जाने और समझें पीलिया रोग के ज्योतिषीय कारण

जाने और समझें पीलिया रोग के ज्योतिषीय कारण

प्राचीन काल से ही ज्योतिष से रोग जानने की विद्या हमारे देश में प्रचलित है। जम्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति पूरे जीवन में होने वाले रोगों की जानकारी देती हैं। जीवन में होने वाले रोगों को जानने के लिए ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई सूत्र दिए हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से हैं :

कैसे करें जन्म कुंडली (ज्योतिष) में रोग विचार :--

षष्ठ स्थान
ग्रहों की स्थिति
राशियां
कारक ग्रह

सामान्यतः रोगों के कारण :

यदि लग्न एवं लग्नेश की स्थिति अशुभ हो।
यदि चंद्रमा का क्षीर्ण अथवा निर्बल हो या चन्द्रलग्न में पाप ग्रह बैठे हों ।
यदि लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो।
यदि पाप ग्रह का शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान हों।

हम सभी जानते हैं कि यकृत (लिवर) शरीर के अत्यंत महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। यकृत की कोशिकाएँ आकार में सूक्ष्मदर्शी से ही देखी जा सकने योग्य हैं, परंतु ये बहुत कार्य करती हैं। एक कोशिका इतना कार्य करती हैं कि इसकी तुलना एक कारखाने से (क्योंकि यह अनेक रासायनिक यौगिक बनाती है), एक गोदाम से (ग्लाइकोजन, लोहा और बिटैमिन को संचित रखने के कारण), अपशिष्ट निपटान संयंत्र से (पिपततवर्णक, यूरिया और विविध विषहरण उत्पादों को उत्सर्जित करने के कारण) और शक्ति संयंत्र से (क्योंकि इसके अपचय से पर्याप्त ऊष्मा उत्पन्न होती है) की जा सकती है। यकृत समस्त प्राणियों में पाचन संबंधी समस्त क्रियाएं, शरीर में रक्त की आपूर्ति के साथ शारीरिक पोषण का मुख्य आधार है। यकृत ही रक्चचाप से लेकर अन्य सभी क्रियाओं के जिए जिम्मेदार होता है। यकृत के क्षतिग्रस्त हो जाने पर जीवन असंभव हो जाता है।

सही समय पर पीलिया यानी (Jaundice) की रोकथाम न की जाए तो यह रोग जानलेवा हो सकता है। इस बीमारी में आंखों में पीलापन दिखाई देने लगता है, शरीर में भी पीलापन आ जाता है।

पीलिया यकॄत का बहुधा होने वाला रोग है। इस रोग में चमडी और श्लेष्मिक झिल्लियों के रंग में पीलापन आने लगता है। ऐसा खून में पित्त रस (बिले) की अधिकता की वजह से होता है। रक्त में बिलरुबिन की मात्रा बढ जाती है। हमारा लिवर पित्त रस का निर्माण करता है जो भोजन को पचाने और शरीर के पोषण के लिये जरूरी है। यह भोजन को आंतों में सडने से रोकता है। इसका काम पाचन प्रणाली को ठीक रखना है। अगर पित्त ठीक ढंग से आंतों में नहीं पहुंचेगा तो पेट में गैस की शिकायत बढ जाती है और शरीर में जहरीले तत्व एकत्र होने लगते हैं।

पीलिया तीन रूपों में प्रकट हो सकता है (पीलिया के लक्षण)

  • हेमोलाइटिक जांडिस में खून के लाल कण नष्ट होकर कम होने लगते हैं।
  • परिणाम स्वरूप रक्त में बिलरूबिन की मात्रा बढती है और रक्ताल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • इस प्रकार के पीलिया में बिलरूबिन के ड्यूडेनम को पहुंचने में बाधा पडने लगती है।
  • इसे ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस कहते हैं।
  • तीसरे प्रकार का पीलिया लिवर के सेल्स को जहरीली दवा(टॉक्सिक ड्रग्स) या विषाणु संक्रमण (वायरल इन्फेक्शन ) से नुकसान पहुंचने की वजह से होता है।
  • त्वचा का और आंखों का पीला होना तीनों प्रकार के पीलिया का मुख्य लक्षण है।

