अगर पूरी करनी है मनोकामना शनि प्रदोष का इस तरह से रखे व्रत
Oct 5, 2018, 10:04 IST
शनि प्रदोष - 6 अक्टूबर 2018 को--
प्रिय पाठकों/मित्रों, वैदिक हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में कोई न कोई व्रत, त्यौहार अवश्य पड़ता है। दिनों के अनुसार देवताओं की पूजा होती है तो तिथियों के अनुसार भी व्रत उपवास रखे जाते हैं।
जिस प्रकार प्रत्येक मास की एकादशी पुण्य फलदायी बतायी जाती है उसी प्रकार हर के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि भी व्रत उपवास के लिये काफी शुभ होती है। ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि एकादशी में जहां भगवान विष्णु की पूजा की जाती है वहीं त्रयोदशी तिथि जिसे प्रदोष व्रत भी कहा जाता है में भगवान शिवशंकर की आराधना की जाती है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत का पालन करने से सभी प्रकार के दोषों का निवारण हो सकता है। प्रदोष व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी को रखा जाता है लेकिन हर त्रयोदशी की पूजा वार के अनुसार की जाती है। प्रत्येक वार की व्रत कथा भी भिन्न है। तो आइये जानते हैं शनिवार के दिन रखे जाने वाले प्रदोष व्रत यानि शनि त्रयोदशी के महत्व, व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।
इस बार 06 अक्टूबर 2018 को शनि प्रदोष व्रत पड़ रहा है। शनिदेव नवग्रहों में से एक हैं। शास्त्रों में शनि के प्रकोप से बचने के लिये शनि प्रदोष व्रत बताया गया है। सही विधि-विधान से किये गए शनि प्रदोष का हितकारी फल मिलता है। इस व्रत को करने से न सिर्फ शनिदेव के कारण होने वाली परेशानियां दूर होती हैं, बल्कि उनका आशीर्वाद भी मिलता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शनि प्रदोष के दिन जो व्यक्ति शनि से संबंधित वस्तुओं जैसे लोहा, तेल, तिल, काली उड़द, कोयला और कम्बल आदि का दान करता है तथा व्रत रखता है, शनिदेव उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है। प्रदोष व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा के लिए विशेष तिथि है। इस तिथि में व्रत व पूजन का विशेष महत्व होता है और ऐसी माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस तिथि में पूजन करता है। उसको मां पार्वती व भगवान शंकर की कृपा मिलती है। इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पडने के कारण शिव और माता पार्वती के साथ ही शनिदेव की भी कृपा प्राप्त होगी। प्रदोष व्रत त्रयोदशी क दिन रखा जाता है। ज्योतिषों के अनुसार इस बार का प्रदोष व्रत पुण्यकारी है।प्रदोष व्रत का पालन सफलता, शान्ति और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है। कहते हैं कि इस दिन शिव के किसी भी रूप का दर्शन सारे अज्ञान का नाश कर देता है और साधक को शिव की कृपा का भागी बनाता है।
शनि प्रदोष में खास तौर पर भगवान को तिल का भोग अर्पित करना चाहिए साथ ही गरीबों को भी भोग खिलाना चाहिए। काले छाते व जूते का दान करना चाहिए। इससे राशि में चंद्र देव से होने वाले सभी दोषों से शनि की कृपा से मुक्ति मिलती है। हम आपको बता दे कि इस व्रत में दो समय भगवान शिव की पूजा की जाती है, एक बार सुबह और एक बार शाम को सूर्यास्त के बाद, यानी कि रात्रि के प्रथम पहर में। शाम की इस पूजा का बहुत महत्व है क्योंकि सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है।
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से व्यक्ति को दो गायों के दान देने के समान पुण्य मिलता है। कलयुग में प्रदोष व्रत का अतुल्य महत्व है | इस दिन व्रत रखने और शिव की आराधना करने पर ईश्वर की कृपा हमेशा बनी रहती है जिससे व्रती को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस व्रत को करने से व्रत करने वाले व्यक्ति के साथ ही उसका पूरा परिवार हमेशा निरोग रहता है और सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। गुरु प्रदोष व्रत जहां शत्रुओं के विनाश के लिए किया जाता है। वहीं, जिनको संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।
