जानिए कब और कोनसी अंगूठी(रत्न) करें धारण ओर कौनसी नही क्या रखें सावधानी

जानिए कब और कोनसी अंगूठी(रत्न) करें धारण ओर कौनसी नही क्या रखें सावधानी

प्रिय मित्रों/पाठकों, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह खराब स्थिति में या कमजोर स्थिति में होता है तब ज्योतिषी उस ग्रह से संबंधित रत्न की अंगूठी पहनने के लिए कहते हैं। कोई अंगूठी पहनते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि आपको सदैव उसका शुभ फल मिले। आजकल लोग कई तरह के रत्न धारण कर लेते हैं। कोई आय बढ़ाने के लिए पुखराज तो गुस्सा कम करने के लिए मोती पहन लेता है। लेकिन इनके फायदों के साथ कई नुकसान भी होते हैं। अगर ये आपके अनुकूल नहीं हो तो ये आपके लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि वैदिक ज्योतिष शास्त्र में रत्न पहनने के पूर्व कई निर्देश दिए गए हैं. रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज्यादा पहने जाते हैं. सूर्य के लिए माणिक, चन्द्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनियां।

किन्तु रत्नों का आपके जीवन पर कैसा असर होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने उसे कैसे, किस दिन और किस समय में पहना है.??

जानिए रत्न (अंगूठी) पहनते समय क्या करें और क्या ना करें

किसी भी रत्न को दूध में ना डालें. अंगूठी को जल से एक बार धोकर पहनें. रत्न को दूध में डालकर रात भर ना रखें. कई रत्न दूध को सोख लेते हैं और दूध के कण रत्नों में समा कर रत्न को विकृत कर देते हैं. अपने मन की संतुष्टि के लिए अपने ईष्ट देवी की मूर्ति से स्पर्श करा कर रत्न धारण कर सकते हैं.

कब रत्न धारण ना करें -


रत्न धारण करने से पहले यह देख लें कि कहीं 4, 9 और 14 तिथि तो नहीं है. इन तिथियों (तारीखों) को रत्न धारण नहीं करना चाहिए. यह भी ध्यान रखें कि जिस दिन रत्न धारण करें उस दिन गोचर का चंद्रमा आपकी राशि से 4,8,12 में ना हो. अमावस्या, ग्रहण और संक्रान्ति के दिन भी रत्न धारण ना करें.

जानिए किस नक्षत्र में रत्न धारण करें


मोति, मूंगा जो समुद्र से उत्पन्न रत्न हैं, यदि रेवती, अश्विनी, रोहिणी, चित्रा, स्वाति और विशाखा नक्षत्र में धारण करें तो विशेष शुभ माना जाता है. सुहागिन महिलाएं रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य नक्षत्र में रत्न धारण ना करें. ये रेवती, अश्विनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा नक्षत्र में रत्न धारण करें, तो विशेष लाभ होता है।

जानिए कब (अंगूठी) रत्न को बदलें


ग्रहों के 9 रत्नों में से मूंगा और मोति को छोड़कर बाकी बहुमूल्य रत्न कभी बूढ़े नहीं होते हैं. मोती की चमक कम होने पर और मूंगा में खरोंच पड़ जाए तो उसे बदल देना चाहिए. माणिक्य, पन्ना, पुखराज, नीलम और हीरा सदा के लिए होते हैं. इनमें रगड़, खरोच का विशेष असर नहीं होता है. इन्हें बदलने की जरूरत नहीं होती है।

कछुए वाली अंगूठी

कछुए का संबंध माता लक्ष्मी से माना जाता है। क्योंकि माता लक्ष्मी और कछुए दोनों की उत्पत्ति जल से हुई है। कछुए की अंगूठी को पहनने से धन-संपदा की प्राप्ति होती है। लेकिन ज्योतिष के अनुसार, इस अंगूठी को पहनते समय इस बात का ध्यान रखें कि अगर आपकी राशि कर्क, वृश्चिक या मीन है तो इस अंगूठी को न पहनें। क्योंकि इस अंगूठी के प्रभाव से इन राशियों के लोगों में शीत विकार हो सकते हैं। क्योंकि कछुए और इन तीनों राशियों का संबंध जल से है। आजकल कछुआ अंगूठी का चलन जोरों पर है। मूलरूप से यह एक फेंगशुई वस्तु है। जापानी मान्यता के अनुसार इसे समृद्धि का प्रतीक माना गया है। वहीं भारत में इस अंगूठी को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
कछुए की अंगूठी को पहनते समय आपको इसके सिर को लेकर ध्यान देना है। कछुए के सिर वाला भाग पहनने वाले की तरफ होना चाहिए। इस से असीम कृपा मिलती है। इस तरह से अंगूठी पहनने से ये पैसे को अपनी तरफ आकर्षित करता है।

