इस तरह बदलें अपनी किस्मत

इस तरह बदलें अपनी किस्मत

जो किस्मत में लिखा होता है वही होता है

डेस्क-कुछ लोगों का मानना है कि ईश्वर हमारे भाग्य को पहले से ही लिख देता है और हम सबके भाग्य के अनुसार ही हमें जीवन में सफलता और असफलता से रू-ब-रू कराता है। भाग्यवादी लोग कहते हैं |

जो किस्मत में लिखा होता है वही होता है, कर्म कुछ भी करते रहो। कर्मवादी कहते हैं, भाग्य कुछ नहीं होता। भाग्यवादी और कर्मवादी की यह बहस कभी खत्म नहीं हो सकती। लेकिन यह भी सत्य है कि भाग्य और कर्म दोनों के बीच एक रिश्ता जरूर है। कर्म अध्ययन के समान है और भाग्य रिजल्ट के समान।

कुछ लोग कर्मप्रधान नीति से जीवन जीते हैं। वे इस बात पर अडिग विश्वास रखते हैं कि जो कुछ भी उनके जीवन में हुआ है, वह उनके अपने कर्मों के कारण हुआ है। दूसरे कुछ लोग भाग्य नीति से जीवन जीते हैं। उनका गहरा यकीन इस बात पर होता है कि उनके जीवन में सब कुछ भाग्य के कारण ही हुआ है।

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  • इन दोनों से अलग कुछ ऐसे लोग होते हैं जो इन दोनों ही मान्यताओं को मिला देते हैं।
  • वे अपने आपको प्रभु को समर्पित कर देते हैं। जो भी कर्म वे करते हैं वह प्रभु को समर्पित होता है
  • जो भी इसके परिणामस्वरूप उन्हें मिलता है, उसे प्रभु का प्रसाद मानकर आनंद से जीवन जीते हैं।
  • ऐसे लोग सही मायनों में सुखपूर्वक जीवन जीते हैं।

भारत के लगभग हर व्यक्ति में भाग्यवादिता कूट-कूट कर भरी हुई है। इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं हमारे महात्मा, संत और ज्योतिषी समुदाय के लोग। हर आदमी का अपने कर्मों पर नहीं बल्कि अपने भविष्य के सुखद और अच्छे होने पर ज्यादा ध्यान रहता है। पुराने समय में राजा-महाराजा भी अपने यहां राज ज्योतिष रखते थे। आज भी यह सोच कायम है। हां उसका रूप बदल गया है। आज भी बड़े-बड़े राजनेता, अभिनेता इसी लकीर के फकीर बने हुए हैं और भाग्य को जानने के लिए हर क्षण लालायित दिखाई देते हैं।

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  • बहुत कम ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने मनुष्य को भाग्यवादिता से ऊपर उठने की प्रेरणा दी है। इन संतों के अनुसार आपकी इच्छा शक्ति ही है
  • जो बनाती है आपका भाग्य। हम अपनी इच्छा शक्ति को तब कमजोर करते हैं
  • जब हम ऐसी गलत धारणाओं को स्थायी रूप से अपने साथ जोड़ लेते हैं कि भाग्य में होगा तो मिल ही जाएगा
  • नहीं तो नहीं मिलेगा। ये शब्द हम अपनी अज्ञानता के कारण इस्तेमाल करते हैं।
  • हमें प्रकृति के नियमों की जानकारी नहीं होती। इसलिए हम परमात्मा और भाग्य पर सब छोड़ देते हैं या उन्हें जिम्मेदार मानते हैं।


भाग्यवाद और कुछ नहीं सिर्फ पुरुषार्थ से बचने का एक बहाना या आलस्य है जो खुद अपने ही मन द्वारा गढ़ लिया जाता है। वास्तविकता यह है कि आस्था, विश्वास और इच्छाशक्ति इन तीन शब्दों का समुचित इस्तेमाल करने की जरूरत है। आस्था परमात्मा में, विश्वास खुद में और इच्छाशक्ति हमारे कर्म में- जब इन तीन को मिलाया जाए तो फिर किस्मत को भी बदलना पड़ता है। किस्मत को बदलना सिर्फ हमारी सोच को बदलने जैसा है।

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