Newspaper के packets का यूज हो सकता है health के लिए खतरनाक
Newspaper का यूज करते हैं, तो alert हो जाएं क्योंकि ये आपकी health के लिए बहुत खतरनाक है।
डेस्क-कई बार स्ट्रीट फूड्स जैसे- समोसा, पकौड़ा, कचौड़ी, जलेबी या भेलपूरी आदि को दुकानदार Newspaper में रखकर दे देते हैं। कुछ लोग तेल में तली चीजों का अतिरिक्त तेल निकालने के लिए भी अखबार का प्रयोग करते हैं।
इसके अलावा कुछ दुकानों पर सामान रखने के लिए भी Newspaper से बने पेपर बैग का यूज किया जाता है। कई बार घरों में भी आप गीले बर्तन पोंछने, गीले हाथ पोंछने या खाना पैक करने के लिए अखबार का यूज करते हैं।
अगर आप भी खाने-पीने की चीजों खासकर ऑयली और गीली चीजों के लिए अखबार का इस्तेमाल करते हैं, तो सावधान हो जाएं क्योंकि ये आपकी health के लिए बहुत खतरनाक है।
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जाने क्यों खतरनाक है अखबार पर खाना
- क्या आपने कभी गौर किया है कि Newspaper या मैग्जीन के पन्नों पर खाना खाने, खाना रखने या पैक करने से छपे हुए अक्षरों की स्याही खाने पर लग जाती है।
- कई बार ये स्याही बहुत हल्की होती है और नजर नहीं आती है मगर फिर भी ये बहुत खतरनाक है।
- न्यूज़पेपर पर छपाई के लिए जिस स्याही का यूज किया जाता है, उसमें डाई आइसोब्यूटाइल फटालेट, डाइएन आईसोब्यूटाइलेट, ग्रेफाइट आदि तत्व होते हैं।
- ये इतने खतरनाक तत्व हैं कि इनकी बहुत छोटी मात्रा भी आपके बॉडी में कैंसर जैसे घातक रोग पैदा कर सकती है।
- भोजन के साथ जब ये तत्व आपकी बॉडी में पहुंचते हैं, तो आपके नर्वस सिस्टम में पहुंचकर पूरे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
आइए जानते हैं कि Newspaper में खाना खाने से किन बीमारियों का होता है खतरा
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मैग्जीन के चिकने पन्ने भी होते हैं खतरनाक
- पेट्रोलियम आधारित खनिज तेलों को पेपर पर स्याही को ज्यादा गाढ़ा दिखाने के लिये किया जाता है, तथा कोबाल्ट आधारित एजेंट्स को इसे सुखाने के लिये यूज किया जाता है।
- अगर इन दोनों का सेवन किया जाए तो गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का कारण बन सकते हैं।
- अगर आपको लगता है कि मेग्ज़ीन का कागज़ न्यूज़पेपर की तुलना में फ्राइड फूड रखने के लिये बेहतर होता है तो आप गलत हैं।
- क्योंकि भले ही इनकी स्याही आसानी से खाने में नहीं जाती है, लेकिन इस पेपर को चिकना बनाने व स्याही को ज्यादा टिकाऊ बनाने में प्रयोग किये गए कैमिकल कहीं ज्यादा हानिकारक होते हैं।
- कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का होता है खतरा।
- बच्चों का बौद्धिक विकास हो सकता है प्रभावित।
- ऑटो इम्यून रोगों का खतरा होता है।
- शरीर के हार्मोन्स में परिवर्तन कर सकता है।
- गर्भवती महिलाओं के शिशुओं को हो सकती हैं समस्याएं।