जानिए जन्म कुंडली के पंचम भाव से शिक्षा और संतान के विषय मे कैसे करें जानकारी

जानिए जन्म कुंडली के पंचम भाव से शिक्षा और संतान के विषय मे कैसे करें जानकारी

ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में बैठ जाए तो उस भाव के गुणों की हानि होती है।

डेस्क- किसी भी जातक की जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर यह जाना जा सकता है कि बच्चा किस क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा। वह नौकरी करेगा या कोई बिजनेस। हाल ही में कई परीक्षाओं के परिणाम जारी हुए हैं। ऐसे में अभिभावकों और बच्चों के लिए करियर संबंधी यह ज्योतिषीय जानकारी बेहद मायने रखती है। जन्मकुंडली से बच्चे की शिक्षा और रोजगार के संबंध में सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है।

आइये सबसे पहले देखते हैं शिक्षा के बारे में क्या कहती है किसी भी जातक की जन्म कुंडली

जन्मकुंडली के पंचम भाव से शिक्षा का विचार किया जाता है। पंचम भाव एवं पंचमेश की स्थिति जितनी अच्छी होगी, बच्चे की शिक्षा भी अच्छी होगी। पंचम भाव में शुभ ग्रह हो, पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, पंचमेश शुभ भाव में बैठा हो, पंचम भाव का कारक ग्रह भी पंचम भाव या किसी भी केंद्र या त्रिकोण में हों तो बच्चे की शिक्षा भी उतनी ही उच्च दर्जे की होती है। इसके विपरीत यदि पंचम भाव में पाप ग्रह मौजूद हों, पंचम भाव पाप ग्रहों से घिरा हो, पंचमेश पाप प्रभाव में या छठे, आठवें, 12वें भाव में हो तो विद्या में बाधा आती है।

पंचम भाव से जानें अपने बच्चे का भविष्य

ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में बैठ जाए तो उस भाव के गुणों की हानि होती है। इसी के अनुसार यदि पंचम भाव का स्वामी व्यय भाव यानी 12वें भाव में बैठ जाए तो शिक्षा में कमी रहती है। हालांकि शिक्षा का विचार करते समय गुरु की स्थिति भी देख लेना चाहिए। यदि पंचम भाव में गुरु उच्च का होकर वक्री हो गया हो तो उसका उच्चत्व समाप्त हो जाता है और वह साधारण हो जाता है।

अब देखते हैं बिजनेस और सर्विस के योग

  • बच्चे ने जैसे-तैसे शिक्षा तो ग्रहण कर ली लेकिन वह व्यापार करेगा या नौकरी, यह दूसरी चिंता होती है। कुंडली में दशम भाव से व्यापार और नौकरी का विचार किया जाता है।
  • दशम भाव में जो ग्रह मौजूद हो उनके स्वभाव के अनुसार व्यापार करने से लाभ होता है।
  • यदि कोई ग्रह नहीं है तो दशमेश के अनुसार व्यापार का चयन किया जाना चाहिए।
  • उदाहरण के लिए यदि दशम भाव में मंगल है तो व्यक्ति साहसिक कार्य करेगा।
  • जैसे सेना, पुलिस में जाएगा या व्यापार करेगा तो भूमि, संपत्ति, कृषि कार्यों में लाभ प्राप्त करेगा।
  • यदि दशमेश बुध हो तो व्यक्ति व्यापार में लाभ उठाता है, लेकिन गोचर में बुध किस घर में बैठा हुआ है वह देखना भी जरूरी है।
  • बुध व्यापार का प्रतिनिधि ग्रह है। साझेदारी में व्यापार करना हो तो सप्तम भाव से तथा स्वतंत्र व्यापार करना हो तो दशम भाव से विचार किया जाता है। बुध, संबंधित भाव एवं भावेश की स्थिति अनुकूल होने पर व्यापार से लाभ होता है।
  • द्वितीय भाव तथा द्वितीयेश की स्थिति अच्छी होना और भी अच्छा होता है बुध का दशम भाव से संबंध व्यापार के क्षेत्र में सफलता दिलाता है।
  • नौकरी संबंधी जानकारी सूर्य और मंगल की स्थिति देखकर पता की जाती है। दशम भाव में उच्च का मंगल हो तो अच्छा जॉब मिलता है।
  • मंगल बली होकर किसी भी केंद्र या त्रिकोण में हो, अष्टम भाव को छोड़कर मंगल किसी भी भाव में उच्च का हो तो श्रेष्ठ जॉब मिलता है।
  • दशम भाव में सूर्य या गुरु उच्च राशि, स्वराशि या मित्र क्षेत्रीय हो तो जातक नौकरी में उच्च पद तक पहुंचता है।
  • जन्म कुंडली के पंचम भाव से सन्तान का विचार किया जाता हैं। ऐसा क्यों होता है? ये सब ग्रहों की वजह से होता है।
  • यहाँ पर हम ऐसी बातों को जानने और समझने का प्रयास करेंगें की आप भी जान सकें कि संतान होगी या नहीं।