शास्त्रों में वर्णित है कि संतान की कामना रखने वाले दम्पत्ति को शनि प्रदोष व्रत अवश्य रखना चाहिए। इसमें कोई संशय नहीं है कि यह व्रत शीघ्र ही संतान देने वाला है। संतान-प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष वाले दिन सुबह स्नान करने के पश्चात पति-पत्नी को मिलकर शिव-पार्वती और पार्वती-नन्दन गणेश की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए। इसके उपरान्त शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए किसी पीपल के वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाना चाहिए। साथ ही उन्हें पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास करना चाहिए। ऐसा करने से जल्दी ही संतान की प्राप्ति होती है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शनि प्रदोष व्रत में साधक को संध्या-काल में भगवान का भजन-पूजन करना चाहिए और शिवलिंग का जल और बिल्व की पत्तियों से अभिषेक करना चाहिए। साथ ही इस दिन महामृत्युंजय-मंत्र के जाप का भी विधान है। इस दिन प्रदोष व्रत कथा का पाठ करना चाहिए और पूजा के बाद भभूत को मस्तक पर लगाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो साधक इस तरह शनि प्रदोष व्रत का पालन करता है, उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और सम्पूर्ण इच्छाएँ पूरी होती हैं।
शनि प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिये। पूरे दिन मन ही मन "ऊँ नम: शिवाय " का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिये। शनि प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच की जाती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की व्रती को चाहिये की शाम को दुबारा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें । पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। "ऊं नम: शिवाय " कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर शिव जी का ध्यान करें।
ध्यान का स्वरूप-
करोड़ों चंद्रमा के समान कांतिवान, त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चंद्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कण्ठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुण्डल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किये हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिव जी हमारे सारे कष्टों को दूर कर सुख समृद्धि प्रदान करें।
ध्यान के बाद, शनि प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा सुनायें। कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर ११ या २१ या १०८ बार "ऊँ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा " मंत्र से आहुति दें । उसके बाद शिव जी की आरती करें। उपस्थित जनों को आरती दें।
सभी को प्रसाद वितरित करें । उसके बाद भोजन करें ।
भोजन में केवल मीठी सामग्रियों का उपयोग करें।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यदि आप व्रत करने में सक्षम नहीं हैं तो शनि प्रदोष व्रत कथा अवश्य पढ़ें और भगवान शिव पर देसी घी का दीपक और शनि देव पर सरसों के तेल का दीपक अर्पित करें। इससे भी अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है और भगवान शिव व शनि देव की कृपा भी प्राप्त होती है।
जानिए शनि प्रदोष का महत्व :-
वैसे तो प्रत्येक मास की दोनों त्रयोदशी के व्रत पुण्य फलदायी माने जाते हैं। लेकिन भगवान शिव के भक्त शनिदेव के दिन त्रयोदशी का व्रत समस्त दोषों से मुक्ति देने वाला माना जाता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार संतान प्राप्ति की कामना के लिये शनि त्रयोदशी का व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है। त्रयोदशी का व्रत प्रदोष व्रत कहलाता है। इस व्रत की पूजा प्रदोष काल में होती है इसी कारण इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले का समय प्रदोष काल का समय होता है। इस व्रत में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है। व्रती को त्रयोदशी के दिन प्रात:काल स्नानादि के पश्चात बिल्वपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप आदि से भगवान शिव की आराधना करनी चाहिये। निर्जल रहकर व्रत रखना चाहिये। सूर्यास्त के पश्चात संध्याकाल में ही पुन: भगवान शिवशंकर की पूजा करनी चाहिये। मान्यता है कि इस व्रत से नि:संतान को भी संतान सुख की प्राप्ति भगवान भोलेनाथ की कृपा से होती है।
भगवान शिव की निम्न वंदना भी करनी चाहिये--
