भारत में Deepawali 2018 त्यौहार का महत्व

भारत में Deepawali 2018 त्यौहार का महत्व

Deepawali पर पुराने समय से ही जुआ खेलने का रिवाज

ज्योतिष डेस्क -Deepawali 2018 भारत का सबसे अधिक मनाया जाने वाला त्यौहार है। भारतीय क्षेत्रों और धर्मों के अनुसार दिवाली के त्यौहार के महत्व की विविधता है। भारतीय लोग जो अलग क्षेत्रों में रहते है, वे दिवाली अपनी संस्कृति, शास्त्र विधि और महत्व के अनुसार मनाते है।
यह भारत का मुख्य त्यौहार है क्योंकि भारतीय लोग बहुत ज्यादा धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पारंपरिक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भारतीय लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों की विविधता ने बहुत से मेलों और उत्सवों को बनाया है।

Deepawali 2018, भारत बहुत महत्व का त्यौहार है क्योंकि केवल भारत में ही इस त्यौहार से बहुत सारी हिन्दू भगवान की कहानियॉ और किवदंतियॉ जुङी हुई है। दिवाली त्यौहार की सभी किवदंतियॉ जैसे: भगवान राम और सीता की कहानी, महावीर स्वामी की कहानी, स्वामी दयानन्द की कहानी, राक्षस नरकासुर की कहानी, भगवान कृष्ण की कहानी, पांडवों की कहानी, गणेश और देवी लक्ष्मी की कहानी, भगवान विष्णु की कहानी, विक्रमादित्य की कहानी, सिख गुरु हरगोविंद की कहानी आदि और बहुत सी कहानियॉ है जो केवल भारत से ही जुङी हुई है। इसी लिये भारत में दिवाली का महत्व मनाया जाता है।

भारतीय लोग बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक रहे हैं, वे मानते है कि दिवाली पर सभी स्थानों पर दीयें जलाने से बुरी ऊर्जा को हटाकर अच्छी ऊर्जा आकर्षित होगी। वे समाज से इस बुराई को दूर करने के लिए पटाखें जलाकर बहुत तेज ध्वनि करते है। वे अपने घर और मन में आशीर्वाद, बुद्धि और धन का स्वागत करने के लिये रंगोली बनाते है, दरवाजे पर पर्दे लगाते है, देवी लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करते है। Diwali के त्यौहार की उत्पत्ति और इतिहास भारत से सम्बन्धित है। वे पूरे वर्ष शुद्ध आत्मा, समृद्धि और भगवान के आशीर्वाद के स्वागत के लिये अपने घरों, कार्यालयों और अन्य काम के स्थानों की साफ सफाई और पुताई कराते है।

Deepawali अच्छाई की बुराई के ऊपर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। दिवाली पर सरसों के तेल के साथ मिट्टी के दीये प्रज्जवलित करने का हिंदू अनुष्ठान है। लोगों के बीच दुश्मनी दूर करने और प्यार और दोस्ती को बढाने के लिये इस दिन मिठाई और उपहार वितरित करते है। यह पूरे भारत के साथ साथ भारत के बाहर भी विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा जैसे: हिन्दू, सिख, जैन और बुद्ध के द्वारा भी मनाया जाता है।


Diwali का हिन्दूओं के लिये महत्व--
भारत में हिन्दूओँ द्वारा दिवाली मनाने के आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। हर साल हिन्दूओं द्वारा मनाया जाने वाला दिवाली का उत्सव भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के उनके राज्य में 14 वर्ष बाद वापस आने से जुङा हुआ है। अयोध्या के लोगों ने अपने राजा का स्वागत मिट्टी के दीये जलाकर और पटाखें जलाकर किया। भगवान राम ने राक्षस राजा को हराया था इसलिये लोग इसे अच्छाई की बुराई के ऊपर विजय के प्रतीक के रुप में मनाते है।

Diwali के दिव्य चरित्र के अनुसार, दिवाली का पॉच दिनों का समारोह अलग अलग महत्वों को दर्शाता है। दिवाली का पहला दिन, धनतेरस हिन्दूओं के नये वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ को दर्शाता है। दिवाली का दूसरा दिन छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है जो भगवान कृष्ण की राक्षस नरकासुर पर जीत के रुप में जाना जाता है। दिवाली का तीसरा दिन मुख्य दिवाली के नाम से जाना जाता है जो हिन्दूओँ द्वारा देवी लक्ष्मी की पूजा करके देवी लक्ष्मी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है जो बहुत समय पहले देवताओं और राक्षसों द्वारा समुन्द्र मंथन से उत्पन्न की गयी थी। वे मानते है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से उनके ऊपर धन, बुद्धि और समृद्धि की बरसात होगी। दिवाली का चौथा दिन बली प्रतिप्रदा या गोर्वधन पूजा के नाम से जाना जाता है जो भगवान विष्णु की राक्षस राजा बली पर विजय के साथ साथ भगवान कृष्ण की घमण्डी इन्द्र के ऊपर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। दिवाली का पॉचवा और अन्तिम दिन यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से जाना जाता है जो हिन्दूओं में भाई- बहनों के रिश्ते और जिम्मेदारियों को मजबूती प्रदान करता है।

