विनय और प्रेम किसी को भी प्रसन्न करने की दो चाभियाँ : रमेश भाई शुक्ल

विनय और प्रेम किसी को भी प्रसन्न करने की दो चाभियाँ : रमेश भाई शुक्ल


गोण्डा 10 जनवरी। अखिल भारतीय श्री राम नाम जागरण मंच के तत्वाधान में प्रदर्शनी मैदान पर चल रही 11 दिवसीय राम कथा के सातवें दिन अंतरराष्ट्रीय कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने राम विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भगवान राम ने सीता की तपस्या, गुरु के आशीर्वाद, जनकपुर वासियों की शुभकामनाओं और अपने पुरुषार्थ से भगवान शिव का धनुष तोड़ने में सफलता प्राप्त की थी, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए यह सभी कारक जरूरी होते हैं। जब तक माता, पिता और गुरु का आशीर्वाद, अपनी मेहनत, इष्ट-मित्रों और सगे-संबंधियों की शुभकामनाएं नहीं होंगी, तब तक सफलता नहीं मिलने वाली।


उन्होंने कहा कि जनकपुर में स्वयम्बर के दौरान गुरु विश्वामित्र के आदेश के बाद भगवान राम धनुष तोड़ने के लिए उठे थे किंतु गुरु देव से कहा था कि धनुष तोड़ने के लिए जा तो रहा हूँ किन्तु यह मुझसे टूटेगा अथवा नहीं टूटेगा, यह आप ही जानो। वह बिना किसी हर्ष अथवा विषाद के धनुष की तरफ बढ़े। व्यास पीठ ने कहा कि जब हम अपने से किसी बड़े पर अपने को निर्भर कर देते हैं तो हर्ष-विषाद से मुक्त हो जाते हैं क्योंकि उसके परिणाम के उत्तरदायी तब हम नहीं, वह होता है। यदि जीवन में सुखी रहना है कि किसी पर निर्भर हो जाओ। उन्होंने बताया कि भगवान शिव का धनुष पिनाक कोई साधारण धनुष नहीं था। वह साढ़े 22 लाख मन (14 किग्रा का एक मन होता है) वजनी था तथा उसे खींचने के लिए बैलगाड़ी में 700 बैलों को जोतना पड़ता था।
व्यास पीठ ने एक और महत्वपूर्ण बात बताई। उन्होंने कहा कि पूजा, सेवा और भोजन के तत्काल बाद मिला आशीर्वाद ज्यादा फलदायी होता है। गुरु विश्वामित्र ने भगवान राम को जनकपुर में पूजा करने के तुरंत बाद आशीर्वाद दिया था। यद्यपि प्रणाम उन्होंने पूजा से पहले किया था। उन्होंने कहा कि किसी भी महिला (मां) का आशीर्वाद पाने के लिए हमें उनके पिता, पुत्र और बच्चों का गुणगान करना चाहिए। सीता जी बचपन से ही पुष्प वाटिका में आकर स्नान करती थीं और पुष्प ले जाकर गौरी पूजन करती थीं। इसी से प्रसन्न होकर पार्वती ने उन्हें 'मन जाहि राचो मिलहिं सो वर, सहज सुंदर सांवरो' का वरदान दिया था। उन्होंने कहा कि वाटिका संत सभा में आने, सरोवर में स्नान करना किसी संत के हृदय में जगह बनाने और गौरी की पूजा श्रद्धा का प्रतीक है। हर युवती सहज सुंदर, करुनानिधान, सुजान (समझदार) और उसके भावनाओं को समझने वाला आदि पांच गुणों से युक्त पति चाहती है, किंतु पार्वती की उपासना नहीं करना चाहती। उन्होंने किशोरियों को प्रेम पूर्वक माता पार्वती व तुलसी की पूजा करने की सलाह दी, क्योकि विनय और प्रेम किसी की भी प्रसन्न करने की दो चाभियाँ हैं। व्यास पीठ ने कहा कि पुष्प वाटिका में आते समय सीता के कंगन, किंकिन और नूपुर की आवाज सुनकर भगवान राम मोहित हो गए थे। यहां कंगन कर्म, किंकिन संयम और नूपुर आचरण का प्रतीक है। यदि हमें प्रभु राम को प्रसन्न करना है तो ये तीनों ठीक रखना होगा।


कथावाचक ने कहा कि जनकपुर में सभी निर्गुण ब्रम्ह के उपासक थे। भगवान राम ने जब गुरु विश्वामित्र से नगर भ्रमण की अनुमति मांगी।तो उन्होंने कहा कि तुम्हें क्या देखना है। तुम दोनों भाई जाकर जनकपुर वासियों को अपने को दिखा आओ। नगर भ्रमण के दौरान पुरुष, महिलाओं और बच्चों ने उनका दर्शन किया। चूंकि पुरुष अहंकार का प्रतीक है। इसलिए वह केवल दर्शन पाया। महिलाएं स्नेह और भक्ति की प्रतीक हैं। इसलिए उन्हें दर्शन और परिचय दोनों मिला। बच्चे निश्छल मन के प्रतीक हैं। इसलिए वे राम की अंगुली पकड़कर घूमे और अपने घरों में पकड़ ले गए। उन्होंने कहा कि जगतपिता की अंगुली पकड़नी है तो एक बच्चे का निश्छल मन रखना होगा।
इस मौके पर शिव सेना नेता महेश तिवारी, ईश्वर शरण मिश्र, अवधेश शुक्ल, संत कुमार त्रिपाठी, राजू ओझा, संदीप मेहरोत्रा, सभाजीत तिवारी, प्रभा शंकर द्विवेदी, विजय कुमार मिश्र समेत हजारों नर-नारी उपस्थित रहे। आयोजक निर्मल शास्त्री ने श्रद्धालुओं से रोजाना आठ बजे से होने वाले पर्यावरण सुरक्षा यज्ञ में भी शामिल होने की अपील की है।

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