इसके अलावा ये भी जानना जरूरी है कि कछुए की अंगूठी को किस उंगली में पहनना चाहिए। हम आपको बता दें कि कछुए की अंगूठी को सीधे हाथ की मध्यमा या तर्जनी उंगली में पहनना चाहिए। इसके अलावा कछुए की अंगूठी हमेशा शुक्रवार को खरीदें।

शुक्रवार को अंगूठी खरीदने के बाद लक्ष्मी जी के सामने दूधिया पानी से धोकर अगरबत्ती जलाएं। इसके बाद अंगूठी को धारण करें। कछुए वाली अंगूठी को आप अपने हिसाब से डिजायन भी करा सकते हैं। यदि आप चाहें तो इसमें चांदी, सोने में जडे नग द्वारा भी बनवा सकते हैं।

1.कछुआ अंगूठी धातु से बनी एक वस्तु है। आमतौर पर ये चांदी से बनी होती है, लेकिन इन दिनों ये सोना व अन्य मेटल में भी उपलब्ध है। कई लोग इसमें कीमती रत्न भी जड़ाकर पहनते हैं। इस अंगूठी में कछुए की आकृति बनी होती है।

2.फेंगशुई में कछुआ एक बहुत ही शक्तिशाली जीव है। इसे गुड लक के चार स्तम्भों में से एक माना गया है। विद्वानों के अनुसार कछुआ पूरी सृष्टि जुड़ा हुआ है। इसका उपरी हिस्सा स्वर्ग से और नीचे का भाग धरती से संबंध रखता है।

3.फेंगशुई के अलावा भारतीय धार्मिक दृष्टिकोण से भी कछुआ बहुत महत्वपूर्ण है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। साथ ही समुद्र मंथन के दौरान कछुए के निकलने से इसे देवी लक्ष्मी का भी प्रिय कहा गया है।

4.धार्मिक मान्यताओं से जुड़े होने के कारण कछुआ अंगूठी पहनने से घर में बरक्कत होती है। ये बाहरी धन को अपनी ओर खीचता है। जिससे ये गरीब को भी राजा बना देता है।

5.चूंकि कछुए को स्वर्ग व धरती से जुड़ा माना जाता है इसलिए इसे पहनने से ये आस-पास के महौल को खुशनुमा बनाता है। ये परिवार के सदस्यों में त्याग और प्रेम की भावना बढ़ाता है, जिससे उनमें भतभेद नही होते हैं।

6.कछुआ अंगूठी पहनने से प्रेम संबंध भी बेहतर होते हैं। ये पति-पत्नी व प्रेमी-प्रेमिका को एक-दूसरे के प्रति आकर्षित करता है। ये आपस में प्यार बढ़ाता है। साथ ही ये व्यक्ति को अपने पार्टनर के लिए वफादार होने के लिए भी प्रेरित करता है।

7.कछुए को लंबे समय तक जीने वाला प्राणी माना जाता है। इसलिए इसकी अंगूठी को पहनते ही रोग दूर हो जाते है। शरीर में नई ऊर्जा उत्पन्न होती है। साइंस के मुताबिक कछुआ अंगूठी पहनने से शरीर के कुछ विशेष नस दबते हैं, जिससे शरीर स्वस्थ्य रहता है।

8.कछुआ अंगूठी की एक और खासियत है। ये व्यक्ति के मन से बुरे व नकारात्मक विचारों को दूर करता है। साथ ही ह्दय में सकारात्मक भावना का संचार करता है। ये जीवन में आगे बढ़ने और तरक्की के लिए प्रेरित करता है।

9.कछुआ अंगूठी को करियर के लिए भी अच्छा माना गया है। इसे धारण करते ही ये आपके सोए हुए भाग्य को जगाता है। आपके बिगड़े हुए कामों को ठीक करता है और लोगों के दिलों में आपके प्रति सम्मान पैदा करता है। इससे आपको अपने व्यवसाय और नौकरी में सफलता मिलती है।

10.कछुआ अंगूठी हमेशा शुक्रवार को ही खरीदनी और पहननी चाहिए। इसे पहनने से पहले अंगूठी को दूध में धोना चाहिए। फिर इसे भगवान को स्पर्श कराकर धूप-दीप दिखाना चाहिए। अंगूठी को सीधे हाथ की मध्यमा व तर्जनी उंगली में ही पहनना चाहिए।

