19 नवंबर को है देवउठनी एकादशी व्रत कैसे करें पूजन, पाएं माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा

19 नवंबर को है देवउठनी एकादशी व्रत कैसे करें पूजन, पाएं माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा

देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने भगवान शालिग्राम के रूप में तुलसी माता से विवाह रचाया था।

डेस्क-इस माह 19 नवंबर को आने वाली कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है।

देवउठनी एकादशी का व्रत बहुत ही शुभ होता है. इस व्रत के शुभ प्रभाव से परिवार में सुख-समृद्धि और वैभव बढ़ने लगता है|

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आइए जानते हैं कि कैसे रखें देवोत्थान एकादशी का व्रत

  • निर्जल या केवल जलीय चीजों पर उपवास रखना चाहिए. रोगी, वृद्ध, बच्चे और व्यस्त लोग केवल एक वेला उपवास रखें.
  • अगर व्रत संभव न हो तो इस दिन चावल और नमक न खाएं.
  • भगवान विष्णु या अपने ईष्ट देव की उपासना करें.
  • इस दिन प्याज़, लहसुन, मांस, मदिरा और बासी भोजन से परहेज रखें.
  • पूरे दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः " मंत्र का जाप करें.

इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं-

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।

इस देवउठनी एकादशी की पूजा एक विशेष विधि से की जाती है

  • गन्ने का मंडप बनाकर उसके बीच में चौक बनाया जाता है.
  • चौक के बीच में भगवान विष्णु की प्रतिमा रखते हैं.
  • चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्ह बनाकर ढक दिया जाता है.
  • भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा, फल और मिठाई चढ़ाते हैं.
  • फिर घी का अखंड दीपक जलाते हैं, जो पूरी रात जलता है.
  • भोर में भगवान के चरणों की पूजा की जाती है.
  • फिर भगवान के चरणों को स्पर्श करके उन्हें जगाया जाता है.
  • शंख, घंटा और कीर्तन की ध्वनि करके व्रत की कथा सुनी जाती है|
  • इसके बाद से ही सारे मंगल कार्य शुरू किये जा सकते हैं|
  • श्रीहरि के चरण-स्पर्श करके जो भी मांगते हैं वो ज़रूर मिलता है|

क्यों होता है तुलसी-शालिग्राम का विवाह

ऐसी मान्यता है कि इस दिन ही भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं, और उनके जागने के बाद ही सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से शुरू होते हैं। दरअसल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु क्षीर सागर में सोने के लिए चले जाते हैं जिसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता। इन चार महीनों में पूरी सृष्टि का संचालन भगवान शंकर करते हैं।

जानें इस व्रत की खास बातें


इस दिन देवी-देवता मनाते हैं दिवाली
हिंदू पुराणों और शास्त्रों के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन सभी देवी-देवता पृथ्वी पर एक साथ आकर देव दीवाली मनाते हैं। दिवाली के समय भगवान विष्णु निद्रा में लीन होते हैं, इसलिए लक्ष्मी की पूजा उनके बिना ही की जाती है। मान्यता है कि देवउठनी ग्यारस को भगवान विष्णु के उठने के बाद सभी देव ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारते हैं।

तुलसी-शालीग्राम विवाह
इस दिन गन्ने की मंडप में तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह किया जाता है। यह पौधा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। हर भोग को वह तुलसी पत्र के साथ ही स्वीकार करते हैं। भगवान विष्णु ने भगवान शालिग्राम के रूप में तुलसी माता से विवाह रचाया था।
एकादशी व्रत कथा
एक बार भगवान विष्णु से लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान! आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए।

आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा। लक्ष्मीजी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा कि तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता इसलिए आज से मैं हर वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा।
मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करूंगा।


व्रत की शुरूआत कैसे हुई थी
मान्यता है कि भगवान विष्णु से एकादशी ने वरदान मांगा था कि जो भी एकादशी का व्रत करेगा उसका कल्याण होगा, मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से प्रत्येक मास की एकादशी का व्रत की परंपरा आरंभ हुई।
एकादशी पारण मुहूर्त

देवउठानी ग्यारस को पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त शाम 5.25 बजे से 7.05 बजे तक व रात 10.26 बजे से 12 बजे तक है।

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