Diwali के त्यौहार पर दीयें जलाना और पटाखें जलाना बुद्धि, स्वास्थ्य, धन, शान्ति और समृद्धि प्राप्ति के साथ साथ बुराई को भी अपने घर और जीवन से नष्ट करने का अपना महत्व है। यह पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के वास्तविक आनन्द और खुशी को दर्शाता है। पटाखों से उत्पन्न धुआँ बारिश के मौसम में पैदा हुये हानिकारक कीङे मकोङे और मच्छरों को मारता है।

Diwali पर जुऍ का खेल खेलने का अपना महत्व है क्योंकि देवी पार्वती और भगवान शिव इस दिन पासों से खेले थे। देवी पार्वती ने घोषित किया कि जो दिवाली की रात को यह खेल खेलेगा वह पूरे वर्ष विकास करेगा। किसान अपने घर में नयी फसल लाने और नई फसल के मौसम के शुरू होने के कारण दिवाली मनाते हैं।


अन्य धर्मों में भी है Deepawali का महत्व
जैनियों के लिए दीवाली का महत्व---
जैनियों द्वारा भी दीवाली अपनी संस्कृति, परंपरा और महत्व के अनुसार मनायी जाती है। यह माना जाता है कि, दीपावली के दिन, भगवान महावीर (युग के अंतिम जैन तीर्थंकर) ने 15 अक्टूबर 527 ईसा पूर्व को पावापुरी में कार्तिक के महीने(अमावस्या की सुबह के दौरान) की चतुर्दशी पर निर्वाण प्राप्त किया था। कल्पसूत्र (आचार्य भद्रबाहु द्बारा रचित) के अनुसार, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में वहॉ अंधेरे को प्रकाशित करने के लिये बहुत सारे देवता थे। यही कारण है कि दीवाली जैन धर्म में महावीर के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

वे दिवाली के चौथे दिन या दिवाली प्रतिप्रदा को नये वर्ष शुरु होने के रुप में मनाते है। वे दिवाली से अपने व्यवसायों नये वित्तीय वर्ष की शुरुआत करते है। वे सामन्यतः ध्वनि प्रदूषण के कारण पटाखें जलाने से बचते है। वे रोशनी और दीये के साथ मंदिरों, कार्यालयों, घरों, दुकानों को सजाते है जो ज्ञान को फैलाने और अज्ञान को हटाने का प्रतीक है। वे मंदिरों में मंत्रोच्चार और अन्य धार्मिक गीतों का जाप करते है। जैन धर्म में भगवान से प्रार्थना करने के लिये दीवाली पर पावा-पुरी की यात्रा करने की एक रस्म है।

व्यवसायी धन की पूजा के साथ ही लेखा बहियों की पूजा करके धनतेरस मनाते हैं। काली चौदस पर विशेषतः महिलाओं द्वारा दो दिन का उपवास रखना पसन्द किया जाता है। अमावस्या के दिन वे भगवान की पूजा और उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने के लिए के डेरासर जाते है। वे “महावीरस्वामी प्रज्ञाते नमः” का जाप करते है। उनके लिये दिवाली का अर्थ है नया साल, वे एक दूसरे से मिलते है और शुभकामनाऍ देतें हैं। नए साल के दूसरे दिन वे भाऊबीज अर्थात् महावीर स्वामी की मूर्ति की शोभायात्रा निकालते है। वे पटाखें नहीं फोङते, बहुत अधिक क्रोध करने को टालते है इसके स्थान पर वे दान करते है, उपवास रखते है, मंत्र पढते है और मन्दिर सजाते है।

