शिव तत्व का रहस्य
शिव पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा विष्णु व शिव एक-दूसरे से उत्पन्न हुए हैं
डेस्क-माता पार्वती भगवान शंकर से पूछ रहीं हैं, कि हे कामदेव के शत्रु आप भी दिन-रात आदरपूर्वक राम-राम जपा करते हैं- ये राम वही अयोध्या के राजा के पुत्र हैं या अजन्मे, निर्गुण और अगोचर कोई और राम हैं |
शंकर जी को जप करते देख पार्वती को आश्चर्य हुआ कि देवों के देव , महादेव भला किसका जप कर रहे हैं। पूछने पर महादेव ने कहा , विष्णुसहस्त्रनाम का। ' पार्वती ने कहा , इन हजार नामों को साधारण मनुष्य भला कैसे जपेंगे कोई एक नाम बनाइए , जो इन सहस्त्र नामों के बराबर हो और जपा जा सके। महादेव ने कहा- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे , सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।
यानी राम-नाम सहस्त्र नामों के बराबर है। भगवान शिव , विष्णु , ब्रह्मा , शक्ति , राम और कृष्ण सब एक ही हैं। केवल नाम रूप का भेद है , तत्व में कोई अंतर नहीं। किसी भी नाम से उस परमात्मा की आराधना की जाए , वह उसी सच्चिदानन्द की उपासना है।
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- इस तत्व को न जानने के कारण भक्तों में आपसी मतभेद हो जाता है।
- परमात्मा के किसी एक नाम रूप को अपना इष्ट मानकर , एकाग्रचित्त होकर उनकी भक्ति करते हुए |
- अन्य देवों का उचित सम्मान व उनमें पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए।
- किसी भी अन्य देव की उपेक्षा करना या उनके प्रति उदासीन रहना स्वयं अपने इष्टदेव से उदासीन रहने के समान है।
- शिव पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा , विष्णु व शिव एक-दूसरे से उत्पन्न हुए हैं
- एक-दूसरे को धारण करते हैं , एक-दूसरे के अनुकूल रहते हैं। भक्त सोच में पड़ जाते हैं।
कहीं किसी को ऊंचा बताया जाता है , तो कहीं किसी को। विष्णु शिव से कहते हैं , ' मेरे दर्शन का जो फल है वही आपके दर्शन का है। आप मेरे हृदय में रहते हैं और मैं आपके हृदय में रहता हूं। ' कृष्ण , शिव से कहते हैं , ' मुझे आपसे बढ़कर कोई प्यारा नहीं है , आप मुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं। संसार में निरंतर तीन प्रकार के कार्य चलते रहते हैं- उत्पत्ति , पालन और संहार। इन्हीं तीन भिन्न कार्यों के लिए तीन नाम दे दिए गए हैं- ब्रह्मा , विष्णु व महेश। विष्णु सतमूर्ति हैं , ब्रह्मा रजोगुणीमूर्ति व शिव तामसमूर्ति हैं। एक-दूसरे से स्नेह के कारण एक-दूसरे का ध्यान करने से शिव गोरे हो गए और विष्णु का रंग काला हो गया।
शिव तामसी गुणों के अधिष्ठाता हैं। तामसी गुण यानी निंदा , क्रोध , मृत्यु , अंधकार आदि। तापसी भोजन यानी कड़वा , विषैला आदि। जिस अपवित्रता से , जिस दोष के कारण किसी वस्तु से घृणा की जाती है , शिव उसकी ओर बिना ध्यान दिए उसे धारण कर उसे भी शुभ बना देते हैं।समुद्र मंथन के समय निकले विष को धारण कर वे नीलकंठ कहलाए। मंथन से निकले अन्य रत्नों की ओर उन्होंने देखा तक नहीं। जिससे जीव की मृत्यु होती है , वे उसे भी जय कर लेते हैं। तभी तो उनका नाम मृत्य़ु़ंजय है।