हीरे की अंगूठी

शुक्र का माना जाता है। लेकिन इसे नवविवाहित जोड़े को नहीं पहनना चाहिए और शादी के एक साल बाद तक हीरा नहीं पहनना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार, हीरा संतान प्राप्ति में दिक्कत करता है।

गोमेद की अंगूठी--

गोमेद राहु का रत्न है, इसे पहनने से लाभ और हानि दोनों हो सकते हैं। इसलिए गोमेद पहनने से पहले उसके बारें में अच्छे से जान लेना जरूरी होता है।ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार गोमेद बहुत सस्‍ता रत्‍न है लेकिन यह आवश्‍यक नहीं है कि सभी को सही गोमेद जरूरत के समय पर ही प्राप्‍त हो जाए। इसलिए इसके दो उपरत्‍न हैं जिन्‍हें गोमेद के बदले धारण किया जा सकता है। पहला उपरत्‍न है तुरसा और दूसरा साफी। इसके अलावा गोमेद के रंग का अकीक भी गोमेद के स्‍थान पर पहना जा सकता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि गोमेद में किसी प्रकार का गड्डा दिखाई दे तो वह पुत्र व व्यापार को हानि पहुंचाता है। यदि गोमेद में चीरा या क्रास हो तो वह शरीर में रक्त सम्बन्धी विकार उत्पन्न करता है। अगर गोमेद में किसी प्रकार की कोई चमक न हो तो शरीर को लकवा भी हो सकता है।
राहु एक छाया ग्रह है। इसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है, यह जिस भाव, राशि, नक्षत्र या ग्रह के साथ से जुड़ जाता है, उसके अनुसार ही अपना फल देने लगता है। राहु जब नीच का या अशुभ होकर प्रतिकूल फल देने लगता है तो ज्योतिष के जानकार लोग गोमेद पहनने का सुझाव देते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनिवार के दिन अष्टधातु या चॉदी की अंगूठी में जड़वाकर षोड़षोपचार पूजन करने के बाद निम्न ''ऊॅ रां राहवे नमः" मन्त्र की कम से कम एक माला जाप करके मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।

कब करें मोती धारण--

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मोती को चंद्रमा की अशुभता दूर करने के लिए धारण किया जाता है। जन्म कुण्डली में यदि चंद्रमा के साथ पापी ग्रह राहु या केतु एक ही भाव में आकर बैठ जाएं तो यह चंद्र ग्रहण बनाता है। इस ग्रहण का जीवन पर अशुभ प्रभाव ना हो इसके लिए भी मोती धारण किया जाता है । इसके साथ लहसुनिया और गोमेद धारण ना करें। अगर आपने ग्रह-नक्षत्रों को अनुकूल बनाने के लिए । चंद्रमा के साथ जब भी राहु और केतु होते हैं तो ग्रहण दोष बनता है। इससे बुद्धि भ्रमित रहती है। लहसुनिया केतु का ग्रह है गोमेद राहु का रत्न है।


ज्योतिष अनुसार कुल 8 प्रकार के मोती पाए गए हैं जो इस प्रकार हैं – अभ्र मोती, शंख मोती, शुक्ति मोती, सर्प मोती, गज मोती, बांस मोती, शूकर मोती और मीन मोती।
यदि चंद्रमा कुंडली के छठे या आठवें भाव में बैठा है तो अशुभ प्रभाव कम करने के लिए मोती धारण करें। यदि चंद्रमा कुंडली में नीच का है तब भी मोती पहनना लाभकारी सिद्ध होता है।अमावस्या के दिन जन्मे लोग यह मोती अवश्य धारण करें। यदि कुंडली में राहु के साथ ग्रहण योग बन रहा है तो मोती जरूर पहनें।
कम से कम 8 से 15 रत्ती का मोती चांदी की अंगूठी में जड़वा कर धारण करें। इस अंगूठी को सोमवार के दिन धारण करना है लेकिन धारण करने से ठीक एक रात पहले अंगूठी को दूध, गंगाजल, शहद, चीनी के मिश्रण में डालकर रात भर रखें। अगले दिन पांच अगरबत्ती चंद्रदेव को समर्पित करते हुए प्रज्जवलित करें और इस अंगूठी को अपनी कनिष्ठिका अंगुली में धारण कर लें। इस तरह चंद्रमा की अंगूठी धारण करने के 4 दिन के अंदर-अंदर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देती है और औसतन 2 साल एक महीना और 27 दिन तक यह मोती अपना प्रभाव दिखाता है और इसके बाद निष्क्रिय हो जाता है।