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार
शिव शंकर जगगुरु नमस्कार
हे नीलकंठ सुर नमस्कार
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार
हे उमाकान्त सुधि नमस्कार
उग्रत्व रूप मन नमस्कार
ईशान ईश प्रभु नमस्कार
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।
यह हैं शनि त्रयोदशी (शनि प्रदोष) पूजन सामग्री:-
• धूप
• दीप
• घी
• सफेद पुष्प
• सफेद फूलों की माला
• आंकड़े का फूल
• सफेद मिठाइयां
• सफेद चंदन
• सफेद वस्त्र
• जल से भरा हुआ कलश
• कपूर
• आरती के लिये थाली
• बेल-पत्र
• धतुरा
• भांग
• हवन सामग्री
• आम की लकड़ी
जानिए कैसे करें शनि प्रदोष व्रत (की विधि) -
शनि प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिये। पूरे दिन मन ही मन “ऊँ नम: शिवाय ” का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिये। शनि प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच की जाती है। व्रती को चाहिये की शाम को दुबारा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें । पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं।
शनि त्रयोदशी प्रदोष व्रत कथा--
महर्षि सुत जी ने शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषियों शनि प्रदोष व्रत की कथा आरंभ इस दोहे से किया-
पुत्र कामना हेतु यदि हो विचार शुभ शुद्ध
शनि प्रदोष व्रत परायण करे सुभक्त विशुद्ध
हे मुनियों शुद्ध एवं मंगलकारी विचार रखने वाले भक्त यदि संतान प्राप्ति के इच्छुक हैं तो उन्हें सच्चे मन व श्रद्धा से शनि प्रदोष व्रत का परायण करना चाहिये। सुत जी बोले हे मुनियों मैं आपको जो कथा सुनाने जा रहा हूं वही कथा भगवान शिव ने देवी सती को सुनाई थी।
तो आप भी सुने यह कथा-
बहुत समय पहले की बात है एक नगर में एक बहुत ही समृद्धशाली सेठ रहता था। उसके घर में धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। कारोबार से लेकर व्यवहार में सेठ का आचरण सच्चा था। वह बहुत ही दयालु प्रवृति का था। धर्म-कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेता। इतनी ही धर्मात्मा पत्नी भी सेठ को मिली थी जो हर कदम पर पुण्य कार्यों में सेठ जी का साथ देती थी। लेकिन कहते हैं भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। उनके घर में एक ऐसा दुख था जिसका निदान दांपत्य जीवन के कई बसंत बीतने के बाद भी नहीं हो रहा था। दंपति को इस बात का दुख था कि विवाह के कई साल बीतने पर भी उनकी कोई संतान नहीं है। इसी दुख से पीड़ित दंपति ने तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। दोनों गांव की सीमा से बाहर निकले ही थे की मार्ग में बहुत बड़े प्राचीन बरगद के नीचे एक साधु को समाधि में लीन हुआ देखते हैं। अब दोनों के मन में साधु का आशीर्वाद पाने की कामना जाग उठी और साधु के सामने हाथ जोड़ कर बैठ गये। अब धीरे-धीरे समय ढ़लता गया पूरा दिन और पूरी रात सर पर से गुजर गई पर दोनों यथावत हाथ जोड़े बैठे रहे। प्रात:काल जब साधु समाधि से उठे और आंखे खोली तो दंपति को देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगे और बोले तुम्हारी पीड़ा को मैनें जान लिया है। साधु ने कहा कि एक वर्ष तक शनिवार के दिन आने वाली त्रयोदशी का उपवास रखो। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। तीर्थ यात्रा से लौटने पर सेठ दंपति ने साधु की बतायी विधिनुसार शनि प्रदोष व्रत का पालन करना शुरु किया जिसके प्रताप से कालांतर में सेठानी की गोद हरी हो गई और समय आने पर सेठानी ने एक सुंदर संतान को जन्म दिया।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शनि प्रदोष के दिन निम्न उपाय करने से आप पर शनि की कृपा बनी रहेगी। इसके साथ ही आपकी जन्म कुंडली में लगा साढ़े साती का प्रभाव भी कम होगा।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि प्रदोष व्रत शनि के अशुभ प्रभाव से बचाव के लिए उत्तम होता है। शनि प्रदोष व्रत करने वाले पर शनिदेव की असीम कृपा होती है। व्रत करने वाले को इस दिन प्रातःकाल भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए और इसके बाद शनि देव की पूजा। संध्या काल में सूर्यास्त के बाद रात होने से पहले गोधूली के समय शिव और शनि की पूजा करने से व्रत पूरा होता है। शनि प्रदोष व्रत के दिन ग्यारह बार दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि के अशुभ प्रभाव के कारण जीवन में आ रही परेशानी में कमी आती है।
