बहुत गुस्सा आता है तो न धारण करें सोना ,कोई भी जेवर पहनने से पहले जानिए गहनों का वास्तु

बहुत गुस्सा आता है तो न धारण करें सोना ,कोई भी जेवर पहनने से पहले जानिए गहनों का वास्तु

समझें वास्तु ओर गहनों का सम्बंध---

भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में रखी किमती चीज़ों को सही जगह रखने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। भारतीय में वास्तु शास्त्र को बहुत ही महत्व दिया जाता है। घर बनवाने से लेकर घर में रखी चीज़ों का सही जगह पर होना वास्तु के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। घर में रखी चीज़ों की दिशाओं का सही जगह पर ना होने के कारण हमें कई परेशानियां घर में कर्ज लेने की स्थिति बनना या फिर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि आजकल किसी घर के निवासियों के पास गहने(जेवर) होते हैं लेकिन बहुत कम लोग उसे सही दिशा में रखते हैं क्योंकि हम सभी अपने धन को बढ़ाने की चाह रखते हैं। इसलिए यदि आप अपने घर में रखे धन को ओर बढ़ाना चाहते हैं और सुख-समृद्धि, धन-धान्य से हमेशा भंडार भरा रखना चाहते हैं तो वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की सही दिशा में अपने जेवर रखें। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों-ब्रह्मवेत्ताओं एवं पूर्वजों द्वारा प्रमाणित इन तथ्यों एवं रहस्यों सुलझा पाना असम्भव हैं। भारतीय वैदिक ज्‍योतिषशास्त्र के अनुसार, सोना देवगुरु बृहस्‍पति से संबंधित धातु है। गुरु धन, धर्म और सुख वैभव प्रदान करने वाले ग्रह हैं।

ध्यान रखें, जिन लोगों को गुस्‍सा अधिक आता है, उन्‍हें सोना नहीं धारण करना चाहिए। सोना शरीर में गर्मी को बढ़ाता है जो कि क्रोधी स्‍वभाव वाले व्‍यक्ति के लिए नुकसानदेह है। मोटे व्‍यक्तियों को भी सोना नहीं धारण करना चाहिए। सोना आपकी किस्मत को चमका सकता है और कई मामलों में आपके लिए लाभकारी हो सकता है लेकिन सोना धारण करने वाले को मांस मदिरा का सेवन करने से बचना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जता है कि यह गुरु का धातु होने के कारण धर्म का प्रतिनिधित्व करता है।

पाश्चात्य जगत के लोग भारतीय संस्कृति के अनेक सिद्धान्तों को व्यर्थ की बकवास बोलकर कुप्रचार करते थे लेकिन अब वे ही शीश झुकाकर उन्हें स्वीकार कर किसी-न-किसी रूप में मानते भी चले जा रहे हैं।

भारतीय समाज में स्त्री-पुरुषों में आभूषण पहनने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है। आभूषण धारण करने का अपना एक महत्त्व है जो शरीर और मन से जुड़ा हुआ है। स्वर्ण के आभूषणों की प्रकृति गर्म है तथा चाँदी के गहनों की प्रकृति शीतल है। यही कारण है ग्रीष्म ऋतु में जब किसी के मुँह में छाले पड़ जाते हैं तो प्रायः ठंडक के लिए मुँह में चाँदी रखने की सलाह दी जाती है। इसके विपरीत सोने का टुकड़ा मुँह में रखा जाये तो गर्मी महसूस होगी। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्रीजी ने बताया कि यदि आपको अक्‍सर सर्दी-जुकाम की समस्‍या रहती है तो अनामिका उंगली यानी रिंग फिंगर में सोना धारण करना चाहिए। भारतीय वैदिक ज्योतिष में गुरु और उसके धातु सोना को गर्म प्रकृति का माना गया है। इस धारण करने से शीत जनित रोग से बचाव होता है।

स्त्रियों पर सन्तानोतपत्ति का भार होता है। उसकी पूर्ति के लिए उन्हें आभूषणों द्वारा ऊर्जा व शक्ति मिलती रहती है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार सिर में सोना और पैरों में चाँदी के आभूषण धारण किये जायें तो सोने के आभूषणों से उत्पन्न हुई बिजली पैरों में तथा चाँदी आभूषणों से उत्पन्न होने वाली ठंडक सिर में चली जायेगी क्योंकि सर्दी गर्मी को खींच लेती है। इस तरह से सिर को ठंडा व पैरों को गर्म रखने के मूल्यवान चिकित्सकीय नियम का पूर्ण पालन हो जायेगा। देवगुरु वृहस्पति को ज्योतिषशास्त्र में संतान सुख का कारक भी कहा गया है। जिन्हें संतान प्राप्ति में कठिनाई आ रही हो उन्हें चिकित्सा के साथ अनामिका उंगली में सोने की अंगूठी धारण करना चाहिए। याद रखें संतान प्राप्ति तक हीरा नहीं धारण करना चाहिए। शादी-शुदा जोड़े को सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पति-पत्‍नी दोनों को अपने गले में सोने की चेन धारण करनी चाहिए। यह आपसी प्रेम और विश्‍वास को बढ़ाता है ऐसा ज्योतिषशास्त्र का मत है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की नवविवाहित जोड़ों को हीरा धारण करने से बचना चाहिए, खासतौर पर कि एक संतान ना हो जाए