नवग्रह अंगूठी

तांबा, पीतल, कांसा, चांदी, सोना, रांगा, लोहा इत्यादि को मिलाकर बनाया जाता है। इस अंगूठी को धारण करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जब आपने यह अंगूठी धारण कर रखी हो तो मांस-मंदिरा का सेवन न करें। ऐसा करने पर इस अंगूठी का प्रभाव नकारात्मक हो सकता है।


नीलम की अंगूठी---

नीलम की अंगूठी पहनते समय इस बात का ध्यान रखें कि इसे हमेशा सोने में या पंच धातु में जड़वाकर ही पहनना चाहिए। इस रत्न का प्रभाव सबसे अधिक तेज होता है। अगर यह आपके लिए सकारात्मक फल लाता है तो राजा बना सकता है और घर शुभ न हो तो सड़क पर ला सकता है। नीलम को शनि की दशा में ही पहनना चाहिए। इसकी अंगूठी बनवाने से पहले कुछ दिन इसे अपने सिरहाने रखकर सोएं या कपड़े में लपेटकर हर समय अपने पास रखें। सब सामान्य रहे तो इसकी अंगूठी बनवाएं। कुछ नकारात्मक घटे तो इसकी अंगूठी न पहनें।बताया जाता है कि नीलम पहनने से शनि का बुरा प्रभाव कम होता है और इससे आदमी रंक से राजा भी बन सकता है। लेकिन अगर नीलम रत्न आपके लिए अनुकूल नहीं है तो आपके हाथ-पैरों में जबर्दस्त दर्द करने लगेगा, आपकी विपरीत बुद्धि उत्पन्न करेगा।

पंच धातु की अंगूठी--

ग्रहों के दोष दूर करने का एक उपाय ये है कि अशुभ ग्रह से संबंधित धातु की अंगूठी धारण की जाए। सभी ग्रहों की अलग-अलग धातुएं हैं। अगर सभी ग्रहों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो पंचधातु की अंगूठी पहन सकते हैं। पंच धातु की अंगूठी अनामिका उंगली यानी रिंग फिंगर में पहन सकते हैं।

इस पंच धातु की अंगूठी से होते हैं ये फायदे

पंच धातु की अंगूठी धारण करने से हमारे आसपास की नकारात्मकता खत्म होती है। हमारी ऊर्जा बढ़ती है।

सकारात्मक विचार आने लगते हैं। किस्मत का साथ मिल सकता है।

अगर आपसे जलते हैं तो आपको पंचधातु की अंगूठी धारण करने से लाभ मिल सकता है।

काम में मन लगने लगता है और ग्रहों के दोष भी कम हो सकते हैं।

जो लोग ये अंगूठी नहीं पहनना चाहते हैं, वे पंच धातु का कड़ा भी पहन सकते हैं।

इन धातुओं से बनती है पंच धातु अंगूठी--

इस अंगूठी में पांच धातुएं मिलाई जाती हैं यानी ये मिश्रित धातु की अंगूठी होती है। इसे बनाने के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल और सीसा धातु का उपयोग किया जाता है।

जानिए माणिक्य के प्रभाव को


ज्योतिष के अनुसार मिथून राशि वालों को माणिक पहनना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर कई ज्योतिष कहते हैं कि अगर सूर्य की दशा में माणिक नहीं पहना जाए तो ये आपके लिए नुकसान दायक भी हो सकता है। वहीं कन्या राशि वालों के लिए तो इसे बहुत ही खतरनाक बताया है।

समझें पुखराज के प्रभाव को


आपने कई पैसे वालों को पुखराज धारण किए हुए देखा होगा। बताया जाता है कि पुखराज पहनने से पैसे की समस्या दूर होती है और विवाह भी जल्द हो जाता है। लेकिन जब पुखराज का दुष्प्रभाव है कि उससे आपका अहंकार बढ़ जाता है और इससे पेट भी गड़बड़ हो जाता है।

जानिए मूंगे के असर को


जब कोई मांगलिक होता है तो उसे मूंगा धारण करने के लिए कहा जाता है। लेकिन कई ज्योतिषी कहते है कि मूंगा किसी राशि से मेल नहीं करें या आपके अनुकूल नहीं हो तो ये आपको कई नुकसान पहुंचा सकता है। इससे ब्लड प्रेशर आदि की समस्या हो सकती है।

ऐसे करता है असर लहसुनिया


लहसुनिया यानि कैट्स आई केतु के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। लेकिन इसकी विकिरण की क्षमता बहुत अधिक होती है। बताया जाता है कि जो भी व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटे इस लहसुनिया नग से आठ हाथ की दूरी पर रहता होगा, वो भी इससे प्रभावित होगा। इससे उसको अंधापन या कुष्ठ रोग भी हो सकता है।

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