पीलिया के अन्य लक्षण

अत्यंत कमजोरी
सिरदर्द
ज्वर होना
मिचली होना
भूख न लगना
अतिशय थकावट
सख्त कब्ज होना
आंख जीभ त्वचा और मूत्र का रंग पीला होना।

अवरोधी पीलिया अधिकतर बूढे लोगों को होता है और इस प्रकार के रोग में त्वचा पर जोरदार खुजली मेहसूस होती है।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुछ ग्रहों की युति से भी विभिन्‍न रोग होने की संभावना रहती है। रोग, खानपान और असंयमित दिनचर्या के कारण तो होते ही हैं लेकिन इसके अलावा आपकी कुंडली के ग्रहों की युति भी आपको रोगी बना सकती है। पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं की इस तरह के रोग प्रायः युति कारक ग्रहों की दशार्न्तदशा के साथ-साथ गोचर में भी अशुभ हों तो ग्रह युति का फल मिलता है। इन योगों को आप अपनी कुंडली में देखकर विचार सकते हैं। ऐसा करके आप होने वाले रोगों का पूर्वाभास करके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सजग रह सकते हैं या दूजों की कुण्‍डली में देखकर उन्‍हें सजग कर सकते हैं।

यकृत के क्षतिग्रस्त हो जाने पर जीवन असंभव हो जाता है। यकृत से संबंधित एक अत्यंत घातक बीमारी है ‘‘पीलिया’’। रक्त में पित्तारूण या बिलीरूबिन के आधिक्य से यह रोग होता है, जो नेत्र श्लेष्मला और त्वचा के पीलेपन से प्रकट होता है। ज्योतिष में कुंडली के द्वादश भावों में यकृत का संबंध पंचम भाव से होता है। पंचम भाव का कारण ग्रह गुरु है। गुरु का अपना रंग पीला ही होता है और पीलिया रोग में भी जब रक्त में पित्तारूण की अधिकता हो तो शरीर के सभी अंग पीले हो जाते हैं। ऐसा पित्त के बिगडने से भी होता है। गुरु ग्रह भी पित्त तत्व से संबंध रखता है। पीलिया रोग में बिलीरूबिन पदार्थ रक्त की सहायता से सारे शरीर में फैलता है। रक्त के लाल कण मंगल के कारण होते हैं और तरल चंद्र से। इसलिए मंगल और चंद्र भी इस रोग के फैलने में अपना महत्व रखते है। इस प्रकार पंचम भाव, पंचमेंश, गुरु, मंगल और चंद्र जब अशुभ प्रभावों में जन्मकुंडली एवं गोचर में होते हैं, तो व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है। जब तक गोचर और दशांतर दशा अशुभ प्रभाव में रहेंगे, तब तक जातक को पीलिया रोग रहेगा उसके उपरांत नहीं। अतः पीलिया रोग होने की स्थिति में पंचम भाव, पंचमेष, गुरू, मंगल तथा चंद्रमा की दषा-अंतरदषा का ज्ञान कर इनकी शांति कराना चाहिए।

पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि गुरु के कारण लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि होने की संभावना होती हें।


जानिए लग्न अनुसार पीलिया (joindis) रोग का प्रभाव/परिणाम

पीलिया रोग का संबंध यकृत से है। ज्योतिष में कुंडली के द्वादश भावों में यकृत का संबंध पंचम भाव से होता है। पंचम भाव का कारक ग्रह गुरु है। गुरु का अपना रंग भी पीला ही होता है और पीलिया रोग में भी जब रक्त में बिलीरूबिन जाता है तो शरीर के अंगों को पीला कर देता है। ऐसा पित्त के बिगड़ने से भी होता है। गुरु ग्रह भी पित्त तत्व से संबंध रखता है।