सिखों के लिए Diwali का महत्व--
सिखों के लिए दीवाली का त्योहार मनाने के अपने स्वयं के महत्व है। वे उनके गुरु हर गोबिंद जी के और कई हिंदू गुरुओं के साथ सम्राट जहाँगीर की जेल से घर वापसी के उपलक्ष्य में यह जश्न मनाते है। जेल से मुक्त होने के बाद हर गोबिंद जी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गये। लोगों ने बहुत उत्साह और साहस के साथ पूरे शहर को सजाकर और दीयें जलाकर अपने गुरु की आजादी का जश्न मनाया। उस दिन से गुरु हरगोबिंद जी बंदी-छोर अर्थात् मुक्तिदाता के रूप में जाने जाना शुरू हो गये। लोग गुरुद्वारे जाते है और भगवान से पूजा करते है और लंगर करते है। वे गुरुद्वारे में मोमबत्ती जलाते है और कुछ पटाखें भी जलाते है। वे अपने गुरु की मुक्ति दिवस के रूप में दीवाली मनाते हैं यही कारण है कि यह बंन्दी दिवस के रूप में भी जाना जाता है।

सिखों के दीवाली मनाने का एक और महत्व साल 1737 में भाई मणि सिंह जी की शहादत है, जो बड़े सिख विद्वान और रणनीतिकार थे। दीपावली के दिन पर उन्होंने खालसा के आध्यात्मिक बैठक में कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया जो मुगल सम्राट द्वारा उन लोगों के ऊपर लगाया गया था, जो मुसलमान नहीं थे। यही कारण है कि वे भी भाई मणि सिंह जी की शहादत याद करने बंदी छोर दिवस के रूप में दीवाली मनाते है।

बौद्ध धर्म में Diwali का महत्व---
यह माना जाता है कि इस दिन पर सम्राट अशोक ने अपना धर्म बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया इसके कारण बौद्ध समुदाय द्वारा दीवाली मनायी जाती है। यही कारण है कि वे अशोक विजयादशमी के रूप में दीवाली मनाते है। वे मंत्र जाप के साथ ही सम्राट अशोक याद करके इसे मनाते हैं।

बच्चों के लिए दीवाली का महत्व
दीवाली का त्यौहार हर साल दशहरा के 18 दिनों के बाद आता है जो भारतीय समुदायों में सबसे ज्यादा मनाया जाने वाला त्यौहार है। भारतीय लोग रस्म या त्यौहार के रूप में अपनी नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति और परंपरा देना चाहते है। दीवाली सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक है जो बहुत वर्षों पूर्व से हमारी संस्कृति और परंपराओं को जारी रखें हुये है। जो हमने हमारी पुरानी पीढ़ी से सीखा है और वहीं अपनी नई पीढ़ी को दे दिया है। दीवाली धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं सहित सामाजिक विधि का त्यौहार है।

बच्चें आने वाले सभी त्योहारों के बारे में जानने के लिये और को मनाने के लिए बहुत उत्सुक और निर्णायक होते हैं। वे इतिहास और कहानियों और त्यौहार के महत्व को जानना चाहते हैं। दीवाली हमारे बच्चों को बताने के लिए बहुत सारे अवसर लाता है दिवाली के धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व है, इतिहास और कहानी के बारे में। वे आसानी से दिवाली के सभी और प्रत्येक पहलु को दिवाली के एक समान कई प्रतीकों के माध्यम से जान जाते है। उनको दिवाली की सभी और प्रत्येक क्रिया में शामिल करना जैसे: खरीददारी करना, शिल्प बनाना, दीये बनाना और रंगना और सजाना आदि उनकी उत्सुकता को बढाता है। उन्हें अपनी खरीददारी और लाइट की सजावट में मदद करने देना चाहिये।

उन्हें साफ सफाई और लाइट लगाने की गतिविधियों में शामिल करना चाहिये। उन्हें विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित दिवाली के इतिहास और महत्व के बारे में सही बताना चाहिये। उन्हें यह भी बताना चाहिये कि इस दिन दीये जलाना (प्रकाश करना), साफ सफाई करना, मिठाई बाँटना क्यों आवश्यक है। इस तरह वे भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के प्रति अपने दायित्व और सामाजिक क्रियाओं को सुधारेंगें। उन्हें रंग बिरंगे दिवाली कार्ड, लिफाफे और रंगोली बनाने के लिये प्रोत्साहित करना अच्छी शुरुआत हो सकती है। उन्हें दिवाली पर फैशनेवल कपडे खरीदने के स्थान पर परम्परागत कपङे खरीदने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। उन्हें दिवाली सकुशल और सुरक्षित मनाने की, विभिन्न प्रकार के भारतीय भोजन और मिठाई बनाने की, पूजा कैसे करते है, कैसे पटाखें और फूलझडियॉ जलाते है और कैसे सभी से मिलते है आदि की शिक्षा देनी चाहिये।