पुराणों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत करने से शनि देव का प्रकोप शान्त हो जाता है। जिन लोगों पर साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव हो, उनके लिए शनि प्रदोष व्रत करना विशेष हितकारी माना गया है। इस दिन विधि-विधान से यह व्रत करना शनिदेव की कृपा प्राप्त करने का एक शास्त्रसम्मत आसान उपाय है। ऐसा करने से न सिर्फ़ शनि के कारण होने वाली परेशानियाँ दूर होती हैं, बल्कि शनिदेव का आशीर्वाद भी मिलता है जिससे सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
शनि प्रदोष वाले दिन जो जातक शनि की वस्तुओं जैसे लोहा, तैल, तिल, काली उड़द, कोयला और कम्बल आदि का दान करता है, शनि-मंदिर में जाकर तैल का दिया जलाता है तथा उपवास करता है, शनिदेव उससे प्रसन्न होकर उसके सारे दुःखों को हर लेते हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि संतान की कामना रखने वाले दम्पत्ति को शनि प्रदोष व्रत अवश्य रखना चाहिए।
-शनि प्रदोष के दिन कांसे की कटोरी में तिल का तेल लेकर उसमें अपना चेहरा देखें और फिर उसे शनिदेव का दान लेने वाले व्यक्ति, यानी डाकोत को दान कर दें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
-शनि प्रदोष के दिन एक काले कपड़े में काले उड़द, सवा किलो अनाज, दो लड्डू, कोयला व लोहे की कील लपेटकर बहते साफ जल में प्रवाहित कर दें।
-शनि प्रदोष के दिन काली गाय को बूंदी के लड्डू खिलाएं और गाय के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाकर पूजा करें। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की प्रदोष व्रत से करके यह उपाय आप हर शनिवार को भी कर सकते हैं। इससे शनिदेव आपसे प्रसन्न होंगे।
-शनि प्रदोष के दिन काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी हुई रोटी खिलाएं। आपको कभी भी अन्न-धन की कमी नहीं होगी।
--इसके अलावा शनि प्रदोष के दिन शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि के अशुभ प्रभाव के कारण जीवन में आ रही परेशानियों में कमी आती है। व्रत करने वाले को कम से कम 11 बार यह पाठ अवश्य करना चाहिए।
-शनि प्रदोष के दिन शनि यंत्र की प्रतिष्ठा करके और आज से रोज उसके सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं तथा नीले या काले रंग का कोई फूल चढ़ाएं। साथ ही यंत्र के सामने बैठकर शनि के मंत्र 'ऊं शं शनैश्चराय नम:' का जाप करें। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ऐसा करने से सभी प्रकार के रोगों से, कर्ज, मुकदमे आदि से राहत मिलती है। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की नौकरी पेशा लोगों की उन्नति में भी यह उपाय कारगर है।
--शनिदेव ने एक बार हनुमान जी को यह वचन दिया था कि वे हनुमान की पूजा करने वालों को कभी भी कोई कष्ट नहीं देंगे। इसलिए शनि के दोषों से बचने के लिये अगर शनि के साथ-साथ हनुमान जी के भी उपाय किए जाएं, तो मनोकामना जल्द ही पूरी होती है।
--शनि प्रदोष के दिन जहां शनिदेव को तिल, तेल, काले वस्त्र आदि चढ़ाए जाते हैं, वहां हनुमान जी को सिंदूर, लाल चंदन, फूल, चावल व लाल वस्त्र चढ़ाएं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इसके साथ ही हनुमान जी को गुड़ से बनी किसी चीज़ का भोग लगाएं, इससे हनुमान जी के साथ-साथ शनिदेव भी आपसे प्रसन्न होंगे और उनकी असीम कृपा आप पर बनी रहेगी।
-उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शनि प्रदोष के दिन जिनकी साढ़े-साती चल रही हो, उन्हें हनुमान जी पर चमेली का तेल चढ़ाना चाहिए।
-शनि प्रदोष के दिन वहीं 8 बरगद के पत्ते या फिर देशांतर से मदार या ढाक के पत्ते काले धागे में पिरोकर या फिर लौंग लगा हुआ पान का बीड़ा हनुमान जी पर चढ़ाने से शनि बाधा से मुक्ति मिलती है।
-उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शनि प्रदोष के दिन आठ बादाम लाकर, उन्हें हनुमान जी के पैरों में स्पर्श कराकर आधे बादाम काले कपड़े में बांधकर घर की पश्चिम दिशा में छुपाकर रखने से शनि का कोप शांत होता है, बाकी आधे हनुमान जी को अर्पित कर दें।
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