इसके विपरीत यदि सिर चाँदी के तथा पैरों में सोने के गहने पहने जायें तो इस प्रकार के गहने धारण करने वाली स्त्रियाँ पागलपन या किसी अन्य रोग की शिकार बन सकती हैं। अतैव सिर में चाँदी के व पैरों में सोने के आभूषण कभी नहीं पहनने चाहिए। प्राचीन काल की स्त्रियाँ सिर पर स्वर्ण के एवं पैरों में चाँदी के वजनी आभूषण धारण कर दीर्घजीवी,स्वस्थ व सुन्दर बनी रहती थीं। ज्‍योतिषशास्त्र के अनुसार महिलाओं को पैर और कमर पर सोने के गहने न पहनने की सलाह दी जाती है। कमर में सोना पहनने से यह पाचन तंत्र को प्रभावित करता है और साथ ही कमर पर सोना पहनने से गर्भाशय को नुकसान हो सकता है।

यदि सिर और पाँव दोनों में स्वर्णाभूषण पहने जायें तो मस्तिष्क एवं पैरों में से एक समान दो गर्म विद्युत धारा प्रवाहित होने लगेगी जिसके परस्पर टकराव से, जिस तरह दो रेलगाड़ियों के आपस में टकराने से हानि होती है वैसा ही असर हमारे स्वास्थ्य पर भी होगा।

जिन धनवान परिवारों की महिलाएँ केवल स्वर्णाभूषण ही अधिक धारण करती हैं तथा चाँदी पहनना ठीक नहीं समझतीं वे इसी वजह से स्थायी रोगिणी रहा करती हैं।

विद्युत का विधान अति जटिल है। तनिक सी गड़बड़ में परिणाम कुछ-का-कुछ हो जाता है। यदि सोने के साथ चाँदी की भी मिलावट कर दी जाये तो कुछ और ही प्रकार की विद्युत बन जाती है। जैसे गर्मी से सर्दी के जोरदार मिलाप से सरसाम हो जाता है तथा समुद्रों में तुफान उत्पन्न हो जाते हैं। उसी प्रकार जो स्त्रियाँ सोने के पतरे का खोल बनवाकर भीतर चाँदी,ताँबा या जस्ते की धातुएँ भरवाकर कड़े,हंसली आदि आभूषण धारण करती हैं वे हकीकत में तो बहुत त्रुटि करती हैं। वे सरेआम रोगों एवं विकृतियों को आमंत्रित करने का कार्य करती हैं।

आभूषणों में किसी विपरीत धातु के टाँके से भी गड़बड़ी हो जाती है अतः सदैव टाँकारहित आभूषण पहनना चाहिए अथवा यदि टाँका हो तो उसी धातु का होना चाहिए जिससे गहना बना हो।

विद्युत सदैव सिरों तथा किनारों की ओर से प्रवेश किया करती है। अतः मस्तिष्क के दोनों भागों को विद्युत के प्रभावों से प्रभावशाली बनाना हो तो नाक और कान में छिद्र करके सोना पहनना चाहिए। कानों में सोने की बालियाँ अथवा झुमके आदि पहनने से स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी अनियमितता कम होती है, हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है तथा आँत उतरने अर्थात् हार्निया को रोग नहीं होता है।

नाक में नथुनी धारण करने से नासिका संबंधी रोग नहीं होते तथा सर्दी-खाँसी में राहत मिलती है।

पैरों की अँगुलियों में चाँदी की बिछिया पहनने से स्त्रियों में प्रसवपीड़ा कम होती है, साइटिका रोग एवं दिमागी विकार दूर होकर स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।

पायल पहनने से पीठ, एड़ी एवं घुटनों के दर्द में राहत मिलती है, हिस्टीरिया के दौरे नहीं पड़ते तथा श्वास रोग की संभावना दूर हो जाती है। इसके साथ ही रक्तशुद्धि होती है तथा मूत्ररोग की शिकायत नहीं रहती।


जानिए किस दिशा में रखें अपने गहनें ओर जेवर को--

- घर की संपत्ति और तिजोरी रखने के लिए वास्तु के अनुसार पूर्व दिशा सबसे उत्तम मानी जाती है, इस दिशा में रखी सामग्री में वृद्धि होती रहती है।

- घर की पश्चिम दिशा में धन-संपत्ति और आभूषण ना रखें, इससे घर के मुखिया को कोई बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है और धन की कमी आती है।

- नकद व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी, उसमें रखें गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होगी।

- दक्षिण दिशा में धन, सोना, चांदी और आभूषण रखने से धन में बढ़ोतरी नहीं होती, इससे हालांकी किसी प्रकार का नुकसान भी नहीं होता।

पंडित दयानंद शास्त्री

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