जहां सीता का जन्म होता, वहां बिना बुलाए जाते हैं श्री राम : रमेश भाई

जहां सीता का जन्म होता, वहां बिना बुलाए जाते हैं श्री राम : रमेश भाई


गोण्डा 09 जनवरी। अखिल भारतीय श्री राम नाम जागरण मंच के तत्वाधान में प्रदर्शनी मैदान में चल रही 11 दिवसीय राम कथा मंगलवार को भी जारी रही। अंतरराष्ट्रीय कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने आज भगवान राम के बालपन, यज्ञ रक्षा और अहिल्या उद्धार की कथा सुनाई।


कथा वाचक ने कहा कि कलियुग में दान की महत्ता बताते हुए कहा कि सत्य, तप, दया और दान धर्म के चार पांव हैं किंतु कलियुग में पहले तीन पांव टूट चुके हैं। अब केवल दान बचा है। इसी से मानव अपना कल्याण कर सकता है। उन्होंने कहा कि तीर्थ स्नान करने से तन, भगवान भजन करने से मन और दान करने से धन की शुद्धि होती है। उन्होंने अपनी कुल आय का दशांश अनिवार्य रूप से दान करने का सुझाव दिया। रमेश भाई ने कहा कि अपरिचित को किए गए तथा गुप्त दान का अपेक्षाकृत ज्यादा फल मिलता है।


छठें दिन की कथा की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि ऋषियों ने चारों भाइयों के गुणों के अनुरूप उनका नामकरण किया। उन्होंने कहा कि राम केवल दशरथ पुत्र नहीं थे। जो भी चीज हमें मानसिक व शारीरिक विश्राम दे, वही राम है। सभी जीव, जंतु, वनस्पति, प्रकृति आदि राम के प्रतीक हैं। पूरे विश्व का भरण-पोषण करने वाले का नाम भरत रखा गया। त्याग और प्रेम से ही यह सम्भव है। इसलिए भरत इसके प्रतीक हैं। जिसके आचरण का अनुकरण करने मात्र से दुश्मन न रह जाएं, उसका नाम शत्रुघ्न रखा गया। शत्रुघ्न मौन के प्रतीक हैं। पूरी राम कथा में उनके संवाद न के बराबर मिलते हैं। इसीलिए हमें उनका अनुकरण करते हुए सत्य, अल्प और मधुर वाणी को अपने मुंह का गहन बनाना चाहिए।


व्यास पीठ ने राम नाम जपने की कुछ शर्तें भी बताईं। उन्होंने कहा कि लक्ष्मण रूप में किसी न किसी को सहारा अवश्य दो। दुश्मनों की संख्या खत्म करने के लिए वाणी पर संयम रखो। साथ ही आज के युग में किसी का पोषण न कर सकें तो शोषण तो बिल्कुल भी न करें। उन्होंने कहा कि जन्म तो ईश्वर देता है किंतु जीवन गुरु देता है। इसलिए अपना जीवन सुधारने के लिए हमें गुरु की शरण में जाना चाहिए। गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के सानिध्य में रहकर भगवान राम ने अपने जीवन को सार्थक बनाया है। उन्होंने कहा कि भगवान राम के तीन रूप हैं। एक बालक स्वरूप में राम, दूसरे जानकी और लक्ष्मण के राम तथा तीसरा रूप सिंहासनारूढ़ राम का है। भगवान राम ने किशोरावस्था में सुंदर वन में रहकर विश्वामित्र के यज्ञ की पूर्णाहुति कराई। साथ ही यज्ञ विध्वंश करने वाले राक्षसों ताड़का, सुबाहु आदि का वध किया। इसी प्रकार हमें भी समाज के अच्छे कार्यों में गतिरोध करने वालों का प्रतिवाद अवश्य करना चाहिए।


कथावाचक ने कहा कि इस बीच राजा जनक ने गुरु विश्वामित्र को अपनी पुत्री सीता के स्वयम्बर में आने के लिए निमन्त्रण भेजा। यद्यपि यह निमंत्रण राम के लिए नहीं था, किन्तु वह भी गुरु जी के साथ जनकपुर गए। इसका सीधा सा अर्थ है कि जहां सीता का जन्म होता है, वहां प्रभु श्री राम बिना बुलाए पहुँच जाते हैं। उनका आशीर्वाद पाने के पाने के लिए हमें सीता पैदा करना पड़ेगा। इससे पूर्व उन्होंने रास्ते में गौतम ऋषि की पत्थर बनी पत्नी अहिल्या के सिर पर पैर रखकर उद्धार भी किया। इसके प्रायश्चित के लिए उन्होंने गुरु विश्वामित्र के सुझाव पर गंगा स्नान और पुरोहितों को दान किया। उन्होंने आज के युग में भी किसी प्रकार की जाने-अनजाने हुई गलती की प्रायश्चित के लिए कथा श्रवण, तीर्थ स्नान और पुरोहित को दान देना बताया।
राम कथा के आयोजक निर्मल शास्त्री ने बताया कि प्रदर्शनी मैदान में रोजाना शाम चार बजे से रात्रि आठ बजे तक कथा चलती है। इसके बाद भंडारा आयोजित किया जाता है। पूर्वान्ह आठ बजे से पर्यावरण शुद्धि यज्ञ होता है। इस मौके पर संत राम द्विवेदी, सभाजीत तिवारी, गणेश कुमार श्रीवास्तव, डॉ दीना नाथ तिवारी, शिवकांत मिश्र विद्रोही आदि उपस्थित रहे।

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