Chhath Puja :सूर्य की आराधना का सबसे बड़ा पर्व है छठ पूजा, जानें क्या है इसका महत्व

Chhath Puja :सूर्य की आराधना का सबसे बड़ा पर्व है छठ पूजा, जानें क्या है इसका महत्व

Chhath Puja :छठ पर्व के पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।


डेस्क- Chhath Pooja, सूर्य की आराधना का सबसे बड़ा दिन होता है , और महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। जितना इस पर्व और व्रत का महत्व है, उतनी ही इससे जुड़ी कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं।

वैसे तो छठ के व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन पांडवों की कथा सबसे अधिक कही जाती है। इस कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा। इस व्रत को रखने के बाद ही द्रौपदी की मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।


वैज्ञानिक महत्व भी छिपा हुआ है Chhath Puja

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  • लोक परंपरा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है।
  • ऐसी मान्यता है कि लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।
  • छठ पर्व के पीछे पौराणिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी छिपा हुआ है, जो कई लोग नहीं जानते।
  • छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है।
  • दरअसल षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है।
  • उस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं।
  • उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्‍य इस परंपरा में है।
  • छठ पर्व के पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।

छठ पूजा की कथा

  • परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं।
  • पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है।
  • भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है न ऐश्वर्ययुक्त मूर्तियों की।
  • एक पौराणिक लोककथा के अनुसार लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की।
  • सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
  • एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी।
  • सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की।
  • कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था।
  • वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था।
  • सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
  • कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है।
  • वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।

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