भाग्य और पुरुषार्थ का रहस्य

भाग्य और पुरुषार्थ का रहस्य

डेस्क-भाग्य और पुरुषार्थ का रहस्य बहुत ही गूढ़ है । दोनों में कौन श्रेष्ठ है यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बारे में हर कोई जानने की इच्छा रखता है अथवा अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी न कभी इसके बारे में जरूर सोचता है या फिर सोचने को मजबूर हो जाता है ।

अपने-अपने समझ व बिचार से हर कोई कुछ न कुछ निष्कर्ष निकलता तो जरूर है । लेकिन एक निश्चित निर्णय पर नहीं पहुँच पाता । कभी लगता है भाग्य श्रेष्ठ है । कभी लगता है कि पुरुषार्थ श्रेष्ठ है । प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी धारणा होती है ।

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  • ऐसा कई बार होता है कि जब हम कोई कार्य करना चाहते हैं अथवा करते हैं तो कुछ न कुछ ऐसा घटित हो जाता है ।
  • जो हमारे कार्य की दिशा एवं दशा विल्कुल ही बदल देता है ।
  • इसलिए हम करना कुछ चाहते हैं और करने कुछ लगते हैं । बनना कुछ चाहते हैं और बन कुछ और जाते हैं ।
  • पहुंचना कहीं चाहते हैं और पहुँच कहीं और जाते हैं । पाना कुछ चाहते हैं और पा कुछ जाते हैं । यह विचारणीय है ।


रामू कई दिन से भाग्य और पुरुषार्थ को लेकर परेशान था । कई लोगों से सम्पर्क किया । लेकिन शंका का समाधान नहीं हो सका । अचानक उसे मौसी के गाँव के पास रहने वाले महात्मा श्रीरघुवर दास जी महाराज का ध्यान आया और तुरंत उनसे मिलने चल दिया । वहाँ पहुँचकर महात्मा जी को प्रणाम करके बताए गए आसन पर बैठ गया ।

भाग्य और पुरुषार्थ का क्या रहस्य है

आश्वासन पाकर रामू बोला बाबाजी भाग्य और पुरुषार्थ का क्या रहस्य है ? मेरे मन में एक द्वन्द सा चल रहा है । कभी मन में आता है कि भाग्य सब कुछ है और कभी मन में आता है कि नहीं कर्म ही श्रेष्ठ है । तमाम बातें मन में उठती रहती हैं । जिससे मन बिचलित हो जाता है । और मैं किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाता हूँ । कृपा करके मेरी इस भ्रान्ति को दूर कर दीजिए ।

महात्मा जी बोले बेटा तुम्हारा प्रश्न ही बिचलित करने वाला है । और जब तक तुम दोनों में से किसी एक को चुनना चाहोगे विचलित ही रहोगे । बड़े-बड़े महात्मा और शास्त्र भी इस बिषय में ऐसे बिचार प्रस्तुत करते हैं जिससे आपको कभी लगेगा कि भाग्य श्रेष्ठ है और कभी लगेगा कि कर्म श्रेष्ठ है । लेकिन मेरे बिचार से सार रूप में सच यही है कि दोनों ही श्रेष्ठ हैं ।रामू बोला महात्मन, लोग श्रीमद्भगवतगीता का संदर्भ देकर कहते हैं कर्म श्रेष्ठ है । इस पर आप क्या कहना चाहेंगे |

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