Jyotish में समझें क्या और कितनी तरह के होते हैं पंचक
समझें क्या और कितनी तरह के होते हैं "पंचक".
आज 25 मई 2019 को रात 11 बज कर 43 मिनट पर पंचक शुरू होंगे जो 30 मई को रात 11 बज कर 4 मिनट पर समाप्त होंगे।
हिंदू धर्म में हर शुभ काम अच्छा मुहूर्त देखकर किया जाता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, अशुभ समय में किए काम मनचाहा परिणाम नहीं देते यही कारण है कि पंचक में बहुत से शुभ काम करने की मनाही है। पंचक के अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं।
नक्षत्रों के मेल से बनने वाले विशेष योग को पञ्चक कहा जाता है। जब चन्द्रमा, कुंभ और मीन राशि पर रहता है, तब उस समय को पंचक कहते हैं।
पंचक की स्वामी राशि कुंभ और मीन है। चंद्रमा के इन दोनों राशियों से गुजरने के समय को पंचक का समय कहा जाता हैं।
वैदिक ज्योतिषी में पंचक को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
ज्योतिष में पंचक को शुभ नक्षत्र नहीं माना जाता है। इसे अशुभ और हानिकारक नक्षत्रों का योग माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार पांच नक्षत्रों के संयोग को पंचक कहा जाता है। इन पांच नक्षत्रों में घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती हैं। पंचक का स्वामी ग्रह कुंभ और राशि मीन होती है। प्रत्येक माह आने वाले पंचक में इन पांच नक्षत्रों की भी गणना की जाती है।
पंचक दोष क्या होता है--
अपने जीवन में कभी न कभी हम सभी पंचक के बारे में जरूर सुनते हैं। भारतीय ज्योतिष में इसे अशुभ समय माना गया है। पंचक के दौरान कुछ विशेष कार्य करने की मनाही है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है, तब उस समय को पंचक कहते हैं।
समझें पंचक में नक्षत्रों का प्रभाव--
- धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
- शतभिषा नक्षत्र में कलह होने के योग बनते हैं।
- पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र होता है।
- उतरा भाद्रपद में धन के रूप में दण्ड होता है।
- रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना होती है।
पंचक के प्रकार --
रोग पंचक--
रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है. इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं. इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए. हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है.
राज पंचक--
सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है. इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है. राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है.
अग्नि पंचक--
मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले, अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में अग्नि का भय होता है। इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है। इनसे नुकसान हो सकता है.
मृत्यु पंचक---
शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। नाम से ही पता चलता है कि अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के बराबर परेशानी देने वाला होता है। इन पांच दिनों में किसी भी तरह के जोखिम भरे काम नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से विवाद, चोट, दुर्घटना आदि होने का खतरा रहता है.
चोर पंचक--
शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है।
विद्वानों के अनुसार इस पंचक में यात्रा करने की मनाही है। इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के सौदे भी नहीं करने चाहिए। मना किए गए कार्य करने से धन हानि हो सकती है।
अन्य पंचक---
इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।
पंचक में चारपाई बनवाना अच्छा नहीं माना जाता. विद्वानों के अनुसार ऐसा करने से कोई संकट आ सकता है।
पंचक के दौरान जिस समय धनिष्ठा नक्षत्र हो, उस समय घास, लकड़ी आदि जलने वाली वस्तुएं एकत्र नहीं करनी चाहिए, इससे आग लगने का भय रहता है।
पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है। इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का कहना है। इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है.
पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि ऐसा न हो पाए तो शव के साथ पांच पुतले आटे या कुश (एक प्रकार की घास) से बनाकर अर्थी पर रखना चाहिए और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार करना चाहिए, तो पंचक दोष समाप्त हो जाता है. ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री