पत्रकारों की सुरक्षा पर एक बार फिर लगा सवालिया निशान

पत्रकारों की सुरक्षा पर एक बार फिर लगा सवालिया निशान

जिलाधिकारी से शिकायत

गोण्डा। एक साप्ताहिक समाचार पत्र में छपी खबर पर वर्षो से कब्जा जमाये बैठा वकील इस कदर भडक गया कि उसने सूचना विभाग के सामने ही पत्रकार से हाथापाई शुरू कर दी इतना ही नहीं उसने पत्रकार का कालर पकड उसे एक थप्पड भी जड दिया, अपने साथ हुयी अभद्रता से आक्रोशित पत्रकार ने अपने अन्य साथियों के साथ जिलाधिकारी से मामले की लिखित शिकायत की, शिकायत पर जिलाधिकारी ने कार्यवाही का आष्वासन तो दिया परन्तु घटना पर कोई बयान देने से स्पष्ट इन्कार कर दिया, जिलाधिकारी के इस रवैये ने पत्रकारों की सुरक्षा पर एक बार फिर से सवालिया निशान लगा दिया।

घटना शुक्रवार दोपहर की है जब जनपद के सूचना विभाग में कुछ पत्रकार आपस में चर्चा कर रहे थे इसी बीच विभागीय परिसर में ही हो हल्ला मचना आरम्भ हो गया, देखा गया तो सूचना विभाग परिसर मे ही वर्षो से अवैध कब्जा जमाये बैठा एक वकील देवराज सिंह एक पत्रकार का कालर पकडे धकेल रहा था, अन्य पत्रकारों द्वारा बीच बचाव किये जाने पर किसी तरह बुरी तरह भडके वकील ने पत्रकार का कालर छोडा।

मामले पर जब पत्रकार से जानकारी चाही गयी तो पता चला कि वकील के अवैध कब्जे पर उसने अपने साप्ताहिक समाचार पत्र में एक समाचार का प्रकाशन किया था उसी से बौखलाये वकील देवराज सिंह ने उस पर हमला किया है। हिन्दी साप्ताहिक प्रकाश प्रभाव के जिला संवाददाता अतुल कुमार यादव ने जानकारी देते हुए बताया उसके समाचार पत्र मे ंविगत 28 मार्च को इस प्रकारण पर एक खबर प्रकाशित हुयी थी जिससे आक्रोशित वकील ने उस पर हमला किया और उसे एक थप्पड मारा भी है।

पत्रकार पर हुए हमले से आक्रोशित अन्य पत्रकारो ने प्रकरण को गम्भीरता से लेते हुए जिलाधिकारी डा0 नितिन बंसल से मुलाकात कर उन्हें मामले की लिखित में शिकायत सौंपी जिस पर उन्होेनें तत्काल कार्यवाही करने की बात तो कही परन्तु जब उनसे इस बावत अपना बयान देने को कहा गया तो उन्होेनें स्पष्ट इन्कार करते हुए कहा कि इस मामले पर जिला सूचना अधिकारी ही बयान देगें।

हैरानी इस बात की होती है कि जब सूचना विभाग में कोई भी जिम्मेदार अधिकारी तैनात ही नहीं है तो फिर बयान कौन देगा और फिर जब मामला जनपद के मुखिया के सामने पहुंच गया है तो फिर उनके किसी अधीनस्थ का बयान लेने का क्या औचित्य बनता है। जिलाधिकारी का बयान देने से इन्कार करना इस बात को साबित करता है कि शासन द्वारा पत्रकारों की सुरक्षा के दावे करना मात्र हवा हवाई ही है न तो शासन इस महत्वपूर्ण समस्या पर गम्भीर है और न ही प्रशासन, जिलाधिकारी जैसे जनपदीय आलाकमान के इस रवैये ने पत्रकारों की सुरक्षा पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिया है।

फिलहाल पत्रकारों ने इस मामले को गम्भीरता से लेते हुए प्रकरण पर लम्बी लडाई लडने का निर्णय लिया है।

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