क्यों होता है तुलसी-शालिग्राम का विवाह

क्यों होता है तुलसी-शालिग्राम का विवाह

शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही एक स्वरुप माना जाता है

डेस्क-धार्मिक मान्यता के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं। इसी दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत भी होती है। देवउठनी एकादशी से जुड़ी कई परंपराएं हैं। ऐसी ही एक परंपरा है तुलसी-शालिग्राम विवाह की।

शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही एक स्वरुप माना जाता है। तुलसी शालिग्राम का विवाह क्यों होता है इसकी शिव पुराण एक कथा है जो इस प्रकार है।शिवमहापुराण के अनुसार पुरातन समय में दैत्यों का राजा दंभ था। वह विष्णुभक्त था। बहुत समय तक जब उसके यहां पुत्र नहीं हुआ तो उसने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को गुरु बनाकर उनसे श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया और पुष्कर में जाकर घोर तप किया।

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  • उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र होने का वरदान दिया।
  • भगवान विष्णु के वरदान स्वरूप दंभ के यहां पुत्र का जन्म हुआ।
  • (वास्तव में वह श्रीकृष्ण के पार्षदों का अग्रणी सुदामा नामक गोप था
  • जिसे राधाजी ने असुर योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया था) इसका नाम शंखचूड़ रखा गया।
  • जब शंखचूड़ बड़ा हुआ तो उसने पुष्कर में जाकर ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की।

शंखचूड़ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब शंखचूड़ ने वरदान मांगा कि- मैं देवताओं के लिए अजेय हो जाऊं। ब्रह्माजी ने उसे वरदान दे दिया और कहा कि- तुम बदरीवन जाओ। वहां धर्मध्वज की पुत्री तुलसी तपस्या कर रही है, तुम उसके साथ विवाह कर लो।

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