शरदपूर्णिमा के पावन अवसर आज जानिए भगवान कृष्ण की महारास लीला के बारे में विस्तार से

शरदपूर्णिमा के पावन अवसर आज जानिए भगवान कृष्ण की महारास लीला के बारे में विस्तार से

भगवान को वो रात्रि याद आई जिसमे भगवान ने गोपियों से कहा

डेस्क-शुकदेवजी महाराज ने कहा-परीक्षित! भगवान ने अपनी योगमाया का आश्रय लेकर उस सुन्दर शरद पूर्णिमा की रात्रि का निर्माण किया है। इस इसमे भगवान की उम्र आठ वर्ष पूर्ण हो चुकी है और नौवें वर्ष में प्रवेश किया है।

जब पूर्व दिशा की खिड़की को भगवान ने खोला तो भगवान को वो रात्रि याद आई जिसमे भगवान ने गोपियों से कहा था की तुम मेरे रसमय स्वरुप का दर्शन करोगे और तुम्हारे साथ रासक क्रीड़ा करूँगा।

  • आज तक तो माँ भगवान का श्रृंगार करती थी लेकिन आज स्याम सुंदर खुद अपना श्रृंगार कर रहे है।
  • माथे पर मोर मुकुट, कानों में कुण्डल गले में हार, बाहों में बाजूबंद, कमर में कोंधनी, पैरो में नुपुर और सुन्दर पीताम्बर।
  • और अपनी बंसी को लेकर श्री कृष्ण अपने शयन कक्ष की खिड़की से कूद पड़े।
  • केशर की क्यारियों में, गुलाबों की बागियों में और लता पता के नीचे झुक झुक कर कृष्ण चल रहे थे।

वो नागर नट वंशीवट पर पहुंचे। सारा जंगल सुगन्धित पुष्पों से लदा हुआ है। वातावरण शांतिप्रिय और आनन्दायक है। शरद ऋतु का यह चिर-प्रतीक्षित चंद्रोदय पूर्वी आकाश को रंजीत कर रहा है। भगवान ने वंशीवट की छइयां में अपनी कमर से पीताम्बर खोल कर बिछाया। और अपनी वंशी को विराजमान कर वंसी की स्तुति करने लगे।

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अरी वंशी मैंने तेरी बहुत स्तुति की पर आज तक तू मेरे कोई काम आई।
वंशी ने कहा प्यारे! आपने मेरी सेवा की। कब की थोड़ा बताइये

भगवान बोले देख वंशी मैंने तुझे अपने हाथ पर सुलाता हूँ। अपने होंठो का तकिया लगता हूँ। और अधरामृत का भोग भी तुझे लगता हूँ। और जब तू थक जाती है ना तो तेरे छिद्रों पर मेरी उँगलियाँ चलती है तो मानो तेरी चरण सेवा कर रहा हूँ। हवा के झोंको से जब मेरे घुँघरारे बाल हिलते है तो मानो तुझे पंखा कर रहा हूँ। वंशी मैंने तेरी किनती सेवा की पर तू मेरे आज तक तक कोई काम आई|

वंशी बोली की प्यारे मैं जानती हूँ आपको दुसरो की प्रशंसा करना बहुत आता है। अगर कोई प्रशंसा करना सीखे तो आपसे सीखे। अच्छा आप ये बताइये आपका काम क्या हैभगवान कहते है अरी वंशी आज तू ब्रज में जा और जो गोपियाँ है उनके ह्रदय में चित रूपी माणिक्य रखा है उसे चुरा कर लिया। वंशी बोली प्यारे आपके पास बस एक चोरी की ही बात है। और कोई बात नहीं है। अरे पहले माखन चुराया। फिर वस्त्र चुराए और आज चित भी चुराना चाहते हो।

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