Diwali पर रोशनी का महत्व---
दिवाली के महान त्यौहार पर अपने घरों और रास्तों के सभी ओर दीयों को जलाने की परम्परा है। पूरे वर्ष घर में स्वास्थ्य, धन, बुद्धिमत्ता, शान्ति और समृद्धि लाने के लिये घरों को दीयों और मोमबत्ती के प्रकाश से प्रकाशित करने की रस्म है। घर की प्रत्येक जगह से अन्धकार को हटाकर घर में देवी लक्ष्मी का स्वागत करने की भी रस्म है। सभी जगह जलता हुआ प्रकाश अन्धकार को हटाने के प्रतीक के साथ अपनी आत्मा से बुराई को हटाने का भी प्रतीक है। लोग पूजा करके और दीये जलाकर धन और समृद्धि का आशीर्वाद लेते है।

जलते हुये दीये अच्छाई की बुराई के ऊपर विजय का प्रतीक है। दिवाली पर विभिन्न प्रकार के दीपकों की किस्में प्रयोग की जाती है जैसे: हाडी दीपक, मिट्टी के दीयें, मोमबत्ती, बिजली के लैंप, पीतल, तांबा या धातु लैंप आदि।

दीवाली पड़वा का महत्व---
दिवाली का चौथा दिन वर्शप्रतिपदा और प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है जिसके मनाने का अपना महत्व है। यह हिन्दू कलैण्डर के अनुसार कार्तिक महीने में पहले दिन पडता है। वर्शप्रतिपदा और प्रतिपदा का महत्व पडवा के दिन राजा विक्रमादित्य के राज अभिषेक के साथ विक्रम संवत् के प्रराम्भ से सम्बन्धित है। इसी दिन व्यवसायी अपने नये वित्तीय खाते शुरु करते है।

एक अन्य हिन्दू परम्परा के अनुसार यह माना जाता है पत्नियॉ अपने पति के माथे पर लाल रंग का तिलक लगाकर, गले में माला पहनाकर, आरती करके उनकी लम्बी उम्र की प्रार्थना करती है। बदले में पत्नियॉ अपने पति से उपहार प्राप्त करती है। यह गुडी पडवा के नाम से भी जाना जाता है जो पति पत्नी के बीच प्रेम, स्नेह और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन लङकी के माता-पिता नव विवाहित जोडे को विशेष भोज पर आमन्त्रित करते है।

पडवा के दिन राजा बलि भगवान विष्णु के द्वारा हरया गया था, इसीलिये इसे बलि पद्दमी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान की राक्षस के ऊपर विजय की याद में भी मनाया जाता है।
Deepawali 2018 के दिनों का महत्व----
दीवाली पांच दिनों का त्यौहार है; प्रत्येक दिन के उत्सव का धर्मों और रीतियों के अनुसार अलग-अलग महत्व है। हिंदू धर्म में, दीवाली के दिनों को तदनुसार मनाया जाता है:

दिवाली का पहला दिन धनतेरस, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके मनाया जाता है। लोग नयी वस्तुऍ खरीदते है और घर लाते है जिसका अर्थ है कि लक्ष्मी घर आयी है। धनतेरस भगवान धनवंतरी (देवताओं के चिकित्सक के रूप में भी जाना जाता है) की जयंती या जन्मदिन की सालगिरह याद करने के लिए मनाया जाता है । यह माना जाता है कि उनकी उत्पत्ति सागर मंथन के दौरान हुयी थी।

दिवाली का दूसरा दिन राक्षस नरकासुर पर भगवान कृष्ण की जीत के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुबह तेल स्नान करके नये कपडे पहनने का रिवाज है। तब भगवान कृष्ण या विष्णु के लिए प्रकाश व्यवस्था और पूजा समारोह आयोजित किया जाता है।

दिवाली का तीसरा दिन समृद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद पाने के लिए देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके मनाया जाता है। जलते हुये दीयों का महत्व अंधकार को दूर करके और घर में देवी का स्वागत करने के लिए है।

चौथा दिन गोवर्धन पूजा(अर्थात् अन्नकूट) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का महत्व घमण्डी इन्द्र के ऊपर भगवान कृष्ण की विजय के उपलक्ष्य में जाना जाता है, जिन्होंने गोकुल वासियों को संकटपूर्ण बारिश से सुरक्षित किया था। यह दिन दुष्ट आत्मा राजा बाली पर भगवान विष्णु की विजय की याद करके बाली-प्रतिपदा के रूप में भी मनाया जाता है।

पांचवॉं दिन भाइयों और बहनों द्वारा भाई दूज के रूप में से मनाया जाता है, जो उनके बीच प्यार के बंधन को दर्शाता है। दिन का मुख्य महत्व मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यामी (अर्थात् यमुना नदी) की कहानी है।
पंडित दयानंद शास्त्री

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