जन्म कुंडली मे पंचम स्थान संतान का होता है। वही विद्या का भी माना जाता है। पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है। पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र में बाधा आती है।पंचम भाव का स्वामी सूर्य और कारक वही गुरु को बनाया गया क्यों की सूर्य रुपी प्रकाश द्वारा ही हम पंचम रुपी विद्या ग्रहण करते हैं और इसके संतान कारक होने का कारण भी यही है के संतान ही अपने माता पिता का नाम रौशन करती है , इसी पंचम से हर व्यक्ति की मानसिकता भी देखी जाती है तो उन कारकों की पोजीशन के अनुसार ही हम कोई निर्णय ले सकते हैं ।

सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है, परन्तु गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है।

पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में हो तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है। यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है। मंगल की यदि चतुर्थ, सप्तम, अष्टम दृष्टि पूर्ण पंचम भाव पर पड़ रही हो तो पुत्र अवश्य होता है।

पुत्र संततिकारक चँद्र, बुध, शुक्र यदि पंचम भाव पर दृष्टि डालें तो पुत्री संतति होती है। यदि पंचम स्थान पर बुध का संबंध हो और उस पर चँद्र या शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो वह संतान होशियार होती है। पंचम स्थान का स्वामी शुक्र यदि पुरुष की कुंडली में लग्न में या अष्टम में या तृतीय भाव पर हो एवं सभी ग्रहों में बलवान हो तो निश्चित तौर पर लड़की ही होती है। पंचम स्थान पर मकर का शनि कन्या संतति अधिक होता है। कुंभ का शनि भी लड़की देता है। पुत्र की चाह में पुत्रियाँ होती हैं। कुछ संतान नष्ट भी होती है।

पंचम स्थान पर स्वामी जितने ग्रहों के साथ होगा, उतनी संतान होगी। जितने पुरुष ग्रह होंगे, उतने पुत्र और जितने स्त्रीकारक ग्रहों के साथ होंगे, उतनी संतान लड़की होगी। सप्तमांश कुंडली के पंचम भाव पर या उसके साथ या उस भाव में कितने अंक लिखे हैं, उतनी संतान होगी। एक नियम यह भी है कि सप्तमांश कुंडली में चँद्र से पंचम स्थान में जो ग्रह हो एवं उसके साथ जीतने ग्रहों का संबंध हो, उतनी संतान होगी।

संतान सुख कैसे होगा, इसके लिए भी हमें पंचम स्थान का ही विश्लेषण करना होगा। पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना होगा। पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पाँचवें हो तो संतान संबंधित शुभ फल देता है। यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें हो तो संतान सुख नहीं होता। यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं या तो संतान नष्ट होती है या अलग हो जाती है। यदि पंचम स्थान का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें, लग्नस्थ, द्वितीय में हो तो संतान से संबंधित सुख शुभ फल देता है। द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह पंचम में हो तो संतान सुख उत्तम होकर लक्ष्मीपति बनता है।

पंचम स्थान का अधिपति छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है। पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है। पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। गुरु का संबंध पंचम स्थान पर संतान योग में बाधा देता है। सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती। इस प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो तो संतान नहीं होती।

पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो पुत्र संतान सुख नहीं होता। पंचम स्थान पर पड़ा राहु गर्भपात कराता है। यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान में बाधा डालता है यदि यह योग स्त्री की कुंडली में हो तो। यदि यह योग पुरुष कुंडली में हो तो संतान नहीं होती। नीच का राहु भी संतान नहीं देता। राहु, मंगल, पंचम हो तो एक संतान होती है। पंचम स्थान में पड़ा चँद्र, शनि, राहु भी संतान बाधक होता है। यदि योग लग्न में न हों तो चँद्र कुंडली देखना चाहिए। यदि चँद्र कुंडली में यह योग बने तो उपरोक्त फल जानें।

पंचम स्थान पर राहु या केतु हो तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म दोष होने से भी संतान नहीं होती। यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है। पंचम स्थान पर नीच का सूर्य संतान पक्ष में चिंता देता है। पंचम स्थान पर नीच का सूर्य ऑपरेशन द्वारा संतान देता है। पंचम स्थान पर सूर्य मंगल की युति हो और शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान की शस्त्र से मृत्यु होती है।

इन सरल और साधारण उपायों से करें ग्रहों को खुश

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