समझें वास्तु में दक्षिण दिशा के महत्व, प्रभाव और इससे संबंधित विचार को--

समझें वास्तु में दक्षिण दिशा के महत्व, प्रभाव और इससे संबंधित विचार को--

समझें वास्तु में दक्षिण दिशा के महत्व, प्रभाव और इससे संबंधित विचार को-

वास्तु में वैसे तो हर दिशा अपनी उपयोगिता के कारण अलग महत्व रखती है , लेकिन दक्षिण दिशा का महत्व इस लिए बढ़ जाता है क्यूंकि यह कुण्डली के दसम भाव से संबंधित है । दक्षिण दिशा की उपयोगिता को समझने के लिए कुण्डली के दसम भाव को समझना जरूरी है ।वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा को शुभ नहीं माना जाता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार इस दिशा के स्वामी यमराज माने जाते हैं। इसे संकट का द्वार भी कहा जाता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्रीजी ने बताया कि वास्तु विज्ञान के मुताबिक दक्षिण की ओर पैर करके सोने और मुख करके बैठने से आपके आस-पास नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहता है। वास्तु विज्ञान में इसके पीछे का तर्क है कि पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण बल पर टिकी है। वह अपनी धुरी पर लगातार घूमती है। इसकी धुरी के उत्तर-दक्षिण दो छोर हैं। यह चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसलिए जब भी इंसान दक्षिण दिशा में पैर करके सोता है तो वह तो पृथ्वी की धुरी के समानांतर हो जाता है। इससे धुरी के चुंबकीय प्रभाव से रक्तप्रवाह प्रभावित होता है। इससे हाथ-पैर में दर्द, कमर दर्द, शरीर का कांपना आदि जैसे दोष हो जाते हैं।
इस दिशा के विषय में विशेष पहलू यह भी है कि भारत के शहरों के इतिहास देखें तो दक्षिण दिशा ने इतनी प्रगति की है, जितनी अन्य दिशाओं ने नहीं की। संपन्नता दक्षिण दिशा में भी प्राप्त होती है। रावण की लंका और भारत के स्वर्ण भंडार इसके उदाहरण हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा का स्वामी यम है। इस दिशा के शुभ-अशुभ परिणाम स्त्रियों पर सबसे ज्यादा पड़ते हैं। इसका सबसे पहला दुष्परिणाम तो यह है कि यदि आपने दक्षिणमुखी भवन बनवाना प्रारंभ किया, वैसे ही आर्थिक संकट खड़े होने लगते हैं। भवन निर्माण में धन की कमी बनी ही रहती है।

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