पीलिया रोग में बिलीरूबिन पदार्थ रक्त की सहायता से सारे शरीर में फैलता है। रक्त के लाल कण मंगल के कारण होते हैं और तरल चंद्र से इसलिए मंगल और चंद्र भी इस रोग के फैलने में अपना स्थान रखते हैं।

इस प्रकार पंचम भाव, पंचमेश, गुरु, मंगल और चंद्र जब अशुभ प्रभावों में जन्मकुंडली एवं गोचर में होते हैं तो व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है। जब तक गोचर और दशा अंतर्दशा अशुभ प्रभाव में रहते हैं तब तक जातक को रोग रहता है उसके उपरांत वह ठीक हो जाता है।

समझें विभिन्न लग्नों में पीलिया रोग को

मेष लग्न: बुध षष्ठ भाव में, सूर्य सप्तम भाव में राहु या केतु से युक्त या दृष्ट, मंगल गुरु से युक्त या दृष्ट कुंडली में कहीं भी हो तो जातक को पीलिया रोग जीवन में जरूर होता है।

वृषभ लग्न: गुरु लग्न, पंचम या षष्ठ भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट, लग्नेश अस्त हो और मंगल से दृष्ट हो तो जातक को पीलिया या पीलिया जैसा खून की कमी का रोग होता है।

मिथुन लग्न : लग्नेश बुध अस्त होकर पंचम षष्ठ भाव में हो गुरु लग्न में मंगल से युत या दृष्ट हो, चंद्र राहु या केतु से दृष्ट होकर कहीं भी हो तो जातक को पीलिया संबंधी रोग होता है।

कर्क लग्न : लग्नेश चंद्र बुध से युक्त, राहु-केतु से दृष्ट होकर लग्न, पंचम या षष्ठ भाव में हो और गुरु सूर्य से अस्त होकर किसी भी भाव में हो तो जातक को पीलिया जैसा रोग होता है।

सिंह लग्न: सूर्य राहु केतु से दृष्ट दशम भाव में और गुरु राहु केतु से युक्त होकर षष्ठ भाव में हो और मंगल से दृष्ट हो तो जातक को पीलिया होता है।

कन्या लग्न: लग्नेश अस्त होकर षष्ठ भाव में हो, गुरु एवं लग्न दोनो पीलिया के घरेलू उपचार-

  • मूली के पत्तों का रस चीनी में मिलाकर प्रातःकाल खाली पेट पीएं।
  • मेंहदी की पत्तियां मिट्टी के बर्तन में पानी डालकर चैबीस घंटे तक भिगोकर रखें और प्रातःकाल खाली पेट पी लें।
  • इससे पीलिया रोग दूर होता है।
    संतरे का रस, कच्चे नारियल का रस, फटे दूध का पानी, दही की छाछ में नमक और काली मिर्च डालकर पीना हितकारी है।
  • लिव-52 की दो-दो गोली दिन में तीन बार लेने से आराम होता है। पुदीने का रस निकाल कर चीनी मिलाकर, सुबह दस दिन तक पीने से पीलिया में लाभ होता है।
  • कच्चे पपीते के रस की बूंदों को बताशे में डालकर दो तीन सप्ताह खाने से पीलिया रोग से राहत मिलती है।
  • लकड़ी के कोल्हू से या घर के जूसर से निकला हुआ गन्ने का रस पीने से पीलिया दूर होता है।
  • बड़ी हरड़ और चीनी दोनों को बराबर मात्रा में ले कर पीस लें। प्रतिदिन सुबह-शाम पानी के साथ एक चम्मच लेने से आराम होता है।
  • आक के पत्ते और चीनी बराबर मात्रा में पीस, छोटी-छोटी गोलियां बनाकर, दिन में दो-दो गोली दिन में तीन बार पानी के साथ लेने से आराम होता है। मंगल से दृष्ट हो, चंद्र भी राहु-केतु
  • एवं मंगल गुरु के किसी भी तरह के प्रभाव में हो तो जातक को खून की कमी या पीलिया जैसा रोग होता है।

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