जानिए पितृपक्ष में पितरों को अंगूठे से ही क्यों दिया जाता है पानी 9 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है पितृपक्ष
श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है।
डेस्क-पितृपक्ष चल रहा है इसमें कई लोग श्राद्ध करते हैं। पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध में पिंडदान और तर्पण के साथ ब्राह्मण भोजन भी करवाया जाता है।
ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं। पिंडदान और तर्पण में पितरों को संतुष्ट करने के लिए जो जल और दूध दिया जाता है उसे हथेली में रखकर अंगूठे के द्वारा दिया जाता है। जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं। वहीं पितरों तक भोजन पहुंचाने के लिए कौओं, कुत्ते और गाय को भोजन करवाया जाता है।
जानिए कुछ ऐसी ही परंपराओं और उनके कारणों के बारे में
- चल रहा है इसमें कई लोग श्राद्ध करते हैं।
- पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध में पिंडदान और तर्पण के साथ ब्राह्मण भोजन भी करवाया जाता है।
- ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं।
- पिंडदान और तर्पण में पितरों को संतुष्ट करने के लिए जो जल और दूध दिया जाता है उसे हथेली में रखकर अंगूठे के द्वारा दिया जाता है।
- जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं। वहीं पितरों तक भोजन पहुंचाने के लिए कौओं, कुत्ते और गाय को भोजन करवाया जाता है।
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ये हैं वो परंपराएंपितरों का तर्पण करते समय अंगूठे से ही पानी क्यों दिया जाता है
- श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है।
- महाभारत और अग्निपुराण के अनुसार अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
- ग्रंथों में बताई गई पूजा पद्धति के अनुसार हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है।
- इस प्रकार अंगूठे से चढ़ाया गया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है।
- पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितर पूर्ण रुप से तृप्त हो जाते हैं।
श्राद्ध करते समय अनामिका उंगली में कुशा की अंगूठी क्यों पहनी जाती है
- हिंदू धर्म में कुशा (एक विशेष प्रकार की घास) को बहुत पवित्र माना गया है।
- अनेक कामों में कुशा का उपयोग किया जाता है।
- श्राद्ध करते समय कुशा से बनी अंगूठी (पवित्री) अनामिका उंगली में धारण करने की परंपरा है।
- ऐसी मान्यता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शंकर निवास करते हैं।
- श्राद्ध कर्म में कुशा की अंगूठी धारण करने से अभिप्राय है कि हमने पवित्र होकर अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म व पिंडदान किया है।
- महाभारत के अन्य प्रसंग के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया।
- कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा।
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श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन क्यों करवाया जाता है
- श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाना एक जरूरी परंपरा है।
- ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाए बिना श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है।
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं।
- ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है।
- इसलिए विद्वान ब्राह्मणों को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन कराने पर पितृ भी तृप्त होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
- भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करना चाहिए |
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितृ भी चलते हैं|
श्राद्ध में कौओं, गाय व कुत्तों को भोजन क्यों दिया जाता है
- ग्रंथों के अनुसार, कौवा यम का प्रतीक है, जो दिशाओं का फलित (शुभ-अशुभ संकेत बताने वाला) बताता है।
- इसलिए श्राद्ध का एक अंश इसे भी दिया जाता है।
- श्राद्ध में कौओं, गाय व कुत्तों को भोजन क्यों दिया जाता है|
- कौओं को पितरों का स्वरूप भी माना जाता है।
- मान्यता है कि श्राद्ध का भोजन कौओं को खिलाने से पितृ देवता प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वाले को आशीर्वाद देते हैं।
- श्राद्ध के भोजन का एक अंश गाय को भी दिया जाता है क्योंकि धर्म ग्रंथों में गाय को वैतरणी से पार लगाने वाली कहा गया है।
- गाय में ही सभी देवता निवास करते हैं।
- गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं इसलिए श्राद्ध का भोजन गाय को भी देना चाहिए।
- कुत्ता यमराज का पशु माना गया है, श्राद्ध का एक अंश इसको देने से यमराज प्रसन्न होते हैं।
- शिवमहापुराण के अनुसार, कुत्ते को रोटी खिलाते समय बोलना चाहिए कि- यमराज के मार्ग का अनुसरण करने वाले जो श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते हैं, मैं उनके लिए यह अन्न का भाग देता हूं।
- वे इस बलि (भोजन) को ग्रहण करें। इसे कुक्करबलि कहते हैं।
श्राद्ध में चतुर्दशी तिथि के दिन श्राद्ध क्यों नहीं करना चाहिए
- महाभारत के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में चतुर्दशी तिथि के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दिन जो लोग तिथि के अनुसार अपने परिजनों का श्राद्ध करते हैं, वे विवादों में घिर जाते हैं।
- उसके घर वाले जवानी में ही मर जाते हैं और श्राद्धकर्ता को भी शीघ्र ही लड़ाई में जाना पड़ता है।
- इस दिन केवल उन्हीं परिजनों का श्राद्ध करना चाहिए जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
- अकाल मृत्यु से अर्थ है जिसकी मृत्यु हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना आदि कारणों से हुई है।
- इसलिए इस श्राद्ध को शस्त्राघात मृतका श्राद्ध भी कहते हैं।
- इस तिथि के दिन जिन लोगों की सामान्य रूप से मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना उचित रहता है।
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