल्प है स्वयं को जानना। अर्थात आत्मा ही सत्य है, जो अजर अमर, निर्विकार और निर्गुण है। शरीर में रहकर वह खुद को जन्मा हुआ मानती है जो कि एक भ्रम है। इस भ्रम को जानना ही सत्य है।

Asia Cup 2018 INDvsAFG Afghanistan के खिलाफ आज इन खिलाडियों को मिल सकता है मौका

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने PM मोदी पर साधा निशाना

  • 'सत (ईश्वर) एक ही है। कवि उसे इंद्र, वरुण व अग्नि आदि भिन्न नामों से पुकारते हैं।
  • ऋग्वेद 'जो सर्वप्रथम ईश्वर को इहलोक और परलोक में अलग-अलग रूपों में देखता है
  • वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है अर्थात उसे बारम्बार जन्म-मरण के चक्र में फँसना पड़ता है।

सत्य का अलौकिक अर्थ
सत्य को समझना मुश्किल है, लेकिन उनके लिए नहीं जो धर्म और दर्शन को भलिभांति जानते हैं। सत्य का आमतौर पर अर्थ माना जाता है झूठ न बोलना, लेकिन यह सही नहीं है। सत् और तत् धातु से मिलकर बना है सत्य, जिसका अर्थ होता है यह और वह- अर्थात यह भी और वह भी, क्योंकि सत्य पूर्ण रूप से एकतरफा नहीं होता। परमात्मा से परिपूर्ण यह जगत आत्माओं का जाल है।

  • जीवन, संसार और मन यह सभी विरोधाभासी है। इसी विरोधाभास में ही छुपा है वह जो स्थितप्रज्ञ आत्मा और ईश्वर है।
  • सत्य को समझने के लिए एक तार्किक और बोधपूर्ण दोनों ही बुद्धि की आवश्यकता होती है।
  • बुद्धि आती है भ्रम और द्वंद्व के मिटने से। भ्रम और द्वंद्व मिटता है मन, वचन और कर्म से एक समान रहने से।

    शास्त्रों में आत्मा, परमात्मा, प्रेम और धर्म को सत्य माना गया है। सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। सत्य के साथ रहने से मन हल्का और प्रसन्न चित्त रहता है। मन के हल्का और प्रसंन्न चित्त रहने से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है। सत्य की उपयोगिता और क्षमता को बहुत कम ही लोग समझ पाते हैं। सत्य बोलने से व्यक्ति को सद्गति मिलती है। गति का अर्थ सभी जानते हैं।

Share this story