कुंभ मेले में पहला शाही स्नान 15 जनवरी 2019 को होगा

कुंभ मेले में पहला शाही स्नान 15 जनवरी 2019 को होगा

मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है जो जनवरी के महीने में 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है|

डेस्क-वर्ष 2019 में संगम नगरी इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ मेले के शाही स्‍नान की तारीखों का एलान शनिवार को मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की मौजूदगी में किया गया. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के मुताबिक इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ मेले में पहला शाही स्‍नान 15 जनवरी, 2019 को मकर संक्रांति के मौके पर होगा.

वहीं दूसरा शाही स्‍नान 4 फरवरी, 2019 को मौनी अमावस्‍या के मौके पर होगा. इसके बाद तीसरा और आखिरीशाही स्‍नान 10 फरवरी, 2019 को वसंत पंचमी के दिन किया जाएगा.

इलाहाबाद का कुंभ मेला –

ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है. प्रयाग का कुम्भ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्व रखता है. मेले की तिथि कीगणना करने के लिए सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की स्थिति की आवश्यकताहोती है. इलाहाबाद की इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवानश्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं. भगवान के यहाँ बारहस्वरूप विद्यमान हैं.

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं. चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति केनाम से जाना जाता है.

संक्रांति पर भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह-


महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. इसलिए संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन तिल-गुड़ के सेवन का साथ नए जनेऊ भी धारण करना चाहिए.

मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है जो जनवरी के महीने में 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है. पूरे भारत में इस त्योहार को किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे केवल ‘संक्रांति’ कहते हैं. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है जब इस पर्व को मनाया जाता है. यह पर्व जनवरी माह के तेरहवें, चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ( जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है ) पड़ता है. मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है. इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि यानि नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है. धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है. इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान मोक्ष की प्राप्त करवाता है. मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है. इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है. सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है. यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह माह के अंतराल पर होती है. भारत देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है. मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है. इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, लेकिन मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है.

तीर्थों का राजा कहा जाता है प्रयागराज

  • प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा जाता है इसलिए यहां स्थित छोटे बड़े सभी धर्म-स्थलों का अपना एक महत्व है, अपनी एक पहचान है.
  • संगम के ईशान कोण पर स्थित होने के कारण गंगोली शिवालय अपने आप में एक अद्भुत दार्शनिक स्थल है जहां पर भगवान भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं.
  • लोगों का कहना है कि गंगोली शिवालय पर आने से एक अद्भुत सुख की अनुभूति होती है और मन को बहुत शांति मिलती है.
  • यहां पर भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है.
  • कुंभ मेले के मद्देनजर इस गंगोली शिवालय का भी जीर्णोद्धार हो रहा है जिसमें पेंटिंग द्वारा सनातन धर्म एक बार फिर से दिखाने का प्रयास किया जा रहा है.
  • मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि सरकार की इस पहल से जो युवा वर्ग है उसको अपने सनातन धर्म और भगवान के साथ ही संस्कृति और संस्कार के बारे में करीब से जानकारी मिलेगी और उनकी धर्म के प्रति आस्था बढ़ेगी.
  • मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर की कलाकृतियों में भगवान भोलेनाथ से संबंधित कई महत्वपूर्ण मूर्तियों को उकेर कर उसके महत्व को दर्शाया गया है जिसके दर्शन से यहां आने वाले दर्शनार्थियों को भगवान भोलेनाथ के बारे में शिव पुराण के बारे में जानकारी मिलती है.
  • गंगा किनारे स्थित गंगोली शिवालय को अब और भी सुंदर बनाने के लिए पेंट माई सिटी के तहत रंगाई करके और सुंदर बनाया जा रहा है जिससे यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सनातन धर्म के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।

तीर्थराज प्रयाग में लगने वाले सबसे बड़े धार्मिक मेले कुंभ की चर्चा हर तरफ हो रही है. आस्था, धर्म, संस्कार, संस्कृति का संगम वाला यह सबसेबड़ा धार्मिक मेला संगम किनारे लग रहा है. जहां करोड़ों की संख्या में लोगदेश-विदेश और भारत के कोने-कोने से आएंगे. संगम के आसपास और उससे सटे हुए तमाम ऐसेमंदिर हैं जिनकी अपनी आस्था और अलग पहचान है. उन्हीं में से एक है गंगोली शिवालाजोकि प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र में बना हुआ है. यहां के पुजारी की मानें तो यह मंदिर 300 वर्ष पहलेआगरा के एक ब्राह्मण व्यापारी गंगा प्रसाद तिवारी के द्वारा बनवाया गया था. माना जाता है कि यहां आने वाले हर भक्त की समस्त मनोकामनाओं को भगवान भोलेनाथ पूरा करतेहैं.

भारत में कुंभ मेले को लेकर लोगों में काफी आस्था है. कुंभ को सबसे बड़े शांतिपूर्ण सम्मेलन के तौर पर जाना जाता है. हिंदू कैलेंडर के हिसाब से यह हर 12 साल में आयोजित होता है. कई अखाड़ों के साधु और लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं. कुंभ को धार्मिक वैभव और विविधता का प्रतीक भी माना जाता है. इसी महत्ता को देखते हुए यूनेस्को ने भारत के कुंभ मेले को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के तौर पर मान्यता दी है.

कुंभ मेला को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान करने की सिफारिश करते हुए विशेषज्ञ समिति ने कहा था कि यह पृथ्वी पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण जमावड़ा है. योग और नवरोज के बाद पिछले करीब दो वर्षो में इस प्रकार की मान्यता प्राप्त करने वाला कुंभ मेला तीसरा धरोहर है. कुंभ मेले का आयोजन देश में चार स्थान हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयाग), नासिक और उज्जैन में होता है.

हिंदू मान्यताओं के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त अमृत के कुंभ से इन चारों स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गई थीं. कुंभ की अवधि में इन पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से प्राणी मात्र के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. त्रियंबकेश्वर कुंभ को मानने वाले खुद को शैव बताते हैं जबकि नासिक कुंभ को मानने वाले वैष्णव कहलाते हैं. हिंदू कैलेंडर के हिसाब से जब माघ के महीने में सूर्य और बृहस्पति एक साथ सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब नासिक और त्रियंबकेश्वर में कुंभ का आयोजन होता है.


यूनेस्को के अधीनस्थ संगठन इंटरगर्वनमेंटलकमिटी फोर द सेफगार्डिंग ऑफ इन्टेंजिबल कल्चरल हेरीटेज ने दक्षिण कोरिया के जेजूमें हुए अपने 12वें सत्र में कुंभ मेले को ‘मावनता के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची’ में शामिल किया है.दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाने वाला कुंभ मेला सूची में बोत्सवाना, कोलंबिया, वेनेजुएला, मंगोलिया, मोरक्को, तुर्की और संयुक्त अरबअमीरात की चीजों के साथ शामिल किया गया है।
कुंभ को यूनेस्को ने दुनिया की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है और यह माना है कि यह धरती पर होने वाला सबसे बड़ा शांतिपूर्ण धार्मिक सम्मेलन है, जिसमें विभिन्न वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं. एक धार्मिक आयोजन के तौर पर कुंभ में जैसी सहिष्णुता और समायोजन नजर आता है, वह पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण है. उम्मीद करनी चाहिए कि कुंभ के प्रति दुनिया का यह विश्वास और आस्था इसी तरह बनी रहेगी|

कुंभ मेले में पहला शाही स्‍नान 15 जनवरी 2019 को होगा


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