जानिए क्यों रखें नवरात्र पूजन में वास्तु नियमों का ध्यान

जानिए क्यों रखें नवरात्र पूजन में वास्तु नियमों का ध्यान

नवरात्रि में बनाये इस तरह स्वास्तिक का निशान

डेस्क -नवरात्रि का समय माता की पूजा के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है इसलिए कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनका विशेष ध्यान रखना बेहद ज़रूरी होता है ताकि देवी अप्रसन्न न हो। नवरात्रि में पूरे विधि-विधान से देवी के नौ स्वरूपों की आराधना करनी चाहिए।

इतना ही नहीं मूर्ति स्थापना से लेकर कलश स्थापना तक में वास्तु शास्त्र का भी ध्यान रखना चाहिए। यह बहुत आवश्यक है। वरना बनते काम बिगड़ने की संभावना हो सकती है। इसलिए हम आपके लिए माता की पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी लाए हैं... यह वास्तु नियम आपकी प्रार्थना को सिद्ध बना देंगे। नवरात्रि वास्तु को ध्यान में रख कर देवी की पूजा-पाठ करनी जरूरी है।

इससे आपकी पूजा का फल मिलता है।। यदि आपने इन बातों का ध्यान नहीं रखा तो हो सकता है तो पूजा अधूरी मानी जाएगी। नौ दिनों तक लगातार नौदुर्गा की पूजा करने से मां भगवती की कृपा मिलती है। विधि-विधान से सेवा, व्रत और उपासना करने से देवी प्रसन्न होती हैं।

सभी नवरात्र में यूं तो मां दुर्गा की आराधना पूरे विधि-विधान से की जाती है, लेकिन इस दौरान देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना के वक्त अगर वास्तुसम्मत कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो आराधना के फल में अतिशय वृद्धि होती है। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि वास्तु में ईशान कोण को देवताओं का स्थल बताया गया है इसलिए नवरात्र काल में माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में की जानी चाहिए।

इस दिशा में शुभता का वैज्ञानिक कारण यह है कि पृथ्वी की उत्तर दिशा में चुंबकीय ऊर्जा का प्रवाह निरंतर होता रहता है‍ जिससे उस स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ता रहता है। दूसरा कारण पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 अंश पूर्व की ओर झुकी हुई है। इस कारण पृथ्वी पूर्व की तरफ हटकर 66.5 पूर्वी देशांतर से यह दैवीय ऊर्जा पृथ्वी में प्रविष्ट होती है, जो ईशान कोण क्षेत्र में पड़ता है।

वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार दूसरी बात जो गौर करने लायक है कि अखंड ज्योति को पूजन स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए, क्योंकि आग्नेय कोण अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यदि नवरात्र पर्व के दौरान इस कोण में अखंड ज्योति रखी जाती है तो घर के अंदर सुख-समृद्धि का निवास होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। वैसे भी वास्तु में बताया गया है कि शाम के समय पूजन स्थान पर ईष्टदेव के सामने प्रकाश का उचित प्रबंध होना चाहिए। इसके लिए घी का दीया जलाना अत्यंत उत्तम होता है। इससे घर के लोगों की सर्वत्र ख्याति होती है।

नवरात्र के नौ द‍िनों में मां दुर्गा के जिन स्वरूपों की पूजा होती है उनमें माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि देवी हैं। नवरात्रों में नौ दिनों तक देवी माता जी का विशेष श्रृंगार करना चाहिए। चोला, फूलों की माला, हार और नए कपड़ों से माता जी का श्रृंगार किया जाता है। वहीं नवरात्र में देशी गाय के घी से अखंड ज्योति जलाना मां भगवती को बहुत प्रसन्न करने वाला कार्य होता है। लेकिन अगर गाय का घी नहीं है तो अन्य घी से माता की अखंड ज्योति पूजा स्थान पर जरूर जलानी चाहिए।


पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्र काल में यदि माता की स्थापना चंदन की चौकी या पट पर की जाए तो यह अत्यंत शुभ रहता है, क्योंकि वास्तुशास्त्र में चंदन को अत्यंत शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना गया है जिससे वास्तुदोषों का शमन होता है।

इस दौरान साधना किस दिशा में जा रही है, यह बात भी अहम है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि नवरा‍त्र काल में पूजन के समय आराधक का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए, क्योंकि पूर्व दिशा शक्ति और शौर्य का प्रतीक है। साथ ही इस दिशा के स्वामी सूर्य देवता हैं, जो प्रकाश के केंद्रबिंदु हैं इसलिए साधक को अपना मुख पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए जिससे साधक की ख्याति चारों ओर प्रकाश की तरह फैलती है।

नवदुर्गा यानी नवरात्र की 9 देवियां हमारे संस्कार एवं आध्यात्मिक संस्कृति के साथ जुड़ी हुई हैं। इन सभी देवियों को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिंदूर, लाल वस्त्र साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वही अर्पित किए जाते हैं। नवरा‍त्र पूजन में प्रयोग में लाए जाने वाले रोली या कुमकुम से पूजन स्थल के दरवाजे के दोनों ओर स्वास्तिक बनाया जाना शुभ रहता है। इससे माता की कृपा साधक के सारे दुखों को हर सुखों के दरवाजे खोल देती है। साथ ही यह रोली, कुमकुम सभी लाल रंग से प्रभावित होते हैं और लाल रंग को वास्तु में शक्ति और सत्ता का प्रतीक माना गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि आप विजयश्री को अपने मस्तक पर धारण करके अर्थात मुकुट बना के रोली या कुमकुम के माध्यम से पहन लेते हैं।

नवरात्र के 9 दिनों तक चूने और हल्दी से घर के बाहर द्वार के दोनों ओर स्वास्तिक चिह्न बनाना चाहिए। इससे माता प्रसन्न हो साधक को सुख और शांति देती है, वहीं अक्सर घरों में शुभ कार्यों में हल्दी और चूने का टीका भी लगाया जाता है जिससे वास्तु दोषों का नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति पर नहीं होता है। वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार पूजा स्थल को साथ-सुथरा रखना चाहिए। यदि आप ऐसी जगह पर हैं, जहां आपके ऊपर बीम है तो उसे ढंकने के लिए चांदनी का प्रयोग किया जाना चाहिए, जैसे हवन के समय यह बीचोबीच में लगाई जाती है।
घर या दूकान के मेन गेट के ऊपर देवी लक्ष्मी की ऐसी तस्वीर लगाएं, जिसमें मां कमल के फूल पर विराजित हो। ऐसा करने से घर-परिवार को कई शुभ फल मिलते हैं।

घर दुकान के दरवाज़े पर चांदी का स्वास्तिक लगाना शुभ फलदायक माना जाता हैं। वास्तु के अनुसार, इससे घर में बीमारी नहीं आती। ऐसा ना कर पाने पर लाल कुमकुम से भी स्वास्तिक बना सकते हैं।

नवरात्रि खत्म होने से पहले घर के मेन गेट पर मां लक्ष्मी के पैर के चिन्ह लगाना बेहद शुभ होता हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि पैर की दिशा अंदर की तरफ होनी चाहिए।

नवरात्रि में घर या दूकान के मेन गेट के पास किसी बर्तन में पानी भरकर उसमें फूल डाल दें। इसे गेट की पूर्व या उत्तर दिशा में रखें। इससे घर के मुखिया को कई फ़ायद होंगे।

घर के दरवाज़े पर सुंदर और कलरफुल तोरण बांधें। अगर तोरण आम, पीपल या अशोक के पत्तों से बनी हो तो और भी अच्छा होगा। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती।
घर या दूकान के मेन गेट पर ॐ का चिन्ह बनाएं या शुभ लाभ लिखें। ध्यान रखे ये चिन्ह दरवाज़े के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही बनाएं। इससे कोई बीमारी ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाती।।
।।शुभमस्तु।।
।।कल्याण हो।।
पंडित दयानंद